प्राकृतिक आपदाओं के कारण घर-बार छोड़ने को मजबूर लोगों को इस तरह मिल सकती सुरक्षा

डीएन ब्यूरो

अनुसंधानकर्ता दशकों से उन लोगों के लिए प्रासंगिक कानूनी दर्जा तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं जो बाढ़, सूखा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर हुए हैं और जिनकी वजह से उनके निवास स्थान को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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डबलिन: अनुसंधानकर्ता दशकों से उन लोगों के लिए प्रासंगिक कानूनी दर्जा तलाश करने की कोशिश कर रहे हैं जो बाढ़, सूखा और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं की वजह से अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर हुए हैं और जिनकी वजह से उनके निवास स्थान को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है। इसके साथ ही उपयुक्त कानून बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि जिनसे उनकी (बेघर हुए लोगों की) सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

लेकिन अन्य कारणों से शरण मांगने वाले लोगों के बीच बहुधा जलवायु शरणार्थियों को भुला दिया जाता है।

आपदा की वजह से अपना देश छोड़ने को मजबूर हुए प्रवासियों (पर्यावर्णीय प्रवासियों) की रक्षा करने के लिए कुछ कानूनविदों ने वर्ष 1951 के शरणार्थी समझौते में शरणार्थी की परिभाषा को संशोधित करने का प्रस्ताव किया ताकि पर्यावरण आपदा को उत्पीड़न माना जा सके।

इससे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत शरणार्थी के तौर पर शरण प्राप्त करने की अर्हता का विस्तार होगा जो मौजूदा धार्मिक, नस्ल, राष्ट्रीयता, किसी खास समाजिक समूह या राजनीतिक विचार के आधार पर उत्पीड़न से परे जाकर उन्हें शरण दी जा सकेगी।

लेकिन शरणार्थी संधि में उल्लेखित गैर प्रतिरोध संधि पहले ही मेजबान देश को शरण की आस में आए व्यक्ति को ऐसे स्थान पर लौटाने से रोकती है जो उसके लिए असुरक्षित हो।

यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी के मुताबिक इसकी व्याख्या ऐसे पर्यावरण की गांरटी के तौर पर की जा सकती है जिसमें हवा और जल अनुकूल हो।

इन प्रावधानों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय कानून जलवायु की वजह से विस्थापित होने वालों की रक्षा करने में असफल है, जिसका अभिप्राय है कि शरणार्थी संधि जो विस्तृत है, इसके बावजूद इसको विस्तार देने की संभावना है।

इओने टिटिओटा मध्य प्रशांत के किरिबाती द्वीपीय देश के नागरिक हैं। वर्ष 2015 में बाढ़ की वजह से परिवार के साथ अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए टिटिओटा को न्यूजीलैंड ने शरण देने से इनकार कर दिया था। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति के समक्ष विरोध जताया जिसने फैसला दिया कि उनकी स्थिति ऐसी नहीं है जिसमें उनके प्राणों को गंभीर खतरा हो।

समुद्र का जल स्तर बढ़ने की वजह से खेतों में खारा पानी भरने, तटीय अपरदन और फसलों के नुकसान से प्रभावी तरीके से बचाने के लिए किरिबाती के लोगों के पास कानूनी अधिकार नहीं है।

न्यूजीलैंड का रुख है कि वह केवल उन्हीं लोगों को शरणार्थी का दर्जा प्रदान करेगा जबकि मूल देश उनके मानवाधिकार का सम्मान करने में असफल होंगे।

तर्क दिया जाता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव व्यवस्थागत है न कि टिटियोटा का व्यक्तिगत उत्पीड़न।

मानवाधिकार समिति ने कहा कि जिन लोगों ने जलवायु परिवर्तन की वजह से अपना देश छोड़ दिया है वे तर्क दे सकते हैं कि उनका अनुभव उत्पीड़न जैसा है और शरणार्थी संधि के तहत शरणार्थी का दर्जा देने की मांग सकते हैं।

असुरक्षित लोग अंतरराष्ट्रीय नागरिक और राजनीतिक अधिकार संधि के तहत दावा कर सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन उनके जीवन के अधिकार पर खतरा उत्पन्न कर रहा है। इनमें वे परिस्थितियां भी शामिल हैं जिनमें पर्यावरण आपदा संघर्ष से जुड़ी है और रासायनिक हथियारों की वजह से जल और वायु दूषित हो गयी है।

देश भविष्य में आने वाली जलवायु आपदाओं की वजह से शरण के दावे पर विचार कर सकते हैं। लेकिन जबतक जलवायु के कारण विस्थापित होने के कानूनी दर्जे पर शिक्षाविद या न्यायविद सहमति नहीं बनाते तबतक संभवत: अंतरराष्ट्रीय कानून में जलवायु प्रवासी को लेकर विस्तृत व्याख्या से बचेंगे।

पर्यावरण आपदा का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है और वे वर्षों के लिए इलाकों को प्रभावित कर सकते हैं और लोगों को उनसे उबरने में दशकों लग सकते हैं। लोगों को पुनर्निर्माण होने तक दूसरे देश या क्षेत्र में आश्रय की जरूरत पड़ सकती है।

जलवायु परिवर्तन ने बाढ़, सूखा, जंगल में आग या भूकंप जैसी आपदाओं की संख्या बढ़ सकती है। कानूनी समाधान, खासतौर पर जलवायु परिवर्तन की वजह से आई आपदा का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होगा।

पड़ोसी देश अधिक असुरक्षित होंगे जो जलवायु प्रवासियों के आने से अधिक प्रभावित होंगे।

जलवायु शरणार्थियों की प्रभावी तरीके से सुरक्षा आने वाले सालों में चुनौती होगी। लेकिन इस बीच लोगों को मदद की जरूरत है। हाल में सीरिया और तुर्किये में आए भूकंप से हजारों लोगों की मौत हुई लेकिन इसने संभवत: लाखों को बेघर कर दिया है।

केवल प्रभावी अंतरराष्ट्रीय कानून का मसौदा तैयार करने से ही भविष्य में पर्यावरण आपदा की ओर से विस्थापित होने वालों को शरण की गांरटी मिलेगी।इसका मसौदा पीड़ितों के करीबी देशों में शुरू होने की उम्मीद है।










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