आरोपी को सबक सिखाने के लिए सुनवाई के दौरान कैद की अवधि लंबी नहीं की जा सकती: अदालत
दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपहरण के मामले में एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि आरोपी को सबक सिखाने के लिए सुनवाई के दौरान कारावास की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती।
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपहरण के मामले में एक व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा कि आरोपी को सबक सिखाने के लिए सुनवाई के दौरान कारावास की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती।
न्यायमूर्ति विकास महाजन ने कहा कि लगभग दो साल और नौ महीने तक हिरासत में रहे अभियुक्तों से कोई बरामदगी करने की आवश्यकता नहीं है और मामले की सुनवाई समाप्त होने में लंबा समय लगेगा।
इस महीने की शुरुआत में दिये अपने फैसले में अदालत ने कहा, ‘‘मुकदमें के दौरान, अभियुक्त को केवल सबक सिखाने के उद्देश्य से कारावास नहीं बढ़ाया जा सकता है। अभियोजन और बचाव पक्ष के बीच सुनवाई अभी बाकी है।’’
अदालत ने कहा, ‘‘इस स्तर पर, मामले के गुण-दोष में गए बिना, इस अदालत की राय है .. याचिकाकर्ता ने जमानत देने के लिए एक मामला बनाया है।’’
याचिकाकर्ता को सितंबर 2020 में 24 वर्षीय कथित पीड़ित महिला के परिवार द्वारा गुमशुदगी की शिकायत के बाद गिरफ्तार किया गया था।
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उसके पिता ने आरोप लगाया कि अपहरणकर्ताओं ने फिरौती के रूप में 40 लाख रुपये की मांग की और मांग पूरी नहीं किये जाने पर बेटी को जान से मारने की धमकी दी।
अदालत ने कहा कि अपराध की गंभीरता जमानत से इनकार करने का एकमात्र मानदंड नहीं है और केवल इसलिए कि अपराध गंभीर प्रकृति का था, यह अनिश्चित काल के लिए विचाराधीन कैदी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कम करने का आधार नहीं हो सकता।
अदालत ने कहा कि एक व्यक्ति जिसे दोषी नहीं ठहराया गया है, उसे केवल तभी हिरासत में रखा जाना चाहिए जब उसके फरार होने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या गवाहों को धमकाने की संभावना हो।
अदालत ने पाया किया कि चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है और पीड़िता का ‘एक्जामिनेशन इन चीफ’ दर्ज कर लिया गया है।
‘एक्जामिनेशन-इन-चीफ’ एक अदालती प्रक्रिया है जिसमें वकील अपने कानूनी तर्कों को साबित करने के लिए अपना पहला सवाल अपने स्वयं के गवाह से करते हैं।
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अदालत ने कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष ने 23 गवाहों का हवाला दिया है और मुकदमे को पूरा करने में काफी समय लगेगा। अभियोजन पक्ष का यह भी मामला नहीं है कि याचिकाकर्ता एक आदतन अपराधी या कठोर अपराधी है, जो जमानत पर रिहा होने की स्थिति में, न्याय से भाग सकता है या फिर से ऐसी गतिविधियों में शामिल हो सकता है ।’’
अदालत ने आदेश दिया, ‘‘तदनुसार, याचिका की अनुमति दी जाती है और याचिकाकर्ता को 20,000 रुपये के व्यक्तिगत मुचलके और इतनी ही राशि के एक जमानत बांड के साथ जमानत दी जाती है ।’’