New Delhi: देश के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद उपराष्ट्रपति की रेस अब तेज हो गई है। चुनाव आयोग ने प्रक्रिया की आधिकारिक शुरुआत कर दी है और राज्यसभा सचिवालय के महासचिव पीसी मोदी को रिटर्निंग ऑफिसर नियुक्त किया गया है। उनके साथ दो सहायक रिटर्निंग ऑफिसर भी नियुक्त किए गए हैं, जिससे अब उम्मीदवारों की घोषणा और नामांकन की प्रक्रिया जल्द शुरू होने की उम्मीद है।
सूत्रों के अनुसार, इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि NDA, विशेष रूप से बीजेपी, किसे अपना उम्मीदवार बनाएगी? 2022 में जगदीप धनखड़ को जब उपराष्ट्रपति बनाया गया था, तब यह एक ‘आश्चर्यजनक चयन’ माना गया था। लेकिन अब पार्टी के भीतर से संकेत मिल रहे हैं कि इस बार ऐसा कोई प्रयोग नहीं दोहराया जाएगा।
ध्यान देने वाली बात है कि धनखड़ ने 21 जुलाई को पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने विपक्ष द्वारा लाए गए जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने वाले नोटिस को स्वीकार कर लिया था, जिससे सत्ता पक्ष में असंतोष उभर आया। नतीजतन, उन्होंने उसी दिन इस्तीफा दे दिया।
इस घटनाक्रम के बाद उपराष्ट्रपति का पद रिक्त हो गया और राज्यसभा की अध्यक्षता फिलहाल उपसभापति हरिवंश कर रहे हैं। चर्चा है कि हरिवंश का नाम बतौर संभावित उम्मीदवार गंभीरता से विचाराधीन है। जेडीयू सांसद के रूप में उनका सात साल का अनुभव और सरकार के साथ अच्छा तालमेल उन्हें एक सुरक्षित और भरोसेमंद विकल्प बनाता है।
बीजेपी की रणनीति में यह भी देखा जा रहा है कि इस बार संगठन से जुड़े और सक्रिय राजनीति में भरोसेमंद चेहरे को उम्मीदवार बनाया जाए। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि अबकी बार जातीय, सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन को भी ध्यान में रखा जाएगा, क्योंकि अगले साल तमिलनाडु, असम, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में चुनाव प्रस्तावित हैं।
गौर करने वाली बात यह भी है कि अब तक केंद्र सरकार ने सहयोगी दलों को संवैधानिक पदों पर सीमित प्रतिनिधित्व दिया है। ऐसे में यह भी संभावना है कि इस बार कोई सहयोगी दल का चेहरा भी सामने आए, ताकि गठबंधन की मजबूती का संदेश जाए।
विपक्ष भी मैदान में उतरने की तैयारी में है। हालांकि संख्या बल एनडीए के पक्ष में है (425 सांसदों का समर्थन), लेकिन विपक्ष चुनाव में उतरकर एक सशक्त राजनीतिक संदेश देना चाहता है, जैसा कि उन्होंने 2022 में मारग्रेट अल्वा को उतारकर किया था।
अब सबकी नजर बीजेपी की कोर टीम की बैठक पर है, जहां अंतिम नाम पर मुहर लगेगी। धनखड़ के तीखे कार्यकाल से सबक लेते हुए बीजेपी इस बार “सहनशील लेकिन प्रभावशाली” नेतृत्व चाहती है।