Patna: बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। इस दौरान चुनाव आयोग ने अदालत को बताया कि वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने से ज्यादा हटवाने के आवेदन आ रहे हैं। आयोग की इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट के जजों ने हैरानी जताते हुए पूछा “राजनीतिक दल आखिर नाम हटवाने के लिए आवेदन क्यों दे रहे हैं?” इस सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने पक्ष रखा।
प्रशांत भूषण की दलील
याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में जिन लोगों के नाम छूट गए हैं, उन्हें आपत्ति दर्ज कराने की समय सीमा बढ़ाई जाए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि आधार कार्ड को “अपर्याप्त दस्तावेज” कहकर आवेदन खारिज न किया जाए। प्रशांत भूषण ने कहा कि लोगों के फॉर्म में क्या कमी है, इसके बारे में उन्हें सूचित किया जाना चाहिए ताकि वे जरूरी दस्तावेज जमा कर सकें।
चुनाव आयोग ने या ये जवाब
चुनाव आयोग की ओर से राकेश द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि SIR की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और लोगों की भागीदारी भी अच्छी है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा नाम हटवाने के अधिक आवेदन दिए जा रहे हैं, नाम जोड़ने के नहीं। इससे पता चलता है कि प्रक्रिया निष्पक्ष है। द्विवेदी ने यह भी कहा कि कई लोग खुद आकर कह रहे हैं कि वे अब किसी और स्थान पर वोटर हैं, इसलिए उनका नाम यहां से हटाया जाए। साथ ही कई मामलों में मृत्यु प्रमाण-पत्र के आधार पर भी नाम हटाने की मांग की गई है।
“राजनीतिक दल नाम क्यों हटवाना चाहते हैं?”
चुनाव आयोग के इस बयान पर सुप्रीम कोर्ट के जजों ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए पूछा कि राजनीतिक दल आखिर वोटर लिस्ट से नाम हटवाने के लिए इतने आवेदन क्यों दे रहे हैं? यह सामान्य प्रक्रिया नहीं लगती। इस टिप्पणी ने इस पूरे मुद्दे पर एक नया आयाम जोड़ दिया है, जिससे संकेत मिलता है कि कोर्ट अब इस पर गहराई से विचार कर सकता है।
समय सीमा को लेकर आयोग का तर्क
जब प्रशांत भूषण ने आपत्तियों की समयसीमा बढ़ाने की मांग की, तब राकेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि समय सीमा बढ़ाने से चुनावी प्रक्रिया में देरी होगी। हालांकि 1 सितंबर के बाद भी कोई दावा या आपत्ति रोकी नहीं गई है। लेकिन अब ये दावे फाइनल लिस्ट के बाद निपटाए जाएंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि चुनाव के नामांकन की अंतिम तिथि तक कोई भी व्यक्ति वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने का अधिकार रखता है और इससे किसी को मतदान से वंचित नहीं किया जाएगा। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इसमें कोई समस्या नहीं दिख रही है, क्योंकि दावे अब भी स्वीकार किए जा रहे हैं।
ADR के बाढ़ वाले तर्क पर चुनाव आयोग की आपत्ति
सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग ने एक और महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया। राकेश द्विवेदी ने बताया कि एक NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने दावा किया है कि बाढ़ के कारण लोग वोटर लिस्ट प्रक्रिया में भाग नहीं ले पा रहे हैं। इस पर आयोग ने कहा कि यह NGO बिहार से जुड़ा हुआ नहीं है। हम देख रहे हैं कि लोग खुद आगे आकर प्रक्रिया में हिस्सा ले रहे हैं। यह कहना कि बाढ़ से बाधा हो रही है, तथ्यात्मक रूप से गलत है।
वोटर को सूचित करने पर आयोग की सफाई
प्रशांत भूषण की इस बात पर कि लोगों को उनकी फॉर्म में क्या कमी है, यह जानकारी दी जानी चाहिए, चुनाव आयोग ने जवाब दिया कि नोटिस भेजकर जानकारी दी जा रही है। आवेदनकर्ताओं को बताया जा रहा है कि किस दस्तावेज की कमी के कारण उनका फॉर्म खारिज किया गया।
आधार कार्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट रुख
प्रशांत भूषण ने यह मांग भी रखी कि आधार कार्ड को वैध पहचान पत्र के रूप में माना जाए और सिर्फ आधार को अपर्याप्त मानकर दावा खारिज न किया जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार को जितना दर्जा कानून में दिया गया है, उससे अधिक नहीं दिया जा सकता। प्रशांत भूषण ने जवाब में कहा कि वे उसी कानूनी दर्जे की मांग कर रहे हैं, उससे अधिक की नहीं।