बचपन की प्रतिकूल परिस्थितियों से किस तरह उबर आते हैं गोरिल्ला, पढ़िये ये खास रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

रवांडा के वोल्कानोज नेशनल पार्क में 1974 में एक पहाड़ी गोरिल्ला का जन्म हुआ था। अनुसंधानकर्ताओं ने उसे टाइटस नाम दिया था। टाइटस के शुरुआती कुछ साल उसकी मां, पिता, अन्य नवजात गोरिल्लों और इस प्रजाति के अन्य पशुओं के साथ बीते। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

एक्सेटर विश्वविद्यालय
एक्सेटर विश्वविद्यालय


एक्सेटर:  रवांडा के वोल्कानोज नेशनल पार्क में 1974 में एक पहाड़ी गोरिल्ला का जन्म हुआ था। अनुसंधानकर्ताओं ने उसे टाइटस नाम दिया था। टाइटस के शुरुआती कुछ साल उसकी मां, पिता, अन्य नवजात गोरिल्लों और इस प्रजाति के अन्य पशुओं के साथ बीते।

हालांकि, 1978 में उसके लिए चुनौतीपूर्ण हालात बने। शिकारियों ने टाइटस के पिता और उसके भाई को मार दिया। इसके बाद इस परिवार की उससे छोटी मादा गोरिल्ला को एक अन्य गोरिल्ला ने मार दिया और मां तथा दूसरी बड़ी मादा गोरिल्ला पशुओं के इस समूह को छोड़कर चली गयीं।

उस वक्त टाइटस अपने विकास के दौर से गुजर रहा था। ठीक उसी तरह, जिस तरह आठ या नौ साल का मनुष्य का कोई बच्चा गुजरता है। उसने अपने जीवन के शुरुआती चार वर्ष में अन्य किसी पशु के पूरे जीवन से अधिक समस्या झेली।

मनुष्य में जीवन के शुरुआती दौर में परेशानियों को अक्सर बाद में आने वाली दूसरी समस्याओं से जोड़ा जाता है। शुरुआती दौर में रहने वाली विपरीत परिस्थितियां कुपोषण, उत्पीड़न जैसी अन्य अनेक समस्याओं का कारण मानी जाती हैं।

इस तरह के सदमों से गुजरने वाले लोगों को वयस्क अवस्था में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और सामाजिक शिथिलताओं का सामना करना पड़ता है।

इस तरह के परिणामों के लिए अक्सर अतीत में धूम्रपान, खानपान की खराब आदतों और सुस्त जीवनशैली जैसी स्वास्थ्य जोखिम पैदा करने वाली गतिविधियों को जिम्मेदार माना जाता है।

लेकिन, अनुसंधानकर्ताओं ने पशुओं में भी शुरुआती दौर में प्रतिकूल हालात की वजह से वयस्क अवस्था में इस तरह की समस्याओं के अनुभव का उल्लेख किया है। उदाहरण के लिए बचपन में कठिन दौर से गुजरने वाली मादा गोरिल्ला अपने समुदाय के अन्य समकालीन पशुओं की तुलना में आधा जीवन ही जी पाती हैं।

इसलिए इस तरह के परिणामों के लिए धूम्रपान और खानपान के खराब तरीके अपनाने जैसी गतिविधियां ही कारण नहीं हैं क्योंकि पशुओं में इस तरह की मानवीय प्रवृत्तियां नहीं होतीं।

जीवन में युवावस्था की प्रतिकूल घटनाओं और जीवन के बाद के समय में खराब स्वास्थ्य के बीच संबंध को देखते हुए, कोई आशंका जता सकता है कि जब टाइटस के शुरुआती साल संकट वाले रहे तो उसका जीवन अल्प अवधि का रहा होगा, वयस्क अवस्था में वह बीमार रहा होगा। हालांकि, ये दिलचस्प संकेत भी मिले हैं कि पहाड़ी गोरिल्लाओं में चीजें अलग तरह से काम कर सकती हैं, जबकि उन्हें इंसानों के सबसे करीब माना जाता है।

गोरिल्ला पर दशकों तक निगरानी:

जंगली गोरिल्ला पर कई साल तक अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के रूप में हमने इनमें शुरुआती जीवन के विविध अनुभवों और वयस्क अवस्था में भी अनेक स्वास्थ्य परिणामों को देखा है।

