गाय को रखना या एक से दूसरे स्थान पर ले जाना मात्र गो हत्या निषेध कानून के तहत अपराध नहीं, जानिये पूरा मामला
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि गाय-बैल को रखना या उन्हें उत्तर प्रदेश के भीतर एक से दूसरे स्थान पर ले जाना गो हत्या निषेध कानून-1955 के तहत अपराध के दायरे में नहीं आएगा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
प्रयागराज: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसले में कहा है कि गाय-बैल को रखना या उन्हें उत्तर प्रदेश के भीतर एक से दूसरे स्थान पर ले जाना गो हत्या निषेध कानून-1955 के तहत अपराध के दायरे में नहीं आएगा।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने कुशीनगर जिले के रहने वाले कुंदन यादव की जमानत अर्जी स्वीकार करते हुए कहा कि अपर शासकीय अधिवक्ता ने यह साबित करने के लिए कोई तथ्य पेश नहीं किया है कि याचिकाकर्ता ने गाय की हत्या की या फिर गोहत्या का कारण बना।
अदालत ने कहा, “जीवित गाय-बैल को रखना या उन्हें प्रदेश में एक से दूसरे स्थान पर ले जाना मात्रा उक्त कानून के दायरे में नहीं आएगा। किसी गाय या उसके बछड़े को किसी तरह की चोट पहुंचाई गई, जिससे उसका जीवन खतरे में आ गया, यह प्रदर्शित करने के लिए अपर शासकीय अधिवक्ता द्वारा कोई तथ्य पेश नहीं किया गया।”
यह भी पढ़ें |
यूपी के बाहुबली अतीक अहमद पर पुलिस का शिकंजा, गैंगस्टर भाई खालिद अजीम की 25 करोड़ की संपति कुर्क
उच्च न्यायालय ने कहा, “उक्त बातों को देखते हुए प्रथम दृष्टया याचिकाकर्ता गो हत्या निषेध कानून के प्रावधानों के तहत दोषी नहीं है। इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए अदालत का मानना है कि याचिकाकर्ता को जमानत दिए जाने का मामला बनता है। इसलिए जमानत अर्जी स्वीकार की जाती है।”
याचिकाकर्ता के वकील ने अपनी दलील में कहा कि उसके मुवक्किल को इस मामले में झूठा फंसाया गया है। उसने कहा, “गोमांस की बरामदगी का कोई गवाह नहीं है। एक वाहन से छह गायें बरामद की गई थीं, लेकिन कथित अपराध से याचिकाकर्ता का संबंध साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं हैं।”
वकील ने कहा, “याचिकाकर्ता छह मार्च 2023 से जेल में बंद है, जबकि सह-आरोपी गोलू और गुड्डू यादव को पहले ही जमानत पर रिहा किया जा चुका है।”
यह भी पढ़ें |
यूपी के कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता को इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस मामले में मिली राहत, पढ़ें पूरा अपडेट
अदालत द्वारा यह आदेश 24 मई 2023 को पारित किया गया था। हाल ही में इसे उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।