Chaitra Navratri 2025: चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन होती है इस देवी मां की पूजा, जानें क्या है उनकी कथा व प्रिय भोग ?

चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन सुबह-शाम की पूजा में यह भोग जरूर चढ़ाएं और साथ ही यह आरती भी जरूर करें। जानने के लिए पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 31 March 2025, 9:51 AM IST
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नई दिल्लीः आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है, जिसमें मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। यह खास दिन इनको समर्पित है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान और तप की देवी कहा जाता है और यह सफेद रंग की साड़ी धारण करती है। इन्हें सफेद रंग काफी प्रिया है। 

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमण्डल होता है। हिंदू धर्म के अनुसार, आज के दिन इनकी पूजा करने से जातक को आदि और व्याधि रोगों से मुक्ति मिलती है। ऐसे में अगर आप सुबह-शाम की पूजा सही विधि विधान से करते हैं आपको मां ब्रह्मचारिणी का आशीर्वाद मिलेगा। 

आइए फिर आपको बताते हैं कि मां ब्रह्मचारिणी की कथा क्या है और उनका प्रिया भोग क्या है ? यदि आप सुबह-शाम की पूजा के समय उनका प्रिय भोग चढ़ाते हैं और यह कथा पढ़ते हैं तो वह काफी प्रसन्न हो जाएगी। 

मां ब्रह्मचारिणी का प्रिय भोग 

आज मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान अगर आप बर्फी, नारियल की खीर और पंचामृता का भोग लगाते हैं, तो मां ब्रह्मचारिणी काफी पसंद आएगी। क्योंकि यह सब उनका प्रिय भोग है। वहीं उन्हें आज के दिन सफेद रंग की साड़ी जरूर पहनाएं। 

मां ब्रह्मचारिणी की आरती 
जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता, जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो, ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा, जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता, जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए, कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।,  ​तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर, जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना, मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम, पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी, रखना लाज मेरी महतारी।

मां ब्रह्मचारिणी की व्रत कथा 
मां ब्रह्मचारिणी ने राजा हिमालय के घर जन्म लिया था और उन्होंने काफी कठोर तप किया ताकि वे भगवान शिव को पति बना सकें। इसी तप के कारण उनका नाम मां ब्रह्मचारिणी पड़ गया। इस तप के दौरान उन्होंने 1 हजार साल तक केवल फल-फूल ही खाए। मां ब्रह्मचारिणी ने कई हजार वर्षों तक निर्जल व्रत भी रखा। जिसके चलते उनका शरीर क्षीण हो गया। जिसे देखकर सभी देवी-देवता प्रसन्न हो गए और उनकी सराहना की। सभी देवी-देवताओं ने कहा कि देवी आपकी तपस्या जरूर पूर्ण होगी।