Chhath Mahaparva: चैत्र छठ महापर्व की शुरुआत, 2 अप्रैल को मनाया जाएगा खरना

डीएन ब्यूरो

चैत्र छठ महापर्व विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

चैत्र छठ महापर्व
चैत्र छठ महापर्व


नई दिल्ली: मंगलवार से महापर्व चैत्र छठ का आयोजन शुरू हो गया है। इस दौरान व्रतियों द्वारा नहाय-खाय की अनुष्ठान प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है। विशेष रूप से इस दिन व्रती सूर्य देव की पूजा करती हैं, जिसमें पान के पत्ते, सुपारी और अक्षत अर्पित करना अनिवार्य होता है। इसके बाद पीतल के पात्र में तैयार प्रसाद, जिसमें कद्दू, चने की दाल और चावल शामिल होते हैं, व्रती द्वारा श्रद्धा भाव से ग्रहण किया जाता है।

यह महापर्व विशेष रूप से चैत्र माह में मनाया जाता है और इसे कष्टकारी माना जाता है, फिर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस पर्व को अपनी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाते हैं। चैत्र छठ का महत्व इस रूप में है कि व्रति एक कड़े तपस्वी आचार का पालन करती हैं, जिसमें आहार का विशेष ध्यान रखा जाता है और सूर्य देव की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन की पूजा का महत्व विशेष रूप से शुद्धता, संयम और श्रद्धा में निहित होता है।

खरना 2 अप्रैल को

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नहाय-खाय के बाद व्रति 2 अप्रैल को खरना का आयोजन करेंगी। खरना महापर्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें व्रती विशेष प्रकार का प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस दिन व्रतियों द्वारा नए धान से निकाले गए चावलों से तैयार खीर का प्रसाद ग्रहण किया जाता है। खरना का यह अनुष्ठान विशेष रूप से शाम के समय किया जाता है। व्रति इस दिन आस्था और विश्वास के साथ विशेष तैयारी करती हैं।

खरना के दिन विशेष रूप से गेहूं को धोकर सुखाया जाता है, इसके बाद उसे चक्की में पिसवाकर आटा तैयार किया जाता है। इस आटे से रोटियां बनाई जाती हैं, जिनसे व्रति सूर्य देवता की पूजा करती हैं। इसके बाद व्रति मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से गुड़ और चावल से खीर बनाती हैं।

यह खीर श्रद्धा से पूजा के दौरान ग्रहण की जाती है। कुछ परिवारों में इसके अलावा चावल, दाल और पूड़ियां भी बनती हैं, जो विशेष रूप से व्रत के दौरान सेवन के लिए तैयार की जाती हैं। इस दिन की पूजा और अनुष्ठान से व्रतियों को आस्था और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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सूर्य को पहला अर्घ्य 3 अप्रैल को

चैत्र छठ महापर्व के दौरान व्रति सूर्य षष्ठी के दिन यानी 3 अप्रैल को डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य अर्पित करेंगी। इसके बाद 4 अप्रैल को उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य अर्पित किया जाएगा, जिसके साथ ही इस महापर्व का समापन होगा। व्रतियों द्वारा सूर्य देवता की पूजा और अर्घ्य अर्पण के इस अनुष्ठान में श्रद्धा और समर्पण की भावना प्रमुख रूप से देखने को मिलती है।










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