Vat Savitri Vrat 2020: जानें कब है 'वट सावित्री व्रत', कैसे हुई इसकी शुरुआत
गुरुवार को वट सावित्री का व्रत है। ये व्रत सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग और उनकी कुशलता के लिए उपासना करके समस्त नारीशक्तियों को त्याग, तपस्या और समर्पण की प्रेरणा देती है। डाइनामाइट न्यूज़ पर जानिए इस व्रत का महत्व और कैसे हुई इसकी शुरुआत..
आजमगढ़ः 22 मई को वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग और उनकी कुशलता के लिए उपासना करके समस्त नारीशक्तियों को त्याग, तपस्या और समर्पण की प्रेरणा देती है। वट सावित्री व्रत के दिन मातृशक्तिओं की तपस्या से जगत में खुशहाली रहती है, और इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा होती है जो पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है।
ऐसी मान्यता है कालांतर में पौरणिक ग्रंथों के अनुसार, भद्र देश के राजा अश्वपति बड़े ही प्रतापी और धर्मात्मा थे, उनके इस व्यवहार से आम जनमानस में हमेशा खुशहाली रहती थी, लेकिन राजा अश्वपति संतान ना होने के कारण हमेशा चिंतित रहते थे। जिससे संतान प्राप्ति के लिए वो रोजाना गायत्री मंत्र के साथ यज्ञ और हवन किया करते थे। उनके इस पुण्य प्रताप से माता गायत्री प्रसन्न होकर बोली हे राजन मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हुई, तुम्हारे घर जल्द ही एक कन्या जन्म लेगी जो संसार में नारी शक्ति के महत्व को उजागर करेगी, इसके बाद राजा अश्वपति के घर एक कन्या का जन्म हुआ।
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जिसका नाम सावित्री रखा गया,सावित्री के बड़ी हो जाने पर राजा अश्वपति ने अपनी कन्या से कहा हे देवी, आप स्वयं मनचाहा वर ढ़ूंढकर विवाह कर सकती है, तब सावित्री को एक दिन वन में राजा द्युमत्सेन मिले,सावित्री ने मन ही मन उन्हें अपना पति मान लिया, लेकिन नारद जी राजा अश्वपति से बोले आपकी कन्या ने जो वर चुना है उसकी अकारण जल्द ही मृत्यु हो जाएगी,आप इस विवाह को रोक दें।
राजा अश्वपति के कहने के बावजूद सावित्री नहीं मानी और राजा द्युमत्सेन से शादी कर ली, इसके अगले साल ही राजा द्युमत्सेन की मृत्यु हो गई। उस समय दुखी होकर सावित्री अपने मृत्यु पति को गोदकर में लेकर बैठ गई, तभी यमराज आकर राजा द्युमत्सेन की आत्मा को लेकर जाने लगे तो सावित्री उनके पीछे-पीछे चल पड़ी, यमराज के बहुत मनाने के बाद भी सावित्री नहीं मानीं तो यमराज ने उन्हें वरदान मांगने का प्रलोभन दिया, लेकिन सावित्री ने अपने सूझबूझ और अपनी त्याग तपस्या के बल पर सभी की कुशलता मांगी। सबसे पहले अपने अंधे सास-ससुर के लिए ज्योति मांगी, छिना हुआ राज-पाट मांगा और दूसरे तीसरे में सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान मांगा, जिसे यमराज ने स्वीकार कर चल दिए।
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लेकिन इसके बाद भी जब सावित्री यमराज के पीछे पीछे चलती रही तो यमराज ने कहा अब आपको क्या चाहिए? तब सावित्री ने कहा हे यमदेव आपने सौ पुत्रों की मां बनने का वरदान तो दे दिया, लेकिन बिना पति के मैं मां कैसे बन सकती हूं? यह सुन यमराज स्तब्ध हो गए, इसके बाद उन्होंने राजा द्युमत्सेन के प्राण को अपने बंधन से मुक्त कर दिया। इसलिए परंपरागत रूप से वट सावित्री व्रत चला रहा है,जिससे मातृशक्तियों के त्याग, तपस्या, भक्ति, सेवा, समर्पण और सूझबूझ के आगे पूरा संसार आज भी आत्मसमर्पण करता है।