मलियाना दंगों के पीड़ितों ने अदालत के फैसले के बाद कहा, ‘देर भी, अंधेर भी’

डीएन ब्यूरो

उत्तर प्रदेश के मेरठ के मलियाना में मई 1987 में हुए सांप्रदायिक दंगों के मामले के पीड़ितों ने अदालत द्वारा सभी 40 आरोपी को बरी करने के फैसले को ‘देर भी और अंधेर भी’ करार देते हुए इसके खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का इरादा जताया है।

देर भी, अंधेर भी (फाइल)
देर भी, अंधेर भी (फाइल)


उत्तर प्रदेश: मेरठ के मलियाना में मई 1987 में हुए सांप्रदायिक दंगों के मामले के पीड़ितों ने अदालत द्वारा सभी 40 आरोपियों को बरी करने के फैसले को ‘देर भी और अंधेर भी’ करार देते हुए इसके खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का इरादा जताया है।

मेरठ के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश लखविंदर सूद ने शनिवार को मई 1987 में जिले के मलियाना गांव में हुए दंगों के दौरान 63 लोगों की हत्या के मामले में फैसला सुनाते हुए 40 आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया।

मलियाना के शेखां चौक निवासी याकूब अली बताते हैं कि वह 23 मई 1987 के खौफनाक मंजर को याद करके अब भी सिहर जाते हैं। वह बताते हैं कि ‘‘खाकी वर्दी पहने लोगों ने घर में घुसकर वहां मौजूद लोगों को गोलियां मारनी शुरू कर दी और एक समुदाय विशेष के लोगों ने लूटपाट मचाते हुए घरों में आगजनी की, चारों तरफ मौत का मंजर दिखाई देने लगा।’’

अली ने कहा कि लगभग 36 साल बाद आया अदालत का फैसला 'देर भी और अंधेर भी' जैसा ही है। उस जघन्य हत्याकांड में 63 लोग मार दिए गए और किसी भी आरोपी को सजा नहीं हुई। यह न्यायिक व्यवस्था का 'मजाक' है।

उन्होंने कहा कि वह अदालत के आदेश की प्रति मिलते ही वकीलों से राय लेकर उच्च न्यायालय में अपील करेंगे।

यह भी पढ़ें | Bengaluru Violence: यूपी पहुंची बेंगलुरु दंगों कीआंच, धार्मिक उन्माद फैलान के मामले में मेरठ में FIR दर्ज

मलियाना के ही रहने वाले 58 वर्षीय इंतजार भी उन पीड़ितों में शामिल हैं जो न्यायालय के फैसले से संतुष्ट नहीं है। उन्होंने बताया कि दंगों के दौरान उनके घर में आगजनी की गई थी जिससे परिवार की सारी जमा पूंजी खाक में मिल गई थी। इतनी बड़ी वारदात हो गई मगर उसका कोई दोषी ही नहीं है?

उन्होंने कहा कि वह भी सत्र अदालत के निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं।

मलियाना दंगों में अपने पिता को खो चुके महताब का कहना है कि इस मामले में जो भी फैसला हुआ है। उसके खिलाफ वह उच्च न्यायालय में अपील करेंगे।

इसी तरह अफजाल सैफी ने भी निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का इरादा जताया। सैफी के मुताबिक वारदात के दिन उनके पिता यासीन अपने घर लौट रहे थे। रास्ते में दंगाइयों ने उन्हें गोली मार दी।

प्रदेश के पूर्व सिंचाई मंत्री डॉक्टर मेराजुद्दीन ने मलियाना कांड की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) जांच की मांग करते हुए 'पीटीआई-भाषा' से कहा कि उन्हें इस बात का अफसोस है कि इस घटना को लेकर राजनीतिक दलों ने पूरी ईमानदारी नहीं दिखाई।

यह भी पढ़ें | मानवता हुई शर्मशार, मेरठ में 90 साल की बीमार वृद्धा से दुष्कर्म

वर्तमान में राष्ट्रीय लोक दल के उपाध्यक्ष मेराजुद्दीन ने कहा कि 'जो हुआ, सो हुआ' लेकिन अब ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए।

स्थानीय लोगों के मुताबिक 14 अप्रैल 1987 को नौचंदी मेले के दौरान एक पटाखा फूटने से चोटिल हुए सिपाही द्वारा गोली चलाई जाने से अल्पसंख्यक समुदाय के दो लोगों की मौत हो गई थी। देखते ही देखते विवाद बहुत बढ़ गया और हिंदू-मुस्लिम समुदाय आमने-सामने आ गए। बाद में 23 मई 1987 को मलियाना गांव में हुए सांप्रदायिक दंगों में 63 लोग मारे गए और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए।

अपर जिला शासकीय अधिवक्ता सचिन मोहन ने बताया कि इस मामले में करीब 36 सालों तक 800 से ज्यादा तारीखों पर सुनवाई हुई और अंततः जिला एवं सत्र अदालत ने शनिवार को सभी 40 आरोपियों को बरी कर दिया। इस मामले में 40 अन्य आरोपियों की मौत हो चुकी है और कई का पता नहीं चल पाया है।










संबंधित समाचार