वन महोत्सव : प्रकृति के प्रति इंसानी प्रेम और कर्तव्य का पर्व

डीएन संवाददाता

वैसे तो आज का मानव अब जंगलो व प्रकृति के महत्व को समझने लगा है।पर बहुत से लोग अब भी प्रकृति का दोहन कर रहे है।अगर अब भी हम सचेत नही हुये तो इसके गंभीर परिणाम सम्पूर्ण मानव जाति को भुगतने पड़ेंगे

वृक्ष  आरोपण
वृक्ष आरोपण


अमरोहा: जुलाई का महीना है और चारों ओर वन महोत्सव की धूम मची है।वृक्ष लगाने की एक होड़ सी मची है।

यह है आज के दौर का मेरा भारत महान।हर व्यक्ति अधिक से अधिक वृक्ष लगाकर देश की सेवा करना चाहता है और किसी ने किसी रूप में पर्यावरण संवर्धन में अपनी भूमिका निभाना चाहता है। धरती के आँचल को हरा-भरा रखने का यह प्रयास जहाँ प्रकृति के प्रति इंसान के कर्तब्य और प्रेम को दर्शाता हैं वहीं  वर्तमान में इंसान की बढ़ती जागरूकता का संकेत भी देता है।  

देश के अलग लग क्षेत्रों में वन महोत्सव का आयोजन अलग लग तरीके से किया जा रहा है।  वैसे तो इस महोत्सव मे सभी लोग बढ़ चढ़कर प्रतिभाग कर रहे है पर शिक्षको का जोश व उत्साह इस महोत्सव को विशेष बुलन्दियो पे ले जा रहा है।प्रत्येक शिक्षक देश सेवा व समाजसेवा की भावना से वृक्ष लगाने मे बढ़ चढ़कर प्रतिभाग कर रहा है।वही दूसरी ओर स्कूल के बच्चे भी इस पर्व मे तन-मन से लगे हैं।

वन महोत्सव का मतलब है पेड़ लगाने का उत्सव. वन महोत्सव भारत में प्रतिवर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में  मनाया जाने वाला उत्सव है. इस उत्सव पर देशभर मे  लोगों द्वारा घरों, ऑफिसों, स्कूलों, कॉलेजों आदि में लाखो पौधों का पौधारोपण किया जाता है. इस अवसर पर अलग अलग स्तर पर जागरुकता अभियान चलाकर लोगो को पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलत व जागरूक बनाया जाता है. 

इस उत्सव की अनौपचारिक शुरुआत जुलाई 1947 में दिल्ली में  डा. राजेन्द्र प्रसाद , मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद और पं. जवाहरलाल नेहरु ने की थी.परन्तु इस आन्दोलन का औपचारिक रूप से  सूत्रपात तत्कालीन कृषि मंत्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने 1950 में किया था.
इस उत्सव पर बहुत से संगठनों व वॉलंटियर्स द्वारा निः शुल्क पौधों का वितरण भी किया जाता है. इस वन महोत्सव की सहायता से बहुत से उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है- जैसे छाया व सौंदर्यकरण, भूमि संरक्षण,वैकल्पिक इंधन व्यवस्था, खाद्यान्न संसाधन बढ़ाना, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिये खेतों के चारों ओर शेल्टर बेल्ट बनाना, पशुओं के लिये चारा उत्पादन आदि. हमारे पूर्वजो को पेड़ पौधो व प्रकृति से बहुत लगाव था।वह वृक्षो की अपनी सन्तानो की तरह ही देखभाल करते थे। कुछ वृक्षो की वो पूजा भी किया करते थे क्योकि बहुत से धार्मिक ग्रन्थो व वेदो मे वृक्षो की देखभाल को पूण्य का काम माना जाता था।

वृक्षों का सारा जीवन केवल दूसरों की भलाई करने के लिये ही है. वृक्षो से हमे इंर्धन, इमारती लकड़ी व औषधि मिलती हैं.ये  हम लोगों को धूप,वर्षा और पाले से बचाते हैं। वृक्ष वर्षा करने मे सहायक है तथा वृक्ष की जड़ें भूमि के कटाव को रोकने में सहायता करतीं हैं।वृक्ष ही हमारे साँस लेने के लिये ऑक्सिजन गैस बनाते हैं. कुल मिलाकर पेड़ हमारी पहली साँस से लेकर अंतिम संस्कार तक मदद करते है।

जैसे -जैसे समय बीतता गया मानव  जनसंख्या बढ़ती गयी और विश्व औधोगिकरण  व नगरीकरण की ओर अग्रसर होता गया। विकास की इस दौड़ मे मानव अपने स्वार्थ के लिए वनों को अंधाधुंध काटता गया। जिसके परिणाम स्वरूप प्रकृति का सन्तुलन दिन- ब- दिन बिगड़ता गया।प्रकृति के सन्तुलन बिगड़ने के कारण ही विश्व भूकम्प, ग्लोबल वार्मिंग,सूखा, बाढ़, आंधी व तूफान जैसी आपदाओ का सामना कर रहा है। बेतहाशा वनों की कटाई से कई वन्य प्राणी लुप्त हो गए एवं अनेक विलोपन के कगार पर है।

वैसे तो आज का मानव अब जंगलो व प्रकृति के महत्व को समझने लगा है।पर बहुत से लोग अब भी प्रकृति का दोहन कर रहे है।अगर अब भी हम सचेत नही हुये तो इसके गंभीर परिणाम सम्पूर्ण मानव जाति को भुगतने पड़ेंगे।अब समय आ गया है कि सभी लोग प्रकृति की सेवा करे तथा वनो को अंधाधुन्ध काटने से बचाये।आप और हम वन महोत्सव अभियान में योगदान कर राष्ट्र की सेवा मे तत्पर रहे।प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक छायादार व फलदार वृक्ष लगाने का प्रयास करे। कहते है बून्द-बून्द से तालाब भरता है वैसे ही हमारे एक थोड़े से प्रयास से हमारी धरती हमेशा के लिए हरी भरी रह सकती है। वृक्षो को अपनी सन्तानो की भाँति पाले व उनकी सेवा करे।वृक्ष लगाकर अपनी आने वाली पीढ़ियो को विनाश से बचाये तथा उन्हे एक उज्जवल भविष्य प्रदान करे।वृक्षो की सेवा ही सर्वोत्तम धर्म है। इसलिए वृक्ष लगाएं और वन महोत्स्व में बढ़ चढ़कर हिंसा लें।  

अरशद रज़ा, अमरोहा










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