भारत में अल्पपोषण बड़ी चिंता, तत्काल ध्यान देने की जरूरत
आहार विशेषज्ञों का कहना है कि अल्पपोषण, खासकर सूक्ष्म पोषक तत्वों (माइक्रोन्यूट्रिएंट) की कमी भारत में अब भी चिंता का बड़ा विषय है, जिस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
काठमांडू: आहार विशेषज्ञों का कहना है कि अल्पपोषण, खासकर सूक्ष्म पोषक तत्वों (माइक्रोन्यूट्रिएंट) की कमी भारत में अब भी चिंता का बड़ा विषय है, जिस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
अल्पपोषण का मतलब है कि कोई व्यक्ति स्वस्थ रहने के लिए जरूरी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में नहीं ले पा रहा है। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) ने इस हफ्ते काठमांडू में जारी ‘द ग्लोबल फूड पॉलिसी रिपोर्ट (जीएफपीआर) 2023’ में कहा था कि वैश्विक स्तर पर अल्पपोषित आबादी 2014 में 57.3 करोड़ से 34.2 फीसदी बढ़कर 2021 में 76.8 करोड़ हो गई।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 से 2021 तक अफगानिस्तान में सर्वाधिक 30 फीसदी अल्पपोषण दर्ज किया गया। इस अवधि में पाकिस्तान में अल्पपोषण का स्तर 17 फीसदी, भारत में 16 फीसदी, बांग्लादेश में 12 फीसदी, नेपाल में छह फीसदी और श्रीलंका में चार फीसदी था।
आईएफपीआरआई के निदेशक (दक्षिण एशिया) शाहिदुर राशिद ने कहा कि भारत खाद्यान्न के उत्पादन और उपलब्धता के मामले में ठीक स्थिति में है, लेकिन वहां पहुंच के संबंध में चुनौतियां व्याप्त हैं।
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उन्होंने काठमांडू में डाइनामाइट न्यूज़ के साथ साक्षात्कार में कहा, “स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त मात्रा में चावल या गेहूं खाना ही काफी नहीं है। भारत में लोगों के आहार में पोषण का अभाव एक बड़ा मुद्दा है। भविष्य में भारत को इस मुद्दे का हल गंभीरता से निकालना होगा।”
राशिद ने कहा, “मिसाल के तौर पर, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को ले लीजिए, जिसे छिपी हुई ‘भुखमरी’ कहा जाता है। भारत और दक्षिण एशिया में यह काफी अधिक है। लिहाजा, हमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के उपाय करने होंगे, ताकि हम भविष्य में एक स्वस्थ पीढ़ी तैयार कर सकें।”
इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईआरआरआई) में भारत की प्रतिनिधि डॉ. रंजीता पुष्कर ने राशिद की राय से सहमति जताई। उन्होंने कहा कि भारत में खाद्य असुरक्षा एक बड़ी समस्या नहीं हो सकती है, लेकिन पोषक तत्वों की कमी वास्तव में एक गंभीर समस्या है।
पुष्कर ने डाइनामाइट न्यूज़ से कहा, “पोषक तत्वों की कमी गंभीर चिंता का विषय है। ऐसा अनुमान है कि गर्मी का स्तर बढ़ने के साथ ही कई फसलों, चावल-गेहूं की गुणवत्ता और उनमें पोषक तत्वों की उपलब्धता में और कमी आएगी। ऐसे में हमें इस कमी की भरपाई के उपाय तलाशने होंगे।”
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एग्रिकल्चरल इकोनॉमिक्स रिसर्च एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रमोद के. जोशी के मुताबिक, अल्पपोषण मुख्यत: वितरण से संबंधित समस्या है, न कि खाद्य सुरक्षा का मुद्दा।
उन्होंने कहा, “भारत का पूरा जोर खाद्य सुरक्षा पर रहा है। अल्पपोषण से निपटने के लिए आपको विविध सामग्री-युक्त आहार की जरूरत है। सरकार खाद्य वितरण प्रणाली के तहत विविध सामग्री-युक्त आहार नहीं उपलब्ध करा सकती है।”
जोशी ने डाइनामाइट न्यूज़ से कहा, “पोषण सुरक्षा के लिए आपको अलग तरह की नीतियों की जरूरत है। खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के मुद्दे को एक ही नीति के जरिये निपटा नहीं जा सकता है।”