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अब्बास अंसारी को बड़ा झटका: हेट स्पीच केस में सजा पर नहीं मिली राहत, विधायकी पर मड़राया खतरा

अब्बास अंसारी के लिए यह कानूनी और राजनीतिक रूप से एक बड़ा झटका है। एमपी/एमएलए कोर्ट द्वारा सजा पर रोक की याचिका खारिज होने के बाद उनकी विधायकी खत्म हो गई है।
Post Published By: Asmita Patel
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अब्बास अंसारी को बड़ा झटका: हेट स्पीच केस में सजा पर नहीं मिली राहत, विधायकी पर मड़राया खतरा

Mau News: मऊ के पूर्व विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को हेट स्पीच मामले में बड़ी कानूनी हार का सामना करना पड़ा है। एमपी/एमएलए स्पेशल कोर्ट ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया है। जिसमें उन्होंने अपनी दो साल की सजा पर रोक लगाने की मांग की थी।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, अब्बास अंसारी ने यह अपील सजा के खिलाफ दाखिल की थी, लेकिन कोर्ट ने सुनवाई के बाद उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया, जिससे उनकी विधायकी स्वतः समाप्त हो गई है।

तीन याचिकाएं की थीं दाखिल

अब्बास अंसारी की ओर से सजा पर रोक, सजा की अपील और दोषसिद्धि के खिलाफ कुल तीन याचिकाएं दायर की गई थीं। इन सभी याचिकाओं पर एमपी/एमएलए कोर्ट ने सुनवाई कर फैसला सुनाया और सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। इस फैसले के साथ ही अब अब्बास अंसारी की 2 साल की जेल की सजा बरकरार रहेगी, जिससे उनकी विधायक पद पर अयोग्यता तय हो गई है।

क्या था पूरा मामला?

हेट स्पीच का यह मामला साल 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान का है, जब अब्बास अंसारी ने एक चुनावी सभा में प्रशासनिक अधिकारियों को लेकर विवादित बयान दिया था। उन्होंने मंच से कहा था कि हमारी सरकार बनते ही अधिकारियों का हिसाब पहले से तैयार है। जिससे कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए थे। इस बयान को उकसाने वाला, भड़काऊ और चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना गया और मामला दर्ज हुआ। ट्रायल के बाद कोर्ट ने अब्बास को दोषी मानते हुए 2 साल की सजा सुनाई थी।

विधायकी खत्म, आगे क्या विकल्प?

अब्बास अंसारी की दो साल या उससे अधिक की सजा होने के चलते उनकी विधायकी स्वतः समाप्त हो गई है, क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 191 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत कोई भी जनप्रतिनिधि 2 साल या उससे अधिक की सजा पाए जाने पर अयोग्य हो जाता है। हालांकि, अब्बास अंसारी ने अब इस फैसले को ज़िला जज कोर्ट में चुनौती दी है, जहां मामला विचाराधीन है। यदि वहां से उन्हें राहत नहीं मिलती तो अगला विकल्प हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट होगा।

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