अदालतें अपराध पीड़ितों को मुआवजा दिलाने के लिए बाध्य हैं; ये उनका कानूनी कर्त्तव्य है: अदालत

डीएन ब्यूरो

बम्बई उच्च न्यालय ने कहा है कि अदालतें न केवल अपराध पीड़ितों को मुआवजा दिलाने के लिए बाध्य हैं, बल्कि पीड़ितों को मुआवजा दिलाना उनका कानूनी कर्त्तव्य भी है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

बम्बई उच्च न्यालय
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मुंबई: बम्बई उच्च न्यालय ने कहा है कि अदालतें न केवल अपराध पीड़ितों को मुआवजा दिलाने के लिए बाध्य हैं, बल्कि पीड़ितों को मुआवजा दिलाना उनका कानूनी कर्त्तव्य भी है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार बम्बई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ की न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति अभय वाघवासे की खंडपीठ ने छह नवंबर को जलगांव के जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को उन दो नाबालिग लड़कों को मुआवजा देने या उनके पुनर्वास के लिए प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिया, जो अपनी मां को उनके पिता द्वारा जलाकर मार दिए जाने के बाद अनाथ हो गए हैं।

अदालत ने शराब खरीदने के लिए पैसे देने से इनकार करने पर पत्नी की हत्या करने के मामले में 35 वर्षीय व्यक्ति की 2017 की सजा को बरकरार रखा।

दोनों लड़कों की ओर से पेश होने के लिए नियुक्त एक अधिवक्ता ने अदालत को सूचित किया कि चूंकि बच्चों की मां की मृत्यु हो गई है और उनके पिता जेल में हैं, इसलिए उन दोनों की देखभाल उनकी दादी द्वारा की जा रही है।

अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 357ए का हवाला देते हुये अधिवक्ता ने दोनों बच्चों के लिये मुआवजे का अनुरोध किया । यह धारा कहती है कि अपराध के पीड़ितों को उनके पुनर्वास के लिये सरकार उन्हें मुआवजा देगी ।

अदालत ने इस पर सहमति जताते हुये कहा, ‘‘कानून की अदालतें न केवल मुआवजा दिलाने के उद्देश्य से अपनी शक्ति का इस्तेमाल करने के लिये बाध्य हैं, बल्कि दूसरे पक्ष के किसी कार्य या चूक के परिणामस्वरूप पीड़ित को हुए नुकसान और चोट के लिए ऐसा करना उनका कानूनी कर्तव्य भी है।’’

अदालत ने जलगांव के जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण को मामले में जांच करने और इसके बाद दोनों बच्चों को मुआवजा देने अथवा उनके पुनर्वास के लिये प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिया ।










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