सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मुकदमों के आरोपियों से जुड़े इस मामले में दिया ये बड़ा आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से उन आरोपियों के मुद्दे पर विचार करने के सुझाव पर घटनाक्रम से अवगत कराने को कहा जो किसी एक घटना पर लंबित मुकदमे के लिए हिरासत में हैं। शीर्ष अदालत ने साथ ही कहा कि न्यायिक समय को बचाने और व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए कुछ लीक से हटकर सोचने की जरूरत है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 22 March 2023, 1:39 PM IST
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नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से उन आरोपियों के मुद्दे पर विचार करने के सुझाव पर घटनाक्रम से अवगत कराने को कहा जो किसी एक घटना पर लंबित मुकदमे के लिए हिरासत में हैं। शीर्ष अदालत ने साथ ही कहा कि न्यायिक समय को बचाने और व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए कुछ लीक से हटकर सोचने की जरूरत है।

पिछले साल अगस्त में शीर्ष अदालत ने कहा था कि जब देश ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ का 75वां वर्ष मना रहा है, तो यह आरोपियों के मुद्दे का पता लगाने और उन पर गौर करने का एक उपयुक्त समय है, जो लंबे समय से जेल में हैं। अदालत ने कहा कि हो सकता है उनमें समाज के कमजोर आर्थिक और सामाजिक तबके के आरोपी हों, जो एक घटना के लिए हिरासत में हैं, ऐसे में उन्हें राहत देने के लिए किस तरह के प्रशासनिक आदेश जारी किए जा सकते हैं।

मंगलवार को जमानत याचिकाओं पर विचार करते हुए दिशा-निर्देशों से संबंधित एक अलग मामले में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति ए अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से पूछा कि क्या इस मुद्दे पर कुछ चर्चा हुई है।

पीठ ने कहा, ‘‘प्ली बार्गेनिंग (अभियोजन-बचाव के बीच आरोपों के संबंध में समझौता) हमारे देश में अब तक सफल नहीं हुई है।’’ नटराज ने कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश के बाद विचार-विमर्श हुआ है और केंद्र ने कुछ परिपत्र जारी कर राज्य सरकारों से इस मुद्दे पर आगे बढ़ने को कहा है।

पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति कौल ने कहा, ‘‘हमें लगता है कि यह न्यायिक समय बचाने, न्यायिक प्रणाली को सुगम बनाने की एक पद्धति है। यदि वे सहमत नहीं हैं, तो अलग बात है लेकिन मैंने सोचा कि यह एक अच्छा विचार है ताकि अदालतें अधिक गंभीर मामलों पर ध्यान केंद्रित कर सकें। जितने मामले हैं, इसकी संख्या कभी घट नहीं सकती।’’ साथ ही कहा कि न्यायिक व्यवस्था को सुगम बनाने के लिए लीक से हटकर सोचने की जरूरत है।

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