यूपी की अदालत में मुजफ्फरनगर के पूर्व डीएम के खिलाफ कार्यवाही शुरू, जानिये 24 साल पुराना ये मामला

डीएन ब्यूरो

मुजफ्फरनगर जिले के पूर्व जिलाधिकारी विनोद शंकर चौबे के खिलाफ 24 वर्ष पुराने उस मामले में यहां की एक अदालत ने कार्यवाही शुरू कर दी है, जिसमें उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को एक विवादास्पद पत्र लिखा था।

प्रतीकात्मक चित्र
प्रतीकात्मक चित्र


मुजफ्फरनगर: मुजफ्फरनगर जिले के पूर्व जिलाधिकारी विनोद शंकर चौबे के खिलाफ 24 वर्ष पुराने उस मामले में यहां की एक अदालत ने कार्यवाही शुरू कर दी है, जिसमें उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों को एक विवादास्पद पत्र लिखा था।

तत्कालीन जिलाधिकारी ने पत्र में यह अनुरोध किया था कि दो समुदायों से जुड़े अधिकारियों की निष्ठा की जांच किए बगैर उनका पदस्थापन नहीं किया जाए।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का एक स्थगन आदेश हटाये जाने के बाद मानहानि के इस मामले में न्यायिक मजिस्ट्रेट रविकांत की अदालत में पूर्व जिलाधिकारी के खिलाफ कार्यवाही शुरू हुई।

न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सुनवाई की अगली तारीख 12 जून तय की है।

यह भी पढ़ें | एचआईवी रोगी को महिला की हत्या के प्रयास में एक साल की सजा

अदालत ने पिछले सप्ताह चौबे (82) को हिरासत में भेज दिया था, हालांकि आरोपी को बाद में अदालत से जमानत मिल गई।

अधिवक्ता ज्ञान कुमार ने 19 मार्च, 1999 को मानहानि का मामला दायर किया था।

उन्होंने बताया कि बार-बार समन जारी किए जाने के बावजूद आरोपी अदालत में हाजिर नहीं हुआ, जिस पर चौबे के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया। इसके बाद, चौबे अदालत में पेश हुए और पिछले सप्ताह उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक कुमार ने 1997 से 1999 तक मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी रहे चौबे, और पत्र ‘टाइप’ करने वाले दो व्यक्तियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत मामला दायर किया था।

यह भी पढ़ें | Uttar Pradesh: मिलावटी दूध बेचने के मामले में विक्रेता को छह महीने की सजा

सेवानिवृत्त होने के बाद चौबे ने अदालती कार्यवाही पर उच्च न्यायालय का स्थगन आदेश हासिल कर लिया था।

शिकायतर्ता ने आरोप लगाया था कि मीडिया को लीक किये गये पत्र के जरिए उनके समुदाय को अपमानित किया गया।

कुमार ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों को लिखे पत्र में तत्कालीन जिलाधिकारी ने यह अनुरोध किया था कि जाट और मुस्लिम अधिकारियों की निष्ठा की जांच किए बगैर उन्हें जिले में पदस्थ नहीं किया जाए।










संबंधित समाचार