अन्य प्राइमेट के विपरीत पहाड़ी गोरिल्लाओं पर कम उम्र में उनकी मां के चले जाने से लंबे समय तक नकारात्मक असर नहीं दिखाई दिया। शर्त इतनी सी है कि वे उस उम्र तक पहुंच जाएं जिसमें वे खुद का ध्यान रखने में पर्याप्त सक्षम हों।

किसी भी कमउम्र गोरिल्ला के लिए उसकी मां का चले जाना उसके जीवन की अनेक खराब चीजों में से ही एक है। हम पता लगाना चाहते थे कि क्या लचीलेपन या जुझारूपन के एक पैटर्न का अधिक सामान्यीकरण हुआ था। यदि हां, तो क्या हम इस मूलभूत प्रश्न के बारे में कोई अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं कि प्रारंभिक जीवन के अनुभवों के दीर्घकालिक प्रभाव कैसे हो सकते हैं?

इसके लिए हमें जंगली गोरिल्लाओं के जीवनभर के अत्यधिक विस्तृत दीर्घकालिक आंकड़े चाहिए होंगे। गोरिल्ला के लंबे जीवन काल को देखते हुए यह आसान काम नहीं है। वानर विज्ञानियों को पता है कि नर गोरिल्ला 30 से 40 साल तक, वहीं मादा गोरिल्ला 40 से 45 साल तक जी सकती हैं।

इस तरह का अध्ययन करने के लिए दुनिया में सबसे अच्छे आंकड़े ‘डायन फोसी गोरिल्ला फंड’ से मिले हैं जो 55 साल से रवांडा में लगभग रोजाना पर्वतीय गोरिल्लाओं पर नजर रख रहा हैं। हमने फोसी फंड के साथ डॉक्टरल और पोस्ट-डॉक्टरल अनुसंधान किया तथा 20 साल से अधिक समय से काम कर रहे अन्य वैज्ञानिकों के साथ साझेदारी की।

गोरिल्लाओं के 1967 से लेकर बाद तक के इतिहास से हमने 250 से अधिक गोरिल्लाओं के बारे में जानकारी निकाली जिन पर उनके जन्म के समय से लेकर उनकी मृत्यु तक या उनके अध्ययन क्षेत्र से बाहर चले जाने तक नजर रखी गयी।

हमने इन आंकड़ों के आधार पर उन छह प्रतिकूल स्थितियों का पता लगाया जिनका सामना छह साल से कम उम्र के गोरिल्लाओं को करना पड़ सकता है। इनमें उनकी मां का चले जाना, पिता का चले जाना, अत्यधिक हिंसा का शिकार होना, सामाजिक अलगाव, सामाजिक अस्थिरता और भाई-बहन से प्रतिस्पर्धा हैं।

गोरिल्लाओं के ये अनुभव मनुष्यों और अन्य जानवरों में दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव से जुड़ी प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे हैं।

अनेक कमउम्र गोरिल्ला इन चुनौतियों का सामना नहीं कर सके। यह स्पष्ट संकेत है कि गोरिल्ला के मद्देनजर ये अनुभव वाकई प्रतिकूल थे।

हालांकि, हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि इन कठिनाइयों के अधिकतर परिणाम प्रारंभिक जीवन तक ही सीमित थे। छह वर्ष की आयु से अधिक जीवित रहने वाले जानवरों का जीवन काल छोटा नहीं था जो आमतौर पर प्रारंभिक जीवन की प्रतिकूल स्थितियों से जुड़ा होता है। बल्कि, तीन या चार प्रतिकूल परिस्थिति का सामना करने वाले गोरिल्लाओं का बाद का जीवन अपेक्षाकृत बेहतर रहा और उनके वयस्क उम्र में मौत का जोखिम 70 प्रतिशत कम हो गया।

इस कठिनाई का एक हिस्सा, विशेष रूप से नर गोरिल्लाओं के लिए, एक विशेष घटना के कारण हो सकता है जिसे ‘व्यवहार्यता चयन’ कहा जाता है। इसके अनुसार केवल सबसे ताकतवर जानवर ही शुरुआती प्रतिकूलता से बचे रहते हैं, और इस प्रकार वे सबसे लंबे जीवन काल वाले जानवर भी हैं।

व्यवहार्यता चयन हमारी इस कहानी का हिस्सा हो सकता है, वहीं हमारे आंकड़ों की प्रवृत्ति इस बात को इंगित करती है कि पहाड़ी गोरिल्ला भी शुरुआती चुनौतियों के प्रति जुझारू होते हैं।










संबंधित समाचार