राजस्थान के कोटा में प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के लिए छात्र ‘डमी’ स्कूल का कर रहे हैं चयन
बिहार के गया जिले की रहने वाली रिद्धिमा ने अपने गृह जिले में 11वीं कक्षा में दाखिला लिया है, लेकिन वह मीलों दूर राजस्थान के कोटा में रहकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की प्रवेश परीक्षा ‘जेईई-एडवांस्ड’ की तैयार कर रही है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नयी दिल्ली/कोटा: बिहार के गया जिले की रहने वाली रिद्धिमा ने अपने गृह जिले में 11वीं कक्षा में दाखिला लिया है, लेकिन वह मीलों दूर राजस्थान के कोटा में रहकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) की प्रवेश परीक्षा ‘जेईई-एडवांस्ड’ की तैयार कर रही है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक रिद्धिमा ऐसी अकेली विद्यार्थी नहीं है, उसकी तरह इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने वाले करोड़ों छात्र-छात्राएं इसी तरह के ‘डमी’ स्कूलों में प्रवेश लेना पसंद करते हैं, ताकि वे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित कर सकें।
‘डमी’ स्कूल में छात्रों को रोजाना जाने की आवश्यकता नहीं होती है, वे सीधे बोर्ड परीक्षा में शामिल हो सकते हैं।
यह भी पढ़ें |
School Reopening: इस दिन तक रहेंगे स्कूल बंद, राजस्थान सरकार ने बदला अपना फैसला
रिद्धिमा ने , 'कई छात्र अपने गृहनगर में एक डमी स्कूल में प्रवेश लेने का विकल्प चुनते हैं ताकि वे बोर्ड परीक्षा से दो महीने पहले घर वापस जा सकें। कोचिंग पाठ्यक्रम भी तब तक समाप्त हो जाते हैं। वे फिर दो महीने बोर्ड परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और इसके बाद मुख्य लक्ष्य--प्रवेश परीक्षाओं-- के लिए पाठ्यक्रमों को दोहराते हैं।'
मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) की तैयारी कर रहे रूड़की के हर्षवर्धन ने भी अपने गृहनगर के एक डमी स्कूल में दाखिला लिया है। उसने कहा, 'स्कूल में उपस्थिति की कोई जरूरत नहीं है और छात्रों से किसी आंतरिक परीक्षा में शामिल होने की भी उम्मीद नहीं की जाती है।' कोटा में अलग-अलग डमी स्कूलों के पोस्टर उनकी दरों के साथ पूरे शहर में लगे हैं। 15,000 रुपये से लेकर 50,000 रुपये तक के डमी स्कूल उन बोर्डों के आधार पर रकम लेते हैं, जिनसे वे संबद्ध हैं।
कुछ राज्यों के छात्रों के लिए मेडिकल और इंजीनियरिंग संस्थानों में उपलब्ध सीट संख्या को ध्यान में रखते हुए अभ्यर्थी डमी स्कूलों का चयन करते हैं। कोटा में प्रतियोगी परीक्षा के अभ्यर्थियों के बीच आत्महत्याओं की संख्या इस साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के साथ, विशेषज्ञों ने 'डमी स्कूल' की अवधारणा के खिलाफ चेतावनी दी है। इसमें कहा गया है कि नियमित स्कूलों से दूर रहने वाले छात्र अक्सर व्यक्तित्व विकास के लिए संघर्ष करते हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस साल कोटा में 23 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है, जो देश के ‘कोचिंग हब’ में एक साल की सर्वाधिक संख्या है। पिछले साल यह आंकड़ा 15 था। कोटा के जिलाधिकारी ओपी बुनकर ने पीटीआई-भाषा को बताया, 'हमने डमी स्कूलों का मुद्दा सरकार के समक्ष उठाया है।
यह भी पढ़ें |
कांग्रेस नेता ने मणिपुर में हुए अत्याचार की तुलना राजस्थान और बंगाल से करने पर की भाजपा की आलोचना
यह अवधारणा वास्तव में नकारात्मक है और इसे रोकने की जरूरत है।' उन्होंने कहा, 'हमने यह भी देखा है कि डमी स्कूलों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थी प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते हैं, लेकिन बोर्ड परीक्षा में 75 प्रतिशत अंक प्राप्त नहीं कर पाते हैं, जो कि आईआईटी में प्रवेश के लिए एक अनिवार्य शर्त है। आदर्श रूप से, 12वीं कक्षा के बाद प्रवेश परीक्षा की कोचिंग शुरू होनी चाहिए।' विद्यार्थियों की बढ़ती आत्महत्याओं के मद्देनजर पिछले महीने बुलाई गई बैठक में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस मुद्दे को उठाया था। उन्होंने डमी स्कूलों को 'फर्जी स्कूल' कहा था। हाल ही में एक इंटरव्यू में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी कहा कि डमी स्कूलों के मुद्दे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
प्रधान ने कहा था, 'हालांकि ऐसे छात्रों की संख्या कुल छात्रों की संख्या की तुलना में बहुत अधिक नहीं है...लेकिन समय आ गया है कि इस विषय पर गंभीर चर्चा और विचार-विमर्श किया जाए।'