अदालत ने सामूहिक बलात्कार मामले में 5 लोगों की जेल की सजा को संशोधित किया

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2014 के एक सामूहिक बलात्कार मामले के पांच दोषियों को निचली अदालत द्वारा शेष जीवन तक दी गई उम्रकैद की सजा को संशोधित करके आजीवन कारावास में बदल दिया।

सामूहिक बलात्कार (फाइल)
सामूहिक बलात्कार (फाइल)


नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2014 के एक सामूहिक बलात्कार मामले के पांच दोषियों को निचली अदालत द्वारा शेष जीवन तक दी गई उम्रकैद की सजा को संशोधित करके आजीवन कारावास में बदल दिया।

न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता और न्यायमूर्ति पूनम ए बंबा की पीठ ने अपने फैसले में कहा, ‘‘सम्पूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों, अपीलकर्ताओं की पृष्ठभूमि, समाज के जिस वर्ग से वे संबद्ध हैं, उनकी उम्र और इन बातों को ध्यान में रखते हुए कि (अपीलकर्ता अमन के अलावा) शेष सभी पहली बार अपराध में शामिल थे और उन्होंने पश्चाताप व्यक्त किया है, हमारी सुविचारित राय है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(डी) (सामूहिक दुष्कर्म) के तहत दंडनीय अपराध के लिए आजीवन कारावास न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगा।’’

खंडपीठ ने अपने 35 पृष्ठ के फैसले में कहा, 'इस प्रकार, आईपीसी की धारा 376 (डी) के तहत अपीलकर्ताओं की सजा को 'शेष प्राकृतिक जीवन के लिए उम्रकैद की सजा' से 'आजीवन कारावास' की सजा में तब्दील किया जाता है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा कि पांच दोषी - अमन, राहुल, मोहम्मद वसीम, सनी और बाल किशन - निचली अदालत के उन फैसलों में कोई भी अवैधता प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं, जिसके तहत उन्हें विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था।

पांचों अभियुक्तों ने अपनी दोषसिद्धि और सजा को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

अभियोजन पक्ष के मुताबिक नेपाल की रहने वाली पीड़ित महिला अपनी बहन से मिलने जालंधर जा रही थी। अप्रैल 2014 में जब यह घटना हुई तब वह पंजाब के लिए ट्रेन पकड़ने के वास्ते दिल्ली आई थी।

यहां एक रेलवे स्टेशन पर उसकी मुलाकात इन पांच लोगों में से एक से हुई, जो उसे खाना दिलाने के बहाने बाहर ले गया। अभियोजन पक्ष ने कहा कि महिला को उस वैन में राजघाट ले जाया गया, जिसमें चार अन्य साथी पहले से मौजूद थे।

अभियोजन पक्ष ने कहा, इसके बाद वे लोग उसे एक कमरे में ले गए, जहां सभी पांच लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया। इसमें कहा गया है कि बाद में वह एक व्यक्ति से मिली, जिसे उसने अपनी आपबीती सुनाई और उसके बाद पुलिस को सूचित किया गया।

दोषियों के वकील ने इस आधार पर सजा कम करने का आग्रह किया कि वे युवा थे, अपराध के समय उनकी उम्र लगभग 25 वर्ष थी और वे अपने परिवार में अकेले कमाने वाले थे।

वकील ने कहा कि अपीलकर्ता लगभग 10 वर्षों से हिरासत में हैं, पश्चाताप कर रहे हैं और उन्होंने सबक सीख लिया है। बचाव पक्ष के वकील ने अदालत से आग्रह किया कि उन्हें सुधरने का मौका दिया जाए।

 










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