गोरखपुर: असामयिक बारिश ने छीनी किसानों की उम्मीद, ओलावृष्टि की आशंका से टूटा अन्नदाताओं का हौसला
गोरखपुर में असामयिक बारिश ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

गोरखपुर: बुधवार की रात से शुरू हुई घनघोर बारिश ने किसानों के चेहरों पर उदासी की काली छाया बिखेर दी है। गुरुवार की सुबह आसमान में गरजते बादलों ने एक बार फिर दहशत फैलाई, क्योंकि ओलावृष्टि की आशंका ने उनकी मेहनत से उगाई फसलों पर संकट के बादल मंडरा दिए हैं। खेतों में खड़ी फसलें, जो किसानों के लिए उम्मीद और जीविका का आधार थीं, अब प्रकृति की इस बेरहमी के आगे बेबस नजर आ रही हैं।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, खजनी, गोला, बाँसगांव, कप्तानगंज और चौरीचौरा जैसी तहसीलों में मौसम की इस अनचाही करवट ने किसानों को रातों की नींद छीन ली है। उधर तेज हवाओं के साथ कई इलाकों में आगजनी की घटनाओं ने फसलों को जलाकर राख कर दिया, और जो बची थी, वह अब बारिश और ओले की मार से खतरे में है। खेतों में पानी भर गया है, और गेहूँ, अरहर फसलें मिट्टी में मिलती नजर आ रही हैं।"हमारी मेहनत पर पानी फिर गया"
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डाइनामाइट न्यूज संवादाता अनुसार खजनी के किसान उदयभान त्रिपाठी की आँखों में निराशा साफ झलकती है। वे बताते हैं, "महीनों की मेहनत, पसीने और कर्ज के बोझ तले तैयार की गई फसल अब बर्बाद हो रही है। ओले पड़ गए तो कुछ भी नहीं बचेगा।" सहजनवां के प्रभाकर दुबे का कहना है, "खेत में फसलें पीली पड़ रही हैं, और बच्चों की पढ़ाई का खर्च तक नहीं निकल पाएगा।" पिपरौली ब्लाक के महुआडाबर निवासी नरेंद्र दुबे और गोला के बृजनाथ त्रिपाठी जैसे किसानों की आवाज में भी वही दर्द गूंजता है। बाँसगांव के सुनील सिंह ने कहा, "हम हर साल प्रकृति की मार झेलते हैं, लेकिन इस बार तो हद हो गई।"
किसानों का गहराता संकट
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किसानों के लिए यह सिर्फ फसलों का नुकसान नहीं, बल्कि जिंदगी का संकट है। कर्ज के बोझ तले दबे ये अन्नदाता अब अपनी अगली फसल के लिए बीज और खाद तक कैसे जुटाएंगे, यह सवाल उनके सामने मुंह बाए खड़ा है। खेतों में पानी भरा है, और जो फसलें बच भी गईं, उनकी कटाई और भंडारण की उम्मीद धूमिल हो रही है। किसान संगठनों ने इस आपदा को "प्रकृति की दोहरी मार" करार दिया है। ख़जनी क्षेत्र के किसानो ने बताया "हर बार नुकसान होता है, लेकिन मुआवजा सिर्फ कागजों पर रह जाता है। सरकार को तुरंत सर्वे कराना चाहिए और किसानों को राहत देनी चाहिए।"
वहीं, प्रशासन की ओर से अभी तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "हम मौसम की रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं," लेकिन यह जवाब किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। किसानों ने प्रशासन से मांग की है कि नुकसान का तत्काल आकलन कर मुआवजा और बीमा राशि दी जाए। उनकी मांग है कि इस संकट में सरकार उनके साथ खड़ी हो, ताकि वे फिर से अपने पैरों पर खड़े हो सकें। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये मांगें सिर्फ हवा में गूंज बनकर रह जाएंगी, या वाकई धरातल पर उतरेंगी?