

राजस्थान का लोकपर्व गणगौर कब मनाया जाएगा, क्या है इसका शुभ मुहूर्त ? जानने के लिए पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नई दिल्लीः गणगौर पर्व हिंदू धर्म का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है, जो राजस्थान में खास तरीके से मनाया जाता है। वैसे तो यह पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है, राजस्थान का गणगौर पर्व काफी फेमस है।
डाइनामाइट न्यूज़ के संवाददाता के मुताबिक, गणगौर पर्व भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है, जिनके नाम से ही इस पर्व का नाम रखा गया है। गण यानी शिव और गौर यानी पार्वती है।
गणगौर पर्व हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। गणगौर पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि जो भी सुहागन महिलाएं इस दिन व्रत रखती है, उसके पति की उम्र लंबी हो जाती है और उनका जीवन सुख भरा हो जाता है।
वहीं, राजस्थान में कुंवारी कन्या भी इस व्रत को रखती है ताकि उन्हें मनचाहा वर प्राप्त हो सकें। कहा जाता है कि गणगौर व्रत करने से भक्तों को भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद मिलता है। आइए इस पर्व को विस्तार से जानते हैं।
कब मनाया जाएगा गणगौर पर्व ?
जैसा कि आप जान ही चुके हैं कि गणगौर पर्व चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 31 मार्च को पड़ रही है। इस पर्व का शुभारंभ 31 मार्च सोमवार सुबह 9 बजे से हो जाएगा और समापन एक अप्रैल सुबह 5 बजकर 42 मिनट पर होगा।
गणगौर व्रत का शुभ मुहूर्त
गणगौर व्रत का शुभ मुहूर्त कुछ इस प्रकार है-
1. गणगौर व्रत में सूर्योदय का समय- सुबह 6 बजकर 12 मिनट
2. सूर्यास्त का समय- शाम 6 बजकर 38 मिनट
3. ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 46 मिनट से लेकर सुबह 5 बजकर 34 मिनट तक
4. अमृत काल सुबह 7 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 48 मिनट तक
5. अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 6 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 55 मिनट तक
6. चंद्रोदय का समय रात 7 बजकर 26 मिनट पर
7. चंद्रमा अस्त का समय रात 8 बजकर 56 मिनट पर
8. पूजा के लिए अभिजीत मुहूर्त उत्तम सिद्ध होगा।
गणगौर पर्व राजस्थान में क्यों है इतना खास ?
भारत में हर राज्य के रीति-रिवाज अलग-अलग होते हैं, क्योंकि भगवान के प्रति सबकी मान्यता अलग होती है। हर राज्य में एक ऐसा त्योहार होता है, जिसे वह काफी धूमधाम से मनाते हैं। ऐसे में राजस्थान का प्रसिद्ध त्योहार गणगौर है, जिसे वह काफी हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि इस राजस्थान के लोग भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह कराते हैं और फिर उनकी विशेष पूजा करते हैं। इसके अलावा सुहागन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां बनाती है और फिर उन्हें सिर पर उठाकर नदी में विसर्जित कर देती है।