महराजगंज: पत्रकार के मकान ध्वस्तीकरण मामले में बस्ती मंडलायुक्त की रिपोर्ट आयी सामने, तत्कालीन डीएम साथियों समेत पाये गये दोषी
महराजगंज जनपद मुख्यालय पर नेशनल हाइवे-730 के निर्माण से जुड़ी धांधली में एक बड़ा खुलासा बस्ती के मंडलायुक्त की जांच रिपोर्ट में हुआ है। इसके बाद तत्कालीन डीएम अमरनाथ उपाध्याय समेत जिला प्रशासन, पुलिस विभाग, नेशनल हाइवे के इंजीनियरों की गर्दन कड़ी कार्यवाही की चपेट में फंस गयी है। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:
लखनऊ/बस्ती/महराजगंज: जनपद मुख्यालय पर लंबे समय से चल रहे राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में जिला प्रशासन के अफसरों और नेशनल हाइवे के इंजीनियरों ने बिना विधिक प्रक्रिया का पालन किये जबरदस्त गदर काट रखा है। बड़ी संख्या में लोग अपनी जमीनों, मकानों और दुकानों से एक झटके में जबरदस्ती बिना मुआवजे के उजाड़ दिये गये और जनता के वोटों के दम पर चुने गये जिम्मेदार जनप्रतिनिधि चुपचाप ठेकेदारों के समर्थन में चुप्पी साधे खड़े रहे।
इस मामले ने तूल पकड़ा जब बीते 13 सितंबर को हमीद नगर मुहल्ले के निवासी और दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार के रुप में कार्यरत मनोज टिबड़ेवाल आकाश के पैतृक मकान को गैरकानूनी तरीके से जिला प्रशासन ने बुलडोजरों से ध्वस्त करा दिया। सड़क निर्माण की इस जल्दबाजी के पीछे 185 करोड़ रुपये का भारी भरकम बजट है।
नई दिल्ली में उच्च स्तर पर पत्रकार द्वारा की गयी शिकायत के बाद 27 फरवरी को महराजगंज जनपद मुख्यालय पर बस्ती के मंडलायुक्त और वरिष्ठ आईएएस अनिल कुमार सागर अपनी टीम के साथ खुद पहुंचे और विस्तृत जांच पड़ताल की। तभी माना जा रहा था कि जब कमिश्नर स्तर के अधिकारी खुद मौके पर जांच करने आये हैं तो इसका मतलब मामला वाकई गंभीर है। जांच के दौरान कमिश्नर ने खुद बीच सड़क पर जरीब गिरवाकर जब सड़क की चौड़ाई नपवायी थी तो दोषी अफसरों के चेहरे के रंग उड़ गये थे। उनसे कोई जवाब देते नहीं बन रहा था।
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क्यों तोड़ा 26 की जगह 70 फीट मकान?
मंडलायुक्त की जांच के दौरान अफसर अपने बचाव में कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाये कि उन्होंने 26 फीट की जगह 70 फीट तक मकान क्यों तोड़ा?
किसके दबाव में एडीएम और एएसपी ने नहीं दिया 5 मिनट का भी समय?
कैशबाक्स जैसे जरुरी सामान निकालने के लिए जब शिकायतकर्ता ने अपर जिलाधिकारी और अपर पुलिस अधीक्षक से पांच मिनट का वक्त मांगा तो यह वक्त भी इन अफसरों ने आखिर किसके दबाव में देना उचित नहीं समझा?
डाइनामाइट न्यूज़ को मिली जानकारी के मुताबिक बस्ती के मंडलायुक्त ने शासन को भेजी गयी अपनी जांच रिपोर्ट में लिखा है कि राष्ट्रीय राजमार्ग के अधिकारियों द्वारा तथ्यों को छिपाते हुए अवैधानिक तरीके से जिला प्रशासन का सहयोग प्राप्त कर शिकायतकर्ता के मकान को बलपूर्वक हटवाया गया, जो किसी भी तरह से उचित नहीं था। मंडलायुक्त ने यह भी पाया कि न तो शिकायतकर्ता को कोई नोटिस जारी की गयी और न ही अतिरिक्त भूमि के लिए विधिक प्रक्रिया का पालन किया गया। जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि शिकायतकर्ता की यदि जमीन ली जानी थी तो उसे पहले इसका मुआवजा दिया जाना चाहिये था फिर इसके बाद ही मकान ध्वस्त किया जाना चाहिये था।
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इस जांच के अलावा नई दिल्ली से राष्ट्रीय मानव अधिकार आय़ोग की जांच टीम ने भी आकर लगातार पांच दिन तक महराजगंज में गहन जांच पड़ताल की थी और सभी पक्षों व स्वतंत्र गवाहों के बयानात आदि दर्ज किये थे। इसकी रिपोर्ट अभी सार्वजनिक होना बाकी है।
मंडलायुक्त बस्ती की जांच रिपोर्ट के बाद दोषी अफसरों और इंजीनियरों के हाथ-पांव फूल गये हैं।
मुख्यमंत्री की बड़ी कार्यवाही
मकान गिराये जाने के मुख्य आरोपी तत्कालीन जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय की काली-करतूतों को लेकर 25 सितंबर को लोकभवन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने मुलाकात थी और उन्हें साजिश और ज्यादतियों का सिलसिलेवार तरीके से ब्यौरा दिया था। उसके चंद दिन बाद ही अमरनाथ उपाध्याय के पाप का घड़ा, मधवलिया गो-सदन के भ्रष्टाचार के रुप में फूटा और सीएम ने एक झटके में इन्हें निलंबित कर दिया। सीएम के हंटर का असर इतना भयानक है दो सौ दिन बाद भी इस दागी अफसर को कोई बहाल नहीं करा सका है।