

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित मरीजों में समय से पहले बुढ़ापे के लिए क्रोमोजोम-21 में मौजूद एक अतिसक्रिय जीन जिम्मेदार हो सकता है, जो डीएनए की मरम्मत की प्रक्रिया को बाधित करता है और ढलती उम्र से जुड़े लक्षणों को गति देता है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: डाउन सिंड्रोम से पीड़ित मरीजों में समय से पहले बुढ़ापे के लिए क्रोमोजोम-21 में मौजूद एक अतिसक्रिय जीन जिम्मेदार हो सकता है, जो डीएनए की मरम्मत की प्रक्रिया को बाधित करता है और ढलती उम्र से जुड़े लक्षणों को गति देता है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, ब्रिटेन स्थित क्वीन मैरी विश्वविद्यालय के नेतृत्व में हुए एक नये अनुसंधान में यह दावा किया गया है।
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक, शरीर में रासायनिक क्रियाओं में तेजी लाने वाले एंजाइम पर ‘डीवाईआरके1ए’ नामक जीन की अतिसक्रियता डीएनए की मरम्मत करने वाले तंत्र को प्रभावित करती है। इससे कोशिकाओं में मौजूद डीएनए को ज्यादा नुकसान पहुंचता है और उनके अधिक संवेदनशील हो जाने से बुढ़ापे की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, डाउन सिंड्रोम क्रोमोजोम-21 की एक अतिरिक्त प्रति या ट्राइसोमी-21 की मौजूदगी के कारण होता है। इस क्रोमोजोम के साथ जन्मे व्यस्कों में बुढ़ापे की जैविक प्रक्रिया से जुड़े लक्षण, मसलन-ऊतक पुनर्जनन क्षमता में कमी, जख्म भरने में देरी, ऑस्टियोपोरोसिस, मस्तिष्क की कोशिकाओं में क्षरण और प्रतिरक्षा कोशिकाओं का कमजोर पड़ना आदि जल्दी उभरने लगते हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इस गैर-वंशानुगत आनुवंशिक विकार से जूझ रहे मरीज अपने स्वस्थ हमउम्र लोगों से जैविक रूप से औसतन 19.1 साल बड़े दिखते हैं और उनमें बुढ़ापे की प्रक्रिया बचपन से ही शुरू हो जाती है। अनुसंधान के नतीजे ‘लांसेट डिस्कवरी जर्नल ई-बायोमेडिसिन’ के हालिया अंक में प्रकाशित किए गए हैं।
मुख्य अनुसंधानकर्ता डीन निजेटिक कहते हैं, “हमने पाया है कि ‘डीवाईआरके1ए’ जीन की ट्रासोमिक अतिसक्रियता डाउन सिंड्रोम से पीड़ित मरीजों में वक्त से पहले बुढ़ापे की दस्तक की एक बड़ी वजह है। यह कारक मस्तिष्क के विकास और क्रिया को किस हद तक प्रभावित करता है, इसे समझने के लिए अतिरिक्त अनुसंधान की जरूरत है।”
निजेटिक के मुताबिक, अनुसंधान में यह भी देखा गया कि ‘डीवाईआरके1ए’ जीन की क्रिया को नियंत्रित कर कोशिकाओं के बूढ़े होने की गति को धीमा किया जा सकता है, जो डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे मरीजों के लिए शुरुआती चिकित्सीय हस्तक्षेप की संभावनाएं जगाता है।
वैश्विक स्तर पर लगभग 70 लाख लोगों के डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होने का अनुमान है।
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