DN Exclusive: महराजगंज जिले में भाजपा की दुर्गति का जिम्मेदार कौन?
खांटी कार्यकर्ताओं की मेहनत के घोड़े पर सवार हो नेता सांसद और विधायक बन जाते हैं, लेकिन जब उन्हीं कार्यकर्ताओं को जिला पंचायत सदस्य, ग्राम प्रधान, बीडीसी सदस्य बनाने की बारी आती है तो ये नेता गच्चा दे देते हैं। कुछ इसी पीड़ा से भाजपा के कार्यकर्ता बारहों ब्लाक में खासे उबाल में हैं। टिकट वितरण से लेकर प्रचार में जमकर मनमानी हुई। अब कार्यकर्ता सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर जिले में भाजपा की दुर्गति का जिम्मेदार कौन है?
महराजगंज: पंचायती चुनाव की हार से भाजपा की गुटबाजी की पोल खुल गयी है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि जब सीएम से लेकर पीएम तक भाजपा के ही हैं तो फिर जिले में सत्तारुढ़ पार्टी की यह दुर्गति क्यों हुई?
जिला पंचायत की 47 सीट में सत्तारुढ़ भाजपा दहाई का आंकड़ा नहीं छू पायी। इस शर्मनाक हार को पुराने, निष्ठावन कार्यकर्ता पचा नहीं पा रहे हैं।
सवाल यह है कि इस हार के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या जिला संगठन के अध्यक्ष इस हार का जिम्मा लेंगे? क्या 6 बार के सांसद की कोई जिम्मेदारी है? सत्ताधारी चारों विधायक क्या अपने-अपने इलाकों की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेंगे? य़े ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब किसी से देते नहीं बन रहा।
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गुटबाजी बनी हार की वजह?
कार्यकर्ता खुलेआम गुटबाजी को हार का बड़ा कारण बता रहे हैं। महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष मधु पांडेय बुरी तरह हार गयी, इसके बाद उनका गुस्सा फूट पड़ा, उन्होंने खुलेआम हार के पीछे गुटबाजी और जातिवाद को जिम्मेदार बताया है। इनका आरोप है कि बबिता सिंह नाम की बागी ने खुलेआम पार्टी के झंडे-डंडे का इस्तेमाल किया, जब उन्होंने इसकी शिकायत जिम्मेदारों से की तो उसे अनसुना कर दिया गया।
नंदलाल और ओमप्रकाश की हार से सदमा
बातचीत में भाजपाई स्वीकार कर रहे हैं कि कोशिश थी कि संगठन के पूर्व जिला महामंत्री ओम प्रकाश पटेल अथवा पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष धर्मा देवी के पति नंद लाल अंबेडकर में से किसी को जीतने पर अध्यक्ष के लिए लड़ाया जाय लेकिन सारे घोड़े खोल लेने के बाद भी ये नहीं जीत सके। अंदर की चर्चा है कि कुछ लोग इस बात को पचा नहीं पा रहे थे कि सामने बैठने ये निष्ठावान कल को अध्यक्ष बन उनसे ऊपर कद के हो जाये, लिहाजा इनकी हार के लिए जमकर खेल किया गया। सत्तारुढ़ दल के बावजूद पर्दे के पीछे से मिलने वाले प्रशासनिक सहयोग में खेल कर दिया गया।
2022 की राह मुश्किल
कार्यकर्ता अपने आप को छला हुआ महसूस कर रहे हैं, अंदरखाने में चर्चा है कि आठ महीने बाद होने वाले विधानसभा के चुनाव में वे भी सूद ब्याज समेत लौटायेंगे।
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कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना
चुनाव लड़ा जा रहा था पंचायत का लेकिन निशाना था विधायकी का चुनाव। परतावल इलाके के भाजपाई वार्ड 38 परतावल द्वितीय से लड़े अर्जुन सिंह की हार को पचा नहीं पा रहे हैं। कहा जा रहा है कि निर्दलीय आशिक अली मान बैठे थे कि वे चंद वोट से हार चुके हैं और भाजपा प्रत्याशी अर्जुन सिंह को बधाईयां मिलनी शुरु हो चुकी थीं लेकिन अचानक गेम बदला और जीत का प्रमाण पत्र मिला आशिक अली को। यह खबर जैसे ही डाइनामाइट न्यूज़ पर प्रकाशित हुई भाजपाई हैरान हो उठे। अंदरखाने में चर्चा है कि आगामी पनियरा विधायकी से जुड़ा है यह खेल, चर्चा है कि भाजपा के दो बड़े नेताओं के पुत्रों की पनियरा विधानसभा से दावेदारी की भेंट चढ़ा दिये गये अर्जुन सिंह? सच्चाई क्या है यह तो आने वाले वक्त में पता चलेगा लेकिन फिलहाल संगठन के निष्ठावानों में निराशा और असंतोष का जबरदस्त आलम है।