संग्रहालय एक्सपो में डिजिटल यक्षिणी, पालकी, दिल्ली दरबार की कुर्सी समेत जानिये इन ‘स्टार वस्तुओं’ के बारे में

डीएन ब्यूरो

कई प्राचीन कलाकृतियों के साथ 19वीं शताब्दी के मध्य की एक पालकी, 1911 के दिल्ली दरबार में इस्तेमाल की गई एक शाही कुर्सी, और पटना की प्रसिद्ध दीदारगंज यक्षिणी का एक डिजिटल संस्करण यहां अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय एक्सपो में प्रदर्शित ‘‘स्टार वस्तुओं’’ में से हैं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

संग्रहालय एक्सपो में डिजिटल यक्षिणी
संग्रहालय एक्सपो में डिजिटल यक्षिणी


नयी दिल्ली: कई प्राचीन कलाकृतियों के साथ 19वीं शताब्दी के मध्य की एक पालकी, 1911 के दिल्ली दरबार में इस्तेमाल की गई एक शाही कुर्सी, और पटना की प्रसिद्ध दीदारगंज यक्षिणी का एक डिजिटल संस्करण यहां अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय एक्सपो में प्रदर्शित ‘‘स्टार वस्तुओं’’ में से हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार प्रगति मैदान में तीन दिवसीय आयोजन आजादी का अमृत महोत्सव के दूसरे चरण के तहत आयोजित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को इसका उद्घाटन किया। अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर इसकी शुरुआत हुई है।

एक्सपो में भारत भर के 25 से अधिक संग्रहालयों और संस्थानों के संग्रह से तैयार ‘‘स्टार वस्तुओं’’ की एक विशेष प्रदर्शनी आयोजन स्थल के मध्य क्षेत्र में लगाई गई है। एक्सपो के उद्घाटन से पूर्व एक अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया था, ‘‘इन 75 स्टार वस्तुओं में मूल कलाकृतियां, मूल कलाकृतियों की प्रतिकृति और कुछ संग्रहालयों द्वारा भेजे गए डिजिटल संस्करण शामिल हैं।’’

वर्ष 1911 के दिल्ली दरबार की एक शाही कुर्सी प्रदर्शनी में आगंतुकों का खासा ध्यान आकर्षित कर रही है। प्रदर्शनी में 112 साल पुरानी कुर्सी के अलावा 19वीं शताब्दी के अंत की पालकी राम रेवाड़ी भी रखी गई है जो सिटी पैलेस संग्रहालय, उदयपुर से संबंधित हैं।

कई रियासतों के प्रमुखों और प्रतिनिधियों ने दिल्ली दरबार में भाग लिया था। जॉर्ज पंचम, भारत में अपने राज्याभिषेक दरबार में शामिल होने वाले एकमात्र महाराजा थे। इस समारोह के दौरान जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी को भारत का सम्राट और साम्राज्ञी घोषित किया गया। स्वतंत्रता के बाद, रियासतों का धीरे-धीरे भारत संघ में विलय हुआ।

महाराणा ऑफ मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन (एमएमसीएफ), उदयपुर के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘‘1911 के दिल्ली दरबार के लिए मेवाड़ (उदयपुर) के तत्कालीन शासक महाराणा फतेह सिंह के लिए कुर्सी बनाई गई थी। हालांकि, पुराने रिकॉर्ड के आधार पर, जैसा कि हम जानते हैं, फतेह सिंह दरबार में शामिल नहीं हुए थे।’’

उन्होंने बताया, ‘‘इसलिए, प्रदर्शनी में दरबार की एक पुरानी श्वेत-श्याम तस्वीर प्रदर्शित की गई है, जिसमें हर कोई देख सकता है कि महाराणा के लिए निर्धारित कुर्सी खाली है। वहीं, इस तस्वीर में कई अन्य उपस्थित लोगों को आयोजन स्थल पर देखा जा सकता है।’’

एमएमसीएफ के अधिकारी ने बताया कि पारंपरिक शैली में तैयार लकड़ी की कुर्सी पर हाथ से शानदार नक्काशी बनी है।

उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में सिटी पैलेस संग्रहालय में रखी राम रेवाड़ी भी प्रदर्शनी का एक और प्रमुख आकर्षण है। इस पालकी का अब भी उदयपुर में एक वार्षिक शोभा यात्रा में उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘लकड़ी के साथ चांदी का भी इस पर काम हुआ है और शोभा यात्रा के दौरान देवता को ले जाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है।’’

शाही प्रदर्शनी में 1920-30 की एक तस्वीर को भी प्रदर्शित किया गया है जिसमें महाराणा फतेह सिंह राम रेवाड़ी के साथ ‘श्री विष्णु’ शोभायात्रा में दिखते हैं।

प्रदर्शनी को चार विषयगत खंडों में विभाजित किया गया है और डिजिटल अवतार में पटना की प्रसिद्ध दीदारगंज यक्षिणी ‘मानव शरीर, सौंदर्य और कल्याण’ खंड का हिस्सा है।

वर्ष 1917 में पटना के बाहरी इलाके दीदारगंज में गंगा नदी के तट पर यक्षिणी की मूर्ति मिली थी। उसी वर्ष इसे पटना संग्रहालय में इसे रखा गया।

बिहार संग्रहालय की वेबसाइट के अनुसार मूर्ति 5 फुट 2 इंच लंबी है और चुनार बलुआ पत्थर से बने आसन पर रखी गई है। यक्षिणी प्राचीन भारत के स्त्री सौंदर्य के करीब-करीब सटीक मानकों का प्रतीक है। कुछ विद्वान मूर्ति को मौर्य युग का बताते हैं जबकि अन्य इसे कुषाण काल के अंतिम दिनों का होने की बात कहते हैं।

उद्घाटन समारोह में शामिल बिहार सरकार की कला, संस्कृति और युवा विभाग की सचिव बंदना प्रेयशी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘उसे (यक्षिणी) संग्रहालय से बाहर नहीं ले जाया जा सकता, इसलिए हमने इस एक्सपो के लिए एक (डिजिटल) प्रतिकृति साझा की है।’’

हैदराबाद के सालारजंग संग्रहालय, कोलकाता के भारतीय संग्रहालय और कई अन्य से कलाकृतियों को एक्सपो में प्रदर्शित किया गया है। देवी गजलक्ष्मी की प्रतिकृतियां और बोधि वृक्ष को भी प्रदर्शित किया गया है।

ग्यारहवीं शताब्दी की नटराज की मूर्ति, 19वीं-20वीं शताब्दी के ओड़िशा के मंदिर के दरवाजे की नक्काशी, आंध्र प्रदेश क्षेत्र से उसी अवधि के बाघ का एक मुखौटा और 20वीं शताब्दी की बिदरी पेटी प्रदर्शनी की दुर्लभ वस्तुओं में शामिल हैं।










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