हाई कोर्ट ने भाजपा विधायक को जारी किया समन, जानिये ‘भ्रष्ट और अवैध’ तरीकों में लिप्त होने का मामला

डीएन ब्यूरो

गुजरात उच्च न्यायालय ने सोमवार को आम आदमी पार्टी (आप) के नेता राजू सोलंकी द्वारा दायर उस याचिका पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक जीतू वाघाणी को समन जारी किया जिसमें अनुरोध किया गया है कि उनका चुनाव ‘‘भ्रष्ट और अवैध’’ तरीकों में लिप्त होने के आधार पर रद्द कर दिया जाए।

गुजरात उच्च न्यायालय
गुजरात उच्च न्यायालय


अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने सोमवार को आम आदमी पार्टी (आप) के नेता राजू सोलंकी द्वारा दायर उस याचिका पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक जीतू वाघाणी को समन जारी किया जिसमें अनुरोध किया गया है कि उनका चुनाव ‘‘भ्रष्ट और अवैध’’ तरीकों में लिप्त होने के आधार पर रद्द कर दिया जाए।

न्यायमूर्ति राजेंद्र सरीन ने वाघाणी को समन जारी किया और इस पर उन्हें 21 अप्रैल को जवाब देना है।

पिछले साल दिसंबर में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में भावनगर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से वाघाणी से हारने के बाद सोलंकी ने याचिका दायर की थी।

अदालत ने राज्य के चुनावों से पहले वितरित किए गए उन पर्चो को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक को समन जारी किया, जिसमें दावा किया गया था कि आप उम्मीदवार सोलंकी उन्हें अपना समर्थन दे रहे हैं।

सोलंकी ने अपनी याचिका में कहा कि वाघाणी और उनके समर्थकों ने आप उम्मीदवार के बारे में लोगों में कथित तौर पर भ्रम उत्पन्न करने के लिए ‘‘इस झूठी सूचना’’ के साथ पर्चे बांटे और इस तरह से जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत परिकल्पित भ्रष्ट आचरण में लिप्त हुए।’’

याचिका में कहा गया है कि पर्चे मतदाताओं को गुमराह करने के लिए तैयार किये गए थे ताकि उन्हें (मतदाताओं को) यह लगे कि आप के उम्मीदवार उनसे वाघाणी को समर्थन देने के लिए कह रहे हैं।

याचिकाकर्ता ने कहा कि शिकायत पुलिस और चुनाव अधिकारियों को दी गई थी, लेकिन इस संबंध में भावनगर पुलिस थाने में दर्ज एक प्राथमिकी (प्रथम सूचना रिपोर्ट) में सत्तारूढ़ दल के विधायक को आरोपी के तौर पर उल्लेखित नहीं किया गया था।

सोलंकी ने कहा कि उत्तरदाताओं- मुख्य निर्वाचन अधिकारी और जिला निर्वाचन अधिकारी और रिटर्निंग अधिकारी का उनकी बार-बार की शिकायतों पर कार्रवाई करने में विफलता ‘‘अवैध, मनमाना, दुर्भावनापूर्ण, भेदभावपूर्ण और स्वभाविक न्याय के सुस्थापित सिद्धांतों के साथ-साथ भारत के संविधान के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन है।’’










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