Health & Fitness: वैज्ञानिकों का दावा, लो कार्ब डाइट कर सकती है डायबिटीज के जोखिमों को कम

डीएन ब्यूरो

एक नए वैज्ञानिक शोध के नतीजे बताते हैं कि इंसान लो कार्ब डाइट को अपनाकर भी डायबिटीज के जोखिमों को कम कर सकता है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

लो कार्ब डाइट मधुमेह को कम करे में मददगार
लो कार्ब डाइट मधुमेह को कम करे में मददगार


नई दिल्ली: भारत समेत पूरे विश्व में डायबिटीज यानी मधुमेह सबसे बड़ी चुनौती है। लाखों लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं। चिकित्सकीय व वैज्ञानिक आधार पर भी कोई एक और सटीक इलाज न होने के कारण खान-पान, नियमित कसरत और लाइफ स्टाइल के प्रति जागरूकता से ही इसको नियंत्रण में रखा जा सकता है। डायबिटीज के लेकर अब सामने आये एक वैज्ञानिक शोध के नतीजे बताते हैं कि इंसान लो कार्ब डाइट को अपनाकर भी डायबिटीज के जोखिमों को कम कर सकता है। 

लो कार्ब डाइट ऐसा भोजन है, जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा बेहद कम होती है या होती ही नहीं है। भोजन में कार्बोहाइड्रेट का ‘इंटेक’ कम करना वजन घटाने में सहायक माना जाता है लेकिन अब नये वैज्ञानिक शोध के नतीजे इसे डायबिटीज के जोखिमों को कम करने में मददगार मानते हैं। 

अमेरिका की प्रमुख तुलाने यूनिवर्सिटी में हुए नये शोध में कहा गया है कि लो कार्ब डाइट इंसान के ब्लड शूगर स्तर को घटाने और अनियंत्रित डायबिटीज के जोखिम को कम करने में सहायक है। यह उन लोगों के लिये बेहद फायदेमंद है, जो मधुमेह को लेकर जोखिम की स्थिति में है। 

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इस ताजा शोध के नतीजे अमेरिकी मेडिकल एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित प्रमुख मेडिकल जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित किये गये हैं। यह शोध लोगों के दो समूहों पर किया गया। एक समूह को लो कार्ब डाइट अपनाने को कहा गया जबकि दूसरे समूह को उनकी सामान्य व रूटीन डाइट लेने को कहा गया। 

शोधकर्ताओं ने 6 माह बाद चिकित्सकी परीक्षण में रूटीन डाइट वालों की तुलना में लो कार्ब डाइट अपनाने वाले लोगों के हिमोग्लोबीन में ए1सी ड्रॉप्स ज्यादा पाया, जो ब्लड शूगर स्तर को घटाता है।  

शोध में यह भी पाया गया कि लो कार्ब डाइट वालों का वजन भी कम और फास्टिंग ग्लूकोज लेवल भी घटा हुआ था।

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इस शोध के मुख्य लेखक और तुलाने यूनिवर्सिटी ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड ट्रॉपिकल मेडिसन के असिस्टेंट प्रोफेसर क्रिस्टेन डोरान्स कहते हैं कि इस शोध से साफ होता है कि लो कार्बोहाइड्रेट डाइट को यदि मैंटेन रखा जाए तो यह टाइप-2 डायबिटीज के खतरों को कम करने में बड़ा मददगार साबित हो सकता है। हालांकि वे ये भी कहते हैं कि इस दिशा में अभी और ज्यादा शोध की आवश्यकता है।










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