पूर्व पाकिस्तानी जनरल ने असैन्य-सैन्य असंतुलन के लिए राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया

डीएन ब्यूरो

पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल हारून असलम ने कहा है कि वह पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के उस संकल्प को अधिक महत्व नहीं देते कि सेना देश की राजनीति से बाहर रहेगी और उन्होंने असैन्य-सैन्य असंतुलन को बढ़ाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल हारून असलम
पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल हारून असलम


इस्लामाबाद: पाकिस्तान के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल हारून असलम ने कहा है कि वह पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के उस संकल्प को अधिक महत्व नहीं देते कि सेना देश की राजनीति से बाहर रहेगी और उन्होंने असैन्य-सैन्य असंतुलन को बढ़ाने के लिए राजनीतिक नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार असलम ने लंदन में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स द्वारा आयोजित ‘फ्यूचर ऑफ पाकिस्तान कांफ्रेंस’ में एक सत्र को संबोधित करते हुए यह टिप्पएाी की।

‘डॉन’ अखबार ने असलम के हवाले से कहा, ‘‘इमरान खान ने जनरल बाजवा को सेवा विस्तार क्यों दिया? आसिफ अली जरदारी ने जनरल अश्फाक परवेज कियानी को सेवा विस्तार क्यों दिया? मेरा मानना है कि सेना को तटस्थ रहना चाहिए और राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए लेकिन याद रखिए कि आप इसे बंद नहीं कर सकते।’’

उन्होंने सेना को राजनीति में हस्तक्षेप करने देने के लिए पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व को भी जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि सेना हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं कर रही थी बल्कि ‘‘असैन्य घटक’’ ने सेना को महत्व दिया।

सेवानिवृत्त जनरल बाजवा की टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल ने कहा, ‘‘मैं इसे महत्व नहीं देता हूं। उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया और फिर आखिर में यह कहा। एक निवर्तमान प्रमुख क्या कहता है इसका कोई महत्व नहीं है।’’

उन्होंने असैन्य-सैन्य असंतुलन बढ़ाने के लिए पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ प्रमुख इमरान खान एवं अन्य असैन्य नेताओं की आलोचना की।

बहरहाल, वुडरॉ विल्सन सेंटर के शोधार्थी माइकल कुगेलमैन ने असैन्य नेतृत्व का बचाव किया। उन्होंने कहा, ‘‘तटस्थ सेना तभी संभव है जब नेता यह फैसला कर लें कि उन्हें सेना के साथ काम करने की आवश्यकता नहीं है लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रूप से नेताओं के पास अक्सर कोई विकल्प नहीं होता। उनके और सेना के बीच अच्छे संबंध बनाए रखने की इच्छा होती है।’’










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