DN Exclusive: परदेशी रविदास के भाजपा जिलाध्यक्ष बनने के पीछे की इनसाइड स्टोरी, कईयों के मंसूबे टूटे
आधी रात को जब डाइनामाइट न्यूज़ पर लोगों ने यह खबर पढ़ीं कि महज छह साल पहले झारखंड से सरकारी नौकरी छोड़ कर जिले की भाजपाई राजनीति में सक्रिय हुए परदेशी रविदास को महराजगंज का नया जिलाध्यक्ष बना दिया गया है तो हर कोई हैरान रह गया। आखिर क्या है परदेशी के जिलाध्यक्ष बनने की अंदर की कहानी? डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव..
महराजगंज: भयानक गुटबाजी की शिकार भाजपा में नये जिलाध्यक्ष के चयन के बाद से बड़े-बड़े कथित सूरमाओं के होश उड़ गये हैं। सत्तारुढ़ दल के करीब दो दर्जन नेता अपने मन में यह सपना संजोये थे कि किसी तरह उनके हाथ संगठन की सबसे बड़ी कुर्सी लग जाये लेकिन जब नतीजा घोषित हुआ तो हर कोई हैरान।
महज छह साल पहले झारखंड से एक कोल कंपनी की नौकरी छोड़ महराजगंज पहुंचे दलित समुदाय के परदेशी ने बड़ों-बड़ों के होश उड़ा दिये।
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सबसे बड़ा झटका लगा है अब तक अपने हिसाब से जिले के संगठन को जेब में रखकर चलाने वाले सत्तारुढ़ पार्टी के एक नेता को। ये जिला संगठन में पदाधिकारी के रुप में पदासीन अपने एक सजातीय नेता को इस पद पर बैठाना चाहते थे लेकिन उनका मंसूबा कामयाब नहीं हो पाया। इसके अलावा एक निकाय पर काबिज नेता तो ‘मोटी थैली’ के सहारे गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक दिन-रात एक किये हुए थे कि कैसे भी इस बार ‘बटेर’ उनके हाथ लग जाये लेकिन इन्हें भी बड़ा झटका हाईकमान ने दिया है।
निवर्तमान जिलाध्यक्ष से लेकर फरेन्दा व नौतनवा विधानसभा के भी कई पुराने व अनुभवी चेहरे इस कुर्सी पर काबिज होने का ख्वाब देख रहे थे लेकिन इन लोगों को भी जिले को अपनी जेब में रखकर चलाने वाले नेता का सहयोग नहीं मिला।
अपनी सांगठनिक क्षमता और आम कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय परदेशी ने जिले स्तर के नेताओं की बजाय लखनऊ में बैठे संगठन के एक कुशल शिल्पीकार और संघ के एक प्रमुख चेहरे को साध लिया और इन दोनों की ‘कृपा’ की बदौलत संगठन की सबसे बड़ी कुर्सी हासिल कर ली।
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महराजगंज जिले के 30 साल के इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी दलित को इस कुर्सी पर बैठाया गया है। परेदशी पढ़े-लिखे और अच्छे वक्ता माने-जाते हैं। इनके ऊपर बड़ी चुनौती होगी कि ये सबको साथ लेकर चलें और हाईकमान के भरोसे पर खरे उतरें।
परेदशी की नियुक्ति के बाद डाइनामाइट न्यूज़ ने जिले के अलग-अलग क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं से जब फीडबैक लिया तो यह साफ हो गया कि अब तक जिले के संगठन को एक 'रबड़ स्टैम्प' की तरह चलाने वाले 'नेता' को आने वाले दिनों में जिला पंचायत से लेकर प्रधानी और ब्लाक प्रमुखी तक के चुनाव में टिकट वितरण में खासी परेशानी आने वाली है। इसके पीछे कार्यकर्ताओं का मानना है कि नव नियुक्त जिलाध्यक्ष की अपनी सोच है और परदेशी भले इस 'नेता' के आसपास दिखते हों तो लेकिन अंदरुनी तौर पर ऊपर वही फीडबैक देंगे जो संगठन के हित में होगा।
कार्यकर्ता इसकी एक और वजह बताते हैं कि परदेशी 2017 के चुनाव में सदर विधानसभा सीट से टिकट चाहते थे और कार्यकर्ता उनके पक्ष में भी थे लेकिन इस नेता ने कार्यकर्ताओं की पसंद की बजाय अपने चहेते को टिकट दिला दिया। ये ऐसी बातें हैं जिसे ऊपरी तौर भले कोई नहीं कहता है लेकिन भयानक गुटबाजी की शिकार भाजपा के कार्यकर्ता अंदरुनी बातचीत में खुलकर स्वीकारते हैं।