Opinion: कब तक भारत चीन के सामने रक्षात्मक मुद्रा में खड़ा रहेगा?

मनोज टिबड़ेवाल आकाश

चीन से रिश्ते सामान्य बनाये रखने के लिए 6 साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हर संभव कदम उठाये लेकिन फिर भी चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। ऐसे में हर कोई यह जानना चाह रहा है कि चीन का आखिर इलाज क्या है? कब तक भारत चीन के सामने रक्षात्मक मुद्रा में खड़ा रहेगा? क्या अब वक्त नहीं आ गया है जब चीन पर भारत को आक्रामक होना चाहिये?

चीन से लगा भारतीय क्षेत्र (फाइल फोटो)
चीन से लगा भारतीय क्षेत्र (फाइल फोटो)


नई दिल्ली: भारत के खिलाफ हर स्तर पर चीन ने जहर उगला है। शायद ही कोई वैश्विक मंच हो जहां पर चीन ने भारत की खिलाफत न की हो। नेपाल से लेकर पाकिस्तान हर किसी देश को भारत के खिलाफ चीन भड़काने का काम समय-समय पर करता रहता है। ये सब ऐसी बातें हैं जो किसी से छिपी नहीं हैं।

भारतीय सीमाओं के अंदर घुसकर भारत की जमीन पर अवैध कब्जा करने की चीनी कोशिश हमारे सब्र की इंतिहा है। अक्सर खबर आती है कि चीन ने भारत के इस इलाके में अपनी नापाक हरकत को दिया अंजाम। फिर कूटनीतिक स्तर पर शुरु हो जाती है मान-मनौव्वल की कोशिशें। जब बार-बार चीन ऐसा ही करता है तो हम क्यों वार्ता के जरिये डैमेज कंट्रोल में जुट जाते हैं और फिर चीन के सामने गिड़गिड़ाते हुए उसे वापस जाने पर मना लेते हैं। क्या इससे भारत की जनता के बीच गलत संदेश नहीं जाता है। क्या हम मुंहतोड़ जवाब चीन को देने में सक्षम नहीं हैं? य़दि हैं तो फिर देते क्यों नहीं? ताकि दोबारा चीन इस तरह की हिमाकत कभी न कर पाये। 

प्रतीकात्मक फोटो

कहने को लाख कहा जाय कि यह नये दौर का भारत है लेकिन हकीकत में कम से कम चीन के मुद्दे पर तो ऐसा कहीं नहीं दिखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तमाम कोशिशों को हर बार चीन ने छला है। अगर यूं कहें कि पीठ में छूरा भोंका है तो कोई गलत नहीं होगा। 

हम होली-दीवाली के मौके पर सोशल मीडिया के माध्यम से खूब हो-हल्ला मचाते हैं कि चाइनीज सामानों का बहिष्कार करें लेकिन कुछ दिन बाद फिर वही ढ़ाक के तीन पात। क्या हमें चीन के साथ व्यापारिक रिश्ता समाप्त नहीं कर लेना चाहिये। ये सब ऐसे सवाल हैं जिन पर भारत की सरकार को दृढ़ता से सोचना होगा ताकि चीन को उसके करनी की मुकम्मल सजा दी जा सके और हमारी सरकार वाकई अपने वाक्यों को साबित कर सके कि यह नये दौर का भारत है।   
 










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