New Delhi: भारत ने जून 2025 तिमाही में 7.8% की जीडीपी वृद्धि दर्ज कर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में खुद को फिर स्थापित किया है। अब सवाल यह है कि जुलाई-सितंबर (Q2) की तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था किस दिशा में आगे बढ़ेगी? विशेषज्ञों का मानना है कि इस गति को बरकरार रखना संभव है, लेकिन इसके लिए कई आंतरिक और वैश्विक चुनौतियों से निपटना होगा, जैसे अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ, रुपये की अस्थिरता, निर्यात में संभावित गिरावट, मानसून की स्थिति और महंगाई।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
1. मॉर्गन स्टेनली (Morgan Stanley)
मॉर्गन स्टेनली ने हालिया रिपोर्ट में कहा कि भारत की घरेलू मांग में स्थिरता है, लेकिन वैश्विक मांग में नरमी और अमेरिका-चीन व्यापार तनाव से भारत की निर्यात पर निर्भर अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है।
2. भारतीय आर्थिक निगरानी केंद्र (CMIE)
CMIE का मानना है कि कृषि क्षेत्र की अच्छी शुरुआत और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की स्थिरता अगली तिमाही में ग्रोथ को बनाए रख सकती है, लेकिन रिटेल महंगाई और मानसून की गुणवत्ता पर नजर रखना ज़रूरी होगा।
3. एसबीआई रिसर्च
एसबीआई का आकलन है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में GDP वृद्धि 6.9% से 7.2% के बीच रह सकती है, लेकिन अमेरिका और यूरोप में संभावित मंदी का भारत के निर्यात पर दबाव रहेगा।
अमेरिकी टैरिफ का असर
अमेरिका का कदम
अमेरिका ने जुलाई 2025 में भारत के कुछ प्रमुख उत्पादों जैसे स्टील, फार्मा और ऑटो पार्ट्स पर टैरिफ बढ़ाने का संकेत दिया है, जिसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना है।
प्रभाव
• निर्यात में गिरावट: इन क्षेत्रों से अमेरिका को निर्यात घट सकता है, जिससे व्यापार संतुलन प्रभावित होगा।
• मुनाफे पर असर: इन उद्योगों में मुनाफा कम होने की आशंका है, जिससे इन्वेस्टमेंट घट सकता है।
• डाइवर्सिफिकेशन का दबाव: भारत को अपने निर्यात बाजारों को अमेरिका से हटाकर अन्य क्षेत्रों (जैसे अफ्रीका, मिडिल ईस्ट) की ओर मोड़ना पड़ सकता है।
सकारात्मक पक्ष
टैरिफ के जवाब में भारत आंतरिक मांग और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसे अभियानों को गति दे सकता है।
भारत पर अमेरिकी टैरिफ का असर: अर्थव्यवस्था से रोज़गार तक गहराता संकट, घट सकती है GDP
रुपया बनाम डॉलर: गिरावट की चिंता या अवसर?
जुलाई-अगस्त 2025 में भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 84.70 के आसपास ट्रेड कर रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि डॉलर की मजबूती और विदेशी पूंजी निकासी के कारण रुपया दबाव में है।
असर
• आयात महंगा होगा: तेल, गैस, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे वस्तुओं की लागत बढ़ेगी।
• महंगाई पर दबाव: आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से रिटेल महंगाई (CPI) बढ़ सकती है।
• निर्यात को फायदा: रुपया कमजोर होने से भारतीय उत्पाद वैश्विक बाजार में सस्ते होंगे, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
सरकार और आरबीआई की भूमिका
RBI बाजार में हस्तक्षेप करके अत्यधिक गिरावट को रोक सकता है, लेकिन वो रुपये को स्थिर बनाए रखने के साथ-साथ विदेशी मुद्रा भंडार की हानि से भी बचना चाहेगा।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की चाबी
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और ग्रामीण मांग की भूमिका बड़ी है। मानसून की स्थिति अब तक औसत से थोड़ी कम रही है।
• फसल उत्पादन पर असर: अगर बारिश में और देरी हुई तो खरीफ की फसल प्रभावित हो सकती है।
• ग्रामीण खर्च में कटौती: कृषि आय घटने से ग्रामीण उपभोग पर असर पड़ सकता है।
• महंगाई बढ़ सकती है: सब्जियों, अनाजों और दूध जैसे आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में तेजी संभव है।
टिकेगा या टूटेगा भरोसा?
• शहरी इलाकों में उपभोग: अभी भी मजबूत बना हुआ है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, रियल एस्टेट और वाहन जैसे क्षेत्रों में।
• ग्रामीण मांग: मानसून की स्थिति के आधार पर अगले कुछ हफ्तों में इसका रुझान स्पष्ट होगा।
यदि सरकार ग्रामीण इलाकों में सब्सिडी, DBT और रोजगार योजनाओं को बढ़ावा देती है, तो यह संतुलन बना रह सकता है।
निवेश और निजी क्षेत्र की भागीदारी
• सरकारी निवेश: अभी भी इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस बना हुआ है।
• निजी निवेश: ब्याज दरों में स्थिरता और नीति अनुकूल माहौल बनाए रखना होगा ताकि निजी क्षेत्र निवेश बढ़ाए।
• FDI: अमेरिका-चीन तनाव के कारण भारत को वैकल्पिक निवेश गंतव्य के रूप में देखा जा रहा है, जो सकारात्मक संकेत है।