गुरु पूर्णिमा: गुरु से ही संभव है जीवन की पूर्णता

डीएन संवाददाता

आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को पूरे देश में गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। कोई इस दिन भगवान ब्रह्मा की पूजा करता है तो कोई अपने दीक्षा गुरु की। इस दिन लोग गुरु को साक्षात् भगवान मानकर पूजन करते है। यह सच है कि गुरु के बिना कोई भी इंसान जीवन के वास्तविक लक्ष्यों को अर्जित नहीं कर सकता है।

इंटरनेट स्रोत
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नई दिल्ली: जीवन में गुरु के बिना हम किसी भी तरह के ज्ञान को न तो अर्जित कर सकते है और न ही गुरु के बिना मनुष्य जीवन के वास्तविक लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। सर्वोपरी माना गया है यहाँ तक कि ईश्वर से भी ऊंचा स्थान गुरु को दिया गया है। हमारी शाश्त्रों में लिखा गया है कि -
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

        
गुर की महिमा का गुणगान करते हुए हमारे धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि ही गुरु ब्रह्मा है, विष्णु है और महेश है। गुरु तो परमब्रह्म के समान होता है, ऐसे गुरु को मेरा-हमारा प्रणाम। हिन्दु धर्म में गुरु की बहुत महत्ता बताई गई। गुरु का स्थान समाज में सर्वोपरि है। गुरु उस चमकते हुए चंद्र के समान होता है जो अंधेरे में रोशनी देकर पथ प्रदर्शन करता है। करता है। गुरु के समान अन्य कोई नहीं होता है क्योंकि गुरु भगवान तक जाने का मार्ग बताता है।  

हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी आज (रविवार, 9 जुलाई) आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को पूरे देश में गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। इसे व्यास पूजा के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो किसी भी तरह का ज्ञान देने वाला गुरु कहलाता है, लेकिन अध्यात्म का ज्ञान देने वाले सद्गुरु कहलाते हैं जिनकी प्राप्ति पिछले जन्मों के कर्मों से ही होती है।

वैसे तो हर महीने की पूर्णिमा का अपना ही महत्व होता है। लेकिन आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को गुरु की पूजा की जाती है। यह पर्व बड़ी श्रद्धा भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। इस दिन गुरु की ही नहीं, अपने घर में जो बड़ा है अर्थात पिता और माता, भाई-बहन आदि की भी गुