भारत में वायु प्रदूषण को कम करने का मिल गया नया तरीका, पढ़ें वैज्ञानिकों की ये रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

शोधकर्ताओं ने भारत के 29 राज्यों और आसपास के छह देशों के लिए छोटे धूलकण (पीएम 2.5) में विभिन्न उत्सर्जन क्षेत्रों और ईंधन के योगदान का आकलन किया है जिससे वायु प्रदूषण को कम करने और पूरे दक्षिण एशिया में आबादी के स्वास्थ्य में सुधार के संभावित मार्गों की पहचान की गई है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: शोधकर्ताओं ने भारत के 29 राज्यों और आसपास के छह देशों के लिए छोटे धूलकण (पीएम 2.5) में विभिन्न उत्सर्जन क्षेत्रों और ईंधन के योगदान का आकलन किया है जिससे वायु प्रदूषण को कम करने और पूरे दक्षिण एशिया में आबादी के स्वास्थ्य में सुधार के संभावित मार्गों की पहचान की गई है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, एनवायरमेंटल साइंड एंड टेक्नोलॉजी पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित परिणाम, इन देशों में पीएम2.5 की उच्च सांद्रता के मुख्य चालकों के रूप में विभिन्न स्रोतों से वायुमंडल में सीधे उत्सर्जित होने वाले प्राथमिक ऑर्गेनिक्स-कार्बनिक कणों की पहचान करते हैं।

पीएम2.5 सांस के साथ शरीर के अंदर जाने योग्य महीन प्रदूषित कण हैं, जिनका व्यास आम तौर पर 2.5 माइक्रोमीटर या उससे छोटा होता है।

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अध्ययन के मुख्य लेखक अमेरिका की सेंट लुइस विश्वविद्यालय के शोध छात्र दीपांशु चटर्जी ने कहा, “दक्षिण एशिया के देशों में खासा उत्सर्जन, उससे संबंधित वायु प्रदूषण और मृत्यु दर का बोझ है।”

चटर्जी ने कहा, “हमारे अध्ययन से पता चलता है कि 2019 में परिवेशी पीएम2.5 के कारण दक्षिण एशिया में 10 लाख से अधिक मौत मुख्य रूप से घरों में ईंधन जलाने, उद्योग और बिजली उत्पादन से हुईं।”

अध्ययन में पाया गया कि ठोस जैव ईंधन पीएम2.5 के कारण होने वाली मृत्यु दर में योगदान देने वाला प्रमुख दहनशील ईंधन है, इसके बाद कोयला, तेल और गैस का नंबर आता है।

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अध्ययन के सह-लेखक और वाशिंगटन विश्वविद्यालय व कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर माइकल ब्रायूर ने कहा, “वायु प्रदूषण, घर के अंदर और बाहर दोनों जगह, दक्षिण एशिया में मौत का प्रमुख जोखिम कारक है।”

ब्रायूर ने कहा, “प्रमुख योगदान देने वाले स्रोतों को समझना इस गंभीर समस्या के प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहला कदम है।”

पीएम2.5 के प्रभावों का मूल्यांकन करने में एक बड़ी चुनौती यह समझना है कि समय के साथ इसका उत्पादन और वितरण कैसे होता है।










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