दीक्षांत समारोह में कुलपति ने बताई- भारत को नोबेल प्राइज नहीं मिलने की वजहें

डीएन संवाददाता

हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कुलदीप अग्निहोत्री ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य) के दीक्षांत समारोह में भारत को नोबेल प्राइज नहीं मिलने के कई कारण बताये। इस मौके पर 400 से अधिक छात्रों के डिग्री भी दी गयी।

दीक्षांत समारोह को संबोधित करते प्रो. कुलदीप अग्निहोत्री
दीक्षांत समारोह को संबोधित करते प्रो. कुलदीप अग्निहोत्री


नई दिल्लीः 'हमारी शैक्षिक व्यवस्था हमें नौकरी तो देती है, पर वो जुनून नहीं देती जिससे हमारे भीतर बेसिक और नए आईडियाज आ सकें। इसीलिए हम भारतीय नोबेल पुरस्कार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। सच तो ये है कि लीक से हटकर ही इंसान बेसिक आइडियाज ला पाता है और इसी से हमारी पहचान बन पाती है।' ये बातें हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कुलदीप अग्निहोत्री ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कॉलेज (सांध्य) के दीक्षांत समारोह में कही।

दीक्षांत समारोह में 400 छात्रों को डिग्रीयां वितरित

दीक्षांत समारोह के दौरान 400 से अधिक विद्यार्थियों को डिग्रीयां वितरित की गईं, जिसमें मुख्य अतिथि प्रो. अग्निहोत्री ने डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि ‘हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारे विचारों को जन्म देने वाली हमारी मातृभाषा को खत्म करने पर लगी है, जिससे हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना पाते हैं, इसलिए हमें लीक से हटकर चलते हुए अपनी पहचान बनानी होगी।'

उन्होंने कहा कि ‘दिल्ली विश्वविद्यालय का पीजीडीएवी (सांध्य) उन चुनिंदा कॉलेजों में से एक है, जो लीक से हटकर दीक्षांत समारोह का आयोजन करता है। यह कॉलेज के विशेष कार्यक्रमों में से एक है’। समारोह में कॉलेज के चेयरमैन रवींद्र कुमार ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि ‘हमारी शिक्षा मूल्यों पर केंद्रित रही है। इसलिए हम उस परंपरा में रहते हुए भी आधुनिक मूल्यों के साथ समन्वय बनाने में सफल रहे हैं।' 

स्वामी दयानंद सरस्वती के मूल्यों की जरूरत

कॉलेज के प्राचार्य डॉ रवींद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि ‘स्वामी दयानंद सरस्वती ने आधुनिक समाज की जीवनधारा में वैदिक परंपराओं के साथ आधुनिक मूल्यों को भी स्वीकार किया। आज की युवा पीढ़ी को इन्हें संरक्षित करते हुए आगे बढ़ना चाहिए’। दीक्षांत समारोह कार्यक्रम का संचालन डॉ सुरेश शर्मा और डॉ रुक्मिणी ने किया।










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