केरल में मादक पदार्थ की समस्या से पुलिसकर्मियों के परिवार भी प्रभावित

डीएन ब्यूरो

केरल में मादक पदार्थ की बढ़ती समस्या पर प्रकाश डालते हुए पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्य में ऐसी स्थिति है कि पुलिसकर्मियों के परिवार के बच्चे भी इसके आदी हो चुके हैं। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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कोच्चि: केरल में मादक पदार्थ की बढ़ती समस्या पर प्रकाश डालते हुए पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्य में ऐसी स्थिति है कि पुलिसकर्मियों के परिवार के बच्चे भी इसके आदी हो चुके हैं।

कोच्चि शहर के पुलिस आयुक्त के. सेतुरमन ने कहा कि राज्य में एक पुलिस अधीक्षक के दो बच्चे नशे के आदी हो गए हैं और उनका परिवार संकट में है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, सेतुरमन ने अंगमाली के पास ‘केरल पुलिस ऑफिसर्स एसोसिएशन (केपीओए)’ के राज्य सम्मेलन को संबोधित करते हुए अपने सहयोगियों से इस मामले को बहुत गंभीरता से लेने का आग्रह किया।

अधिकारी ने कहा, “हमें अपनी आंखें खोलनी चाहिए और देखना चाहिए कि जिन मकानों में हम रहते हैं, वहां ऐसा क्यों हो रहा है। ऐसे कई मामले हैं। सभी रैंक के पुलिसकर्मियों के बच्चों के नशे के आदी होने के उदाहरण हैं। एक एसपी के दो लड़के नशे के आदी हैं। यह एक असहनीय स्थिति है। परिवार संकट में है। इसे बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है।”

सेतुरमन ने उस घटना का भी जिक्र किया, जिसमें तिरुवनंतपुरम जिले में पुलिस के एक अधिकारी के नशे के आदी बच्चे की हत्या कर दी गई थी।

हालांकि, उन्होंने कहा कि केरल में मादक पदार्थों का उपयोग राष्ट्रीय औसत से कम है।

मुख्यमंत्री पिनराई विजयन द्वारा बच्चों पर मादक पदार्थ तस्करों के बढ़ते प्रभाव को लेकर शिक्षकों और अभिभावकों को आगाह करने के दो दिन बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का यह बयान आया है।

मुख्यमंत्री ने कहा था कि उनकी सरकार इस खतरनाक समस्या पर काबू के लिए प्रभावी हस्तक्षेप कर रही है।

उन्होंने 23 मई को कन्नूर में कहा था कि माफिया के जाल में कई बच्चे फंस रहे हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि युवाओं के बीच मादक पदार्थों के उपभोग को लेकर कोई लैंगिक भेद नहीं है।

केरल पुलिस द्वारा मादक पदार्थों की लत के शिकार 21 वर्ष से कम उम्र के युवाओं के बीच किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि उनमें से 40 प्रतिशत 18 वर्ष से कम उम्र के थे।

सर्वेक्षण में अधिक चिंताजनक बात यह सामने आयी कि उनमें (18 वर्ष से कम) से अधिकांश लड़कियां हैं।










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