निरंकुश शासक: जानिये सबसे पहले क्यों पत्रकार रहते हैं निशाने पर, पढ़िये लोगों पर नियंत्रण से जुड़ी ये रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

निरंकुश शासक जानते हैं कि लोगों को नियंत्रित करने की दिशा में पहला कदम मीडिया पर काबू पाने का है और इसलिए पत्रकार अक्सर ही निशाने पर रहते हैं। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

मैक्वेरी यूनिवर्सिटी
मैक्वेरी यूनिवर्सिटी


ब्रिसबेन: निरंकुश शासक जानते हैं कि लोगों को नियंत्रित करने की दिशा में पहला कदम मीडिया पर काबू पाने का है और इसलिए पत्रकार अक्सर ही निशाने पर रहते हैं।

जब हम विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की 30वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो एक आंकड़ा है जो दुनियाभर में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति को काफी कुछ बयां करता है। यह है कि पिछले साल एक दिसंबर की स्थिति के अनुसार, पूरे विश्व में 363 पत्रकार जेलों में थे।

उसके बाद से निश्चित रूप से यह संख्या बढ़ ही गयी है। इनमें हाल में वॉल स्ट्रीट जर्नल के मॉस्को संवाददाता इवन गेर्शकोविच को जासूसी के आरोपों में रूस द्वारा गिरफ्तार करना और जेल में डालना शामिल है।

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक बयान में कहा, ‘‘इवन फ्री प्रेस के सदस्य हैं जो गिरफ्तारी से पहले तक खबर जुटाने में लगे थे। इसके अलावा अन्य कोई भी धारणा गलत है।’’

पत्रकारों को हिरासत में लिये जाने के मामले कई कारणों से बढ़ रहे हैं। पिछले साल यह संख्या 302 थी। बीच-बीच में संख्या कुछ कम होती रही है, लेकिन 2001 से यह अंतत: बढ़ ही रही है।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की शुरुआत उस सिद्धांत के बचाव के लिए की गयी थी जिसे किसी भी जीवंत लोकतंत्र के लिए आधार-स्तंभ माना जाता है।

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आंकड़ों के अनुसार 199 पत्रकारों के जेल में होने के पीछे देशद्रोह, जासूसी और राष्ट्रीय सुरक्षा के उल्लंघन तथा आतंकवाद जैसे आरोप हैं। यह जानकारी ‘कमेटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ जर्नलिस्ट्स’ ने दी।

अल-कायदा द्वारा 9/11 को किये गये हमले के तुरंत बाद, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 'आतंकवाद के खिलाफ युद्ध' की घोषणा की थी।

अतीत के अनेक संघर्षों के विपरीत, आतंकवाद के खिलाफ युद्ध जातीयता, जमीन या पानी जैसी ठोस चीजों पर बहुत अधिक नहीं था, जहां पत्रकार सहभागी होने के बजाय गवाह होते हैं।

ये लड़ाई विचारों की, उदार लोकतंत्र और इस्लामी लोकतंत्र के बीच थी।

9/11 के युद्ध के बाद आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा हर जगह राजनीतिक क्षेत्र के लोगों के लिए कसौटी बन गये। इनसे सरकारों को कड़े कानून बनाने का जैसे लाइसेंस मिल गया और सरकारों की शक्ति सूचना एवं विचारों जैसी चीजों पर नियंत्रण तक बढ़ने लगी।

देशों ने आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषाओं में ढील देकर ये सब किया। उदाहरण के लिए मिस्र में मानवाधिकार समूहों ने सरकार पर आतंकवाद को ऐसे कानून पारित करने का बहाना बनाने का आरोप लगाया जिन्हें सरकार की आलोचना करने वालों का मुंह बंद करने के लिए इस्तेमाल किया जाने लगा।

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ईरान पत्रकारों के प्रति सख्ती को लेकर वर्तमान में सूची में सबसे ऊपर है, जहां दर्जनों पत्रकारों को, वहां पर महिलाओं द्वारा हेड स्कार्फ से सिर ढकने को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों को कवर करने के लिए कैद किया गया है।

चीन दूसरे स्थान पर है जहां शिनजियांग प्रांत में उइघर समुदाय पर सरकार की कार्रवाई को कवर करने की कोशिश करने वाले कई पत्रकारों पर कठोर कार्रवाई की गई है।

वर्ष 2016 में एक असफल तख्तापलट के बाद से, तुर्की भी आलोचकों और पत्रकारों को आतंकवाद के आरोपों में कैद कर रहा है।

एक अन्य, परेशान करने वाला आंकड़ा 86 प्रतिशत है जो पत्रकारों की हत्याओं से संबंधित है और मामले अनसुलझे ही हैं। अगर एक पल के लिए उस पर विचार करें तो हम पाते हैं कि पत्रकारों के 10 हत्यारों में से लगभग नौ तो आजाद हैं और उन्हें कोई सजा नहीं हुई।










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