फर्जी खबरों के खिलाफ आईटी नियम एक तरह का फरमान, बचाव पक्ष को अवसर नहीं देता: उच्च न्यायालय

डीएन ब्यूरो

बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि सोशल मीडिया पर फर्जी, झूठी और गुमराह करने वाली सूचनाओं के खिलाफ कार्रवाई का केंद्र सरकार को अधिकार देने वाली सूचना प्रौद्योगिकी नियमावली में हालिया संशोधन ‘एक प्रकार का आदेश’ है, क्योंकि इसमें सामग्री (कंटेंट) को न्यायोचित ठहराने या उसका बचाव करने का अवसर संबंधित पक्ष को नहीं दिया गया है।

बंबई उच्च न्यायालय (फाइल)
बंबई उच्च न्यायालय (फाइल)


मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि सोशल मीडिया पर फर्जी, झूठी और गुमराह करने वाली सूचनाओं के खिलाफ कार्रवाई का केंद्र सरकार को अधिकार देने वाली सूचना प्रौद्योगिकी नियमावली में हालिया संशोधन ‘एक प्रकार का आदेश’ है, क्योंकि इसमें सामग्री (कंटेंट) को न्यायोचित ठहराने या उसका बचाव करने का अवसर संबंधित पक्ष को नहीं दिया गया है।

न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने यह जानना चाहा कि संशोधित नियमों के तहत सरकार का काम क्या है। अदालत ने महाराष्ट्र के हालिया राजनीतिक घटनाक्रमों का जिक्र किया है, जहां ‘एक पार्टी दूसरी ओर जा रही है।’

पीठ ने यह भी सवाल किया कि ऐसा क्यों है कि संशोधित नियमों के तहत सरकार ने केवल सरकारी व्यवसाय से संबंधित सामग्री के लिए 'लोको पेरेंटिस' (प्रशासनिक प्राधिकारी द्वारा विनियमन या पर्यवेक्षण) का अधिकार लिया है, न कि सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई प्रत्येक जानकारी या सामग्री के लिए।

अदालत संशोधित आईटी नियमों को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही थी।

स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ और ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स’ ने संशोधन को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है और इसे मनमाना एवं असंवैधानिक करार दिया है। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि इसका (संशोधित नियमावली का) नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर भयानक प्रभाव पड़ेगा।

पीठ ने ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ के वकील शादान फरासत की दलीलें सुनने के बाद सवाल किया कि नियमों के तहत सरकार का काम क्या है।

न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक माहौल को लें...एक पार्टी का दूसरी पार्टी की ओर जाना...क्या यह सरकार का काम है?’’

अदालत ने सवाल किया, ‘‘क्या सच है...क्या झूठ है...ये धारणा का विषय हैं। भ्रामक और फर्जी सामग्री के संबंध में, केंद्र सरकार कह रही है कि हमें केवल सरकारी कामकाज से संबंधित सामग्री के लिए ऐसा करने की जरूरत है। हर भ्रामक और फर्जी सामग्री के लिए ऐसा क्यों न करें।''

अदालत ने कहा कि इंटरनेट के दुरुपयोग की व्यापक गुंजाइश होती है और हर रोज ऐसे संदेश मिलते हैं, जिसमें लोगों को कुछ ऐप्स का उपयोग न करने या किसी अज्ञात लिंक को न खोलने की चेतावनी दी जाती है।

न्यायमूर्ति पटेल ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, ‘‘सरकार के पास एक मोबाइल ऐप कवच है, जो नागरिकों को सुरक्षा कवर प्रदान करता है। यह (संशोधित आईटी नियम) आपके कवच (सुरक्षा कवच) को हटा रहा है...यही हो रहा है।’’

अदालत ने आगे सवाल किया कि क्या संशोधित नियम डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया मध्यस्थों तक सीमित हैं और यह प्रिंट मीडिया तक विस्तारित नहीं हैं।

न्यायमूर्ति पटेल ने कहा, ‘‘क्या संशोधित नियमों के तहत स्थापित की जाने वाली ऐसी तथ्यान्वेषी इकाई प्रिंट मीडिया के लिए मौजूद है? यदि यह अब तक प्रिंट मीडिया के लिए नहीं किया गया है, तो यह डिजिटल मीडिया के लिए कैसे किया जा सकता है? आखिर सरकार का इरादा क्या है?’’

पीठ ने कहा कि अगर किसी अखबार की अपनी डिजिटल वेबसाइट है और प्रिंट में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री वही है जो उसकी वेबसाइट पर अपलोड की जा रही है तो क्या संशोधित नियम प्रिंट माध्यम में छपी सामग्री पर भी लागू होंगे।

फरासत ने अदालत से कहा कि इस मुद्दे पर विरोधाभास है।

अदालत 14 जुलाई को मामले की सुनवाई जारी रखेगी।

केंद्र सरकार ने इस साल छह अप्रैल को, सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021 में कुछ संशोधनों की घोषणा की, जिसमें सरकार से संबंधित फर्जी, गलत या भ्रामक ऑनलाइन सामग्री को चिह्नित करने के लिए एक तथ्यान्वेषी इकाई का प्रावधान भी शामिल है।

तीनों याचिकाओं में अदालत से संशोधित नियमों को असंवैधानिक घोषित करने और सरकार को नियमों के तहत किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की गई है।

 










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