निजी विश्वविद्यालय पर एक करोड़ का जुर्माना, छात्राओं को शुल्क वापस करने का आदेश, जानिये पूरा मामला

डीएन ब्यूरो

हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान विनियामक आयोग (एचपीपीईआईआरसी) ने महर्षि मार्कंडेश्वर विश्वविद्यालय (एमएमयू) को दो पूर्व एमबीबीएस छात्राओं से लिया गया अतिरिक्त शुल्क वापस करने का निर्देश दिया और विश्वविद्यालय पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

महर्षि मार्कंडेश्वर विश्वविद्यालय
महर्षि मार्कंडेश्वर विश्वविद्यालय


शिमला:  हिमाचल प्रदेश निजी शिक्षण संस्थान विनियामक आयोग (एचपीपीईआईआरसी) ने महर्षि मार्कंडेश्वर विश्वविद्यालय (एमएमयू) को दो पूर्व एमबीबीएस छात्राओं से लिया गया अतिरिक्त शुल्क वापस करने का निर्देश दिया और विश्वविद्यालय पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार राज्य में शिक्षा के नियामक ने सोमवार को एमएमयू और महर्षि मार्कंडेश्वर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एमएमएमसीएच), कुमारहट्टी (सोलन) को डॉ. निवेदिता राव और डॉ. यामिनी को 36 लाख रुपये से अधिक का अतिरिक्त ट्यूशन शुल्क, विश्वविद्यालय शुल्क और छात्रावास शुल्क वापस करने का निर्देश दिया तथा अतिरिक्त शुल्क वसूलने के लिए विश्वविद्यालय पर एक करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया।

आयोग ने विश्वविद्यालय के 2013-14 बैच की एमबीबीएस छात्रा रही दोनों चिकित्सकों की शिकायतों पर इस आशय का एक आदेश पारित किया, जिसमें विश्वविद्यालय और कॉलेज को डॉ. निवेदिता को 14,45,500 रुपये और डॉ. यामिनी को 22,45,500 रुपये वापस करने का निर्देश दिया गया।

आदेश की प्रति सोमवार शाम एचपीपीईआईआरसी की वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई। नियामक ने उल्लेख किया कि आठ बैच (2013-14 से 2020-21) के 1,200 छात्रों से अतिरिक्त शुल्क और अन्य शुल्क वसूल किए गए थे। आयोग ने विश्वविद्यालय और सरकारी एजेंसियों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर 103.96 करोड़ रुपये के अतिरिक्त शुल्क की गणना की और कहा कि छात्र इसकी वापसी के लिए कॉलेज से संपर्क कर सकते हैं।

एचपीपीईआईआरसी के अध्यक्ष मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अतुल कौशिक की अध्यक्षता वाली आयोग की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि आदेश तत्काल प्रभाव से लागू होगा और प्रतिवादियों को तीन महीने के भीतर आयोग के बैंक खाते में जुर्माने के रूप में एक करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया।

आयोग के समक्ष रखे गए रिकॉर्ड और सबूतों के अनुसार, विश्वविद्यालय ने राज्य सरकार की मंजूरी के बिना, साढ़े चार साल के एमबीबीएस पाठ्यक्रम के लिए साढ़े छह साल के ट्यूशन शुल्क के साथ-साथ पांच साल के लिए छात्रावास, विश्वविद्यालय और विकासात्मक शुल्क लिया।

आयोग के समक्ष प्रस्तुत 2017-18 से 2020-21 सत्रों के लिए शुल्क संरचना के अनुसार, ट्यूशन शुल्क सालाना दो समान किस्त में लिया जाएगा और अदालत के आदेशों के अनुपालन में बिल्डिंग फंड, इंफ्रास्ट्रक्चर फंड और डेवलपमेंट फंड के लिए छात्रों से शुल्क नहीं लिया जाएगा।

आयोग ने पूर्व में नौ जून, 2022 को विश्वविद्यालय और कॉलेज के खिलाफ एक आदेश जारी किया था, जिसमें 45 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था और उन्हें एमबीबीएस छात्रों को 103.96 करोड़ रुपये का अतिरिक्त शुल्क वापस करने का निर्देश दिया था।

आयोग के आदेश के खिलाफ विश्वविद्यालय ने उच्च न्यायालय का रुख किया। अदालत ने मामले को यह कहते हुए आयोग के पास भेज दिया कि आदेश पर केवल अध्यक्ष द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे, जबकि अन्य सदस्य ने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, इसलिए कोरम पूरा नहीं हुआ था।










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