न्यायालय ने सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन पर जोर दिया
उच्चतम न्यायालय ने सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच उचित संतुलन बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए मंगलवार को विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माताओं से शहरी विकास की अनुमति देने से पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन अध्ययन के लिए आवश्यक प्रावधान करने की अपील की। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच उचित संतुलन बनाने की जरूरत पर जोर देते हुए विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माताओं से शहरी विकास की अनुमति देने से पहले पर्यावरण प्रभाव आकलन अध्ययन के लिए आवश्यक प्रावधान करने की अपील की।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अच्छी बात है कि केंद्र के साथ-साथ राज्यों में विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माताओं ने “बेतरतीब विकास” के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर ध्यान देते हुए जरूरी कदम उठाने का फैसला किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विकास से पर्यावरण को नुकसान न हो।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्न की पीठ ने कहा, “ सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक उचित संतुलन बनाने की आवश्यकता है।”
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पीठ ने कहा, “इसलिए हम केंद्र के साथ-साथ राज्य स्तर पर विधायिका, कार्यपालिका और नीति निर्माताओं से अपील करते हैं कि वे शहरी विकास की अनुमति देने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन करने के लिए आवश्यक प्रावधान करें।”
शीर्ष अदालत ने चंडीगढ़ के फेस -1 में आवासीय इकाइयों के विखंडन या अपार्टमेंट बनाने पर रोक लगाते हुए ये टिप्पणियां कीं।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को उद्धृत किया, जिन्होंने चंडीगढ़ के बारे में कहा था, “इसे एक नया शहर बनने दें, भारत की स्वतंत्रता का प्रतीक, अतीत की परंपराओं से मुक्त ... भविष्य में देश के विश्वास की अभिव्यक्ति।”
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पीठ ने कहा, “चंडीगढ़ को कम मंजिला इमारतों वाले शहर के रूप में नियोजित किया गया है, और इसे इतना विकसित किया गया है कि इसकी स्थापना के साठ वर्ष के बाद भी, यह मूल अवधारणा को काफी हद तक बरकरार रखता है। इसी तरह इस 'खूबसूरत शहर' की अवधारणा ' पैदा हुई थी।”