झारखंड चुनाव में आदिवासी समाज तय करेगा अगला सीएम, जानें समीकरण

डीएन ब्यूरो

झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले सभी राजनीतिक पार्टियां आदिवासी समाज के वोटर्स पर नजर बनाए हुए हैं। जानें प्रदेश के चुनाव में क्या है इसकी अहमियत।



रांची: झारखंड चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुटी हुई है। इंडिया ब्लॉक ने प्रदेश के चुनाव को लेकर अपना मेनिफेस्टो जारी कर दिया है। जिसमें कई बड़े वादे किये गए हैं।  

इस चुनाव में सभी दलों की नजरें आदिवासी समाज पर बनी हुई है, जिनका प्रदेश के चुनाव में काफी महत्व है, क्योंकि झारखंड की कुल आबादी में आदिवासियों की आबादी करीब 26% है। यही वजह है कि झारखंड में सत्ता की असली चाबी आदिवासियों की हाथ में मानी जाती है। 

आदिवासी समाज का महत्व 

 राज्य की राजनीतिक दिशा को प्रभावित करने में इनकी भूमिका अहम होती है। जिसका जीता जागता उदाहरण 2019 के विधानसभा चुनाव है, जहां प्रदेश की 28 आरक्षित सीटों में से 26 पर बीजेपी चुनाव हार गई थी और इसके साथ ही उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी थी। ऐसे में बीजेपी के साथ-साथ इंडिया ब्लॉक भी आदिवासी मतदाताओं को लुभाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं। यही कारण है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा जारी किए गए मेनिफेस्टो में एसटी आरक्षण का प्रमुख रुप से जिक्र किया गया है।

आदिवासी समाज की कई समस्याएं 

आदिवासी समाज की अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, जीवनशैली और समस्याएं हैं, जिन्हें चुनाव के दौरान अक्सर राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्राथमिकता दी जाती है। आदिवासियों के लिए भूमि अधिकार, रोजगार, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे महत्वपूर्ण हैं, और इन मुद्दों को लेकर वे अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं।

आदिवासी समाज की प्रमुख मांगें

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1. भूमि अधिकार और जल, जंगल, ज़मीन पर नियंत्रण

आदिवासी समाज का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है भूमि पर उनका अधिकार। वे अपने पारंपरिक जल, जंगल, और ज़मीन पर नियंत्रण चाहते हैं। इस विषय पर कानून जैसे "पेसा" (Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act) और "संथाल परगना टेनेंसी एक्ट" जैसे अधिनियम लागू हैं, जिनके तहत आदिवासी क्षेत्रों में भूमि की रक्षा के लिए विशेष नियम बनाए गए हैं। आदिवासी चाहते हैं कि ये कानून सख्ती से लागू हों और उनके अधिकार सुरक्षित रहें।

2. खनन और औद्योगिक परियोजनाओं का विरोध

झारखंड खनिज संपदा से भरपूर राज्य है, लेकिन इससे आदिवासी समाज पर असर पड़ा है। खनन और औद्योगिक परियोजनाओं के चलते कई आदिवासी अपने पारंपरिक निवास स्थलों से विस्थापित हुए हैं। उनकी मांग है कि खनन परियोजनाओं में उनकी सहमति हो और मुआवजा तथा पुनर्वास का प्रावधान हो।

3. रोजगार के अवसर और शिक्षा का विकास

आदिवासी युवाओं के लिए रोजगार एक बड़ा मुद्दा है। वे चाहते हैं कि उनके लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान हो और स्थानीय उद्योगों में उन्हें रोजगार के अवसर मिलें। इसके अलावा, शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में स्कूल, कॉलेज और शिक्षण संस्थान बनाए जाने की भी मांग है।

4. स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार

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आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है, जिससे इन क्षेत्रों में कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हैं। उनकी प्राथमिकता है कि स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा दिया जाए और स्थानीय स्तर पर अस्पताल, डिस्पेंसरी और चिकित्सा सेवाओं का विकास किया जाए।

5. संस्कृति और पहचान की सुरक्षा

आदिवासी समाज अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित रखने के लिए विशेष रूप से संजीदा है। वे चाहते हैं कि उनकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा जाए और इसे सरकारी स्तर पर संरक्षण और बढ़ावा मिले।

निष्कर्ष

आदिवासी समाज झारखंड चुनाव में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। राजनीतिक पार्टियाँ उनके मुद्दों को साधने के लिए योजनाएँ बनाती हैं और वादे करती हैं, लेकिन आदिवासी समाज अब अपने अधिकारों के प्रति काफी जागरूक है। वे उन पार्टियों का समर्थन करते हैं, जो वास्तव में उनकी मांगों को गंभीरता से लेती हैं और उनके अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध हैं। झारखंड चुनाव में आदिवासियों का समर्थन जिस पार्टी को मिलेगा, उसकी जीत की संभावना लगभग तय हो जाती है।

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