DN Exclusive: दिल्ली की सर्द रातों में फुटपाथों पर ठिठुरती जिंदगियां, चैन की नींद सोती सरकार, देखिये ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

सुभाष रतूड़ी

राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्से इन दिनों भीषण ठंड और घने कोहरे की चपेट में है। तमाम सरकारी दावों के बावजूद भी कुछ बदनसीब और बेघर लोग सर्द रातों में सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे रात बिताने को मजबूर है। रात की ठिठुरन में सिसकती जिंदगियों पर पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट



नई दिल्ली: एक अदद घर और सिर छुपाने के लिए छत हर किसी का सपना होता है लेकिन हर किसी का यह सपना पूरा नहीं होता। गरीबों के संदर्भ में तो घर और छत एक दिवास्वप्न जैसा ही है। सर्द रातों में जब रहने या सिर छुपाने के लिए कोई घर या छत न मिले तो जरूरतमंत के दर्द की इंतहा को समझना भी एक पहेली बन जाता है। दिल्ली की सड़कों पर सर्द रातों में इसी तरह की अबूझ पहेली से किसी का भी सामना हो सकता है। हाड़ कंपाने वाली सर्द रातों में कई लोग खुले आसमान के नीचे ठिठुरने और खुली धरती के ‘बिस्तर’ पर सोने को आज भी विवश है। 

कहने को तो गरीबों को घर, छत समेत आर्थिक सुरक्षा व सहायता देने के लिये केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा कई दावे और वादे किये जाते है लेकिन कई बार ये दावे न जाने क्यों जमीन पर नजर नहीं आते है। तमाम सरकारी वादों के बाद भी देश की संसद से चंद कदमों की दूरी पर ठिठुरती ठंड में कई लोग सड़क किनारे फुटपाथ पर क्यों सोते नजर आते है? यही सबसे बड़ी और बहुआयामी पहेली है, जो कई सवालों को समेटे हुए है। 

राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्से इन दिनों भीषण ठंड और घने कोहरे की चपेट में है। सर्दी से बचाव के लिये सरकार द्वारा गरीबों के लिये अलाव और रैन-बसेरों की व्यापक स्तर पर व्यवस्थाएं किये जाने की घोषणाएं हर साल इस मौसम में की जाती है। लेकिन इसके बावजूद भी कई बदनसीब और बेघर लोग अपने पूरे परिवार के साथ सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे जैसे-तैसे रात बिताने को मजबूर है।

डाइनामाइट न्यूज़ टीम इस पहेली को सुलझाने के लिये राजधानी दिल्ली के कई इलाकों में पहुंची और फुटपाथ पर रात बिताने वाले लोगों से इसकी वजह जानने की कोशिश की। 

फुटपाथ रहने वाले इन लोगों ने इसकी कई वजह बताई लेकिन लगभग सभी ने सरकार पर उनकी अनदेखी के आरोप लगाये। एक व्यक्ति ने बताया कि वह अपनी गरीबी और मदद की गुहार लेकर दिल्ली के कुछ नुमाइंदों के पास भी पहुंचा लेकिन आश्वासनों के बाद भी जिम्मेदारों ने उसकी कोई मदद नही की।

डाइनामाइट न्यूज़ से बातचीत में फुटपाथ पर रहने वाले एक अन्य शख्स ने बताया कि जब वे किसी ठीक-ठाक जगह या आश्रय में रहने की कोशिश करते है तो पुलिस वाले उनको चोरी व लूट-खसोट करने वाले बताकर भगा देती है। इसलिये उनके पास फुटपाथ पर सोने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

डाइनामाइट न्यूज़ से बातचीत में कुछ बेघर लोगों बताया कि दिल्ली के रैन-बसेरों में रहने के लिये आधार कार्ड व पहचान संबंधी अन्य दस्तावेज मांगे जाते है, जो उनके पास नहीं है। उनका कहना है कि कई बार वहां असामाजिक तत्वों की मौजदूगी के कारण ये लोग वहां अपराध का भी शिकार हो जाते है।

आंकड़ों के मुताबिक राजधानी दिल्ली में बेघर लोगों के लिये 296 रैन बसेरे बनाये गये है,लेकिन दिल्ली में बेघर लोगों की संख्या के हिसाब से इन रैन-बसेरों की क्षमता पर्याप्त नहीं है इसलिये भी बड़ी संख्या में लोग फुटपाथ पर सोने को मजबूर हैं। 

इनपुट: रोहित गोयल

(दिल्ली में फुटपाथ पर सोने वाले लोगों से बातचीत के लिये देखें ये  https://youtu.be/tdSvvJ8XsRo वीडियो) 










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