

घिबली आर्ट और एआई का यह संगम न केवल रचनात्मकता और तकनीकी विकास को चुनौती दे रहा है, बल्कि यह कानूनी और नैतिक विवादों का भी कारण बन रहा है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की रिपोर्ट
नई दिल्ली: सोशल मीडिया पर इन दिनों एक विशेष प्रकार की कला का ट्रेंड तेजी से वायरल हो रहा है। जिसे घिबली आर्ट कहा जा रहा है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, यह कला न केवल आम लोगों के बीच पॉपुलर हो रही है, बल्कि सेलिब्रिटीज और बड़े इवेंट्स की तस्वीरों को भी घिबली स्टाइल में बदला जा रहा है। एआई के जरिए घिबली शैली में बनाई गई इन तस्वीरों का क्रेज दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन इसके साथ ही इसके कानूनी और रचनात्मक पहलुओं पर भी चर्चाएं तेज हो गई हैं।
घिबली आर्ट क्या है और इसकी शुरुआत कहां से हुई?
जापान के मशहूर स्टूडियो घिबली का एनिमेशन आर्ट घिबली आर्ट है। इस स्टूडियो की शुरुआत एनिमेटर हयाओ मियाज़ाकी ने 1985 में की थी। इसकी खास बात यह है कि उन्होंने हर इमेज अपने हाथों से बनाई है। यह आर्ट 80 के दशक में जापान में मशहूर हुई और धीरे-धीरे पूरी दुनिया में लोग इसके मुरीद हो गए।
यह आर्ट जापानी एनिमेशन मूवी 'माई नेबर टोटोरो' और 'स्पिरिटेड अवे' का भी हिस्सा था। लेकिन सोशल मीडिया ने इस आर्ट को फिर से जिंदा कर दिया और यह ट्रेंड करने लगा। एआई की मदद से अब यह पूरी दुनिया में वायरल हो चुका है। इसे फिर से ट्रेंड में लाने का श्रेय OpenAI कंपनी के ChatGPT को जाता है जिसने घिबली स्टाइल आर्ट का फीचर लॉन्च किया।
घिबली को वायरल बनाने में एआई का रोल
हाल ही में चैटजीपीटी ने अपनी नई सुविधा GPT-4o के जरिए घिबली स्टाइल में इमेज जेनरेट करने की क्षमता पेश की। ओपनएआई द्वारा इस फीचर को जोड़ने के बाद यूजर्स को यह मौका मिला कि वे अपनी तस्वीरों को घिबली आर्ट स्टाइल में बदल सकें। इस फीचर ने देखते ही देखते सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी और घिबली इमेजेज का ट्रेंड वायरल हो गया।
चैटजीपीटी की यह क्षमता विशेष रूप से आकर्षक थी क्योंकि यह हयाओ मियाजाकी के बनाए हुए चित्रों के जैसा इफेक्ट देता था। जो कि कई महीनों की मेहनत के बाद बनाए जाते थे। अब एआई के जरिए वह काम सेकंड्स या मिनट्स में हो रहा था और यही कारण था कि यूजर्स ने इसका जमकर उपयोग किया।
घिबली स्टाइल की इमेजेज का क्रेज
अब तक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे इंस्टाग्राम, फेसबुक और X पर लाखों लोग अपनी प्रोफाइल पिक्चर्स, बॉलीवुड फिल्मों, प्रसिद्ध हस्तियों की तस्वीरों और यहां तक कि ऐतिहासिक और समकालीन दृश्यों को भी घिबली स्टाइल में बदल चुके हैं। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क जैसे विश्व नेताओं की घिबली स्टाइल तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। इसके अलावा 2024 के पेरिस ओलंपिक और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों को भी घिबली स्टाइल में प्रस्तुत किया गया। यह दिखाता है कि यह कला शैली न केवल फिल्म इंडस्ट्री तक सीमित रही, बल्कि सभी क्षेत्रों में पॉपुलर हो गई है।
एआई द्वारा घिबली इमेज बनाने पर होड़
घिबली इमेज बनाने के लिए चैटजीपीटी पर होड़ मच गई है। कुछ यूजर्स ने पहले बताया कि यह फीचर केवल प्रीमियम वर्जन में उपलब्ध है, लेकिन बाद में यह भी पाया गया कि चैटजीपीटी के फ्री वर्जन में भी यह सुविधा उपलब्ध है। इसके बाद, एआई इमेज जनरेशन की प्रक्रिया इतनी तेज हो गई कि प्लेटफॉर्म के GPU (ग्राफिकल प्रोसेसिंग यूनिट्स) पर अत्यधिक दबाव बन गया और इससे प्लेटफॉर्म की प्रोसेसिंग धीमी हो गई। सैम अल्टमैन ने ट्विटर पर इस समस्या पर प्रतिक्रिया दी, और बताया कि उन्हें इसका समाधान खोजने की कोशिश की जा रही है।
घिबली आर्ट के कॉपीराइट मुद्दे
जैसे-जैसे घिबली आर्ट का ट्रेंड बढ़ा, वैसे-वैसे इसके कॉपीराइट को लेकर भी चर्चाएं शुरू हो गईं। सोशल मीडिया पर यह सवाल उठने लगा कि क्या एआई द्वारा इस कला शैली की नकल करना सही है और क्या यह कलाकारों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता? खासकर जब यह देखा गया कि एआई Studio Ghibli की तस्वीरों को हू-ब-हू दोहरा रहा है, लेकिन मियाजाकी जैसे कलाकारों को इसके लिए कोई श्रेय नहीं दिया जा रहा है।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि एआई द्वारा बनाई गई घिबली आर्ट का मामला ग्रे जोन में आता है। इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी वकील इवान ब्राउन का कहना है कि Studio Ghibli की कला शैली को कॉपीराइट कानून के तहत पूरी तरह से सुरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन अगर एआई मॉडल को घिबली जैसी रचनाओं पर प्रशिक्षित किया गया है तो यह एक सवाल खड़ा करता है कि क्या यह कानूनी रूप से उचित है या नहीं।
घिबली के संस्थापक और एआई की आलोचना
Studio Ghibli के संस्थापक हयाओ मियाजाकी ने पहले ही 2016 में एआई के खिलाफ अपनी कड़ी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि एआई जनरेटेड आर्ट "जीवन का अपमान" है, क्योंकि इसे बनाने वाले लोग कभी भी कला के गहरे अर्थ को नहीं समझ सकते। मियाजाकी का मानना है कि कला का असली सार तब सामने आता है जब इसे इंसान के अनुभव और भावनाओं के आधार पर तैयार किया जाता है, जो कि एआई कभी नहीं कर सकता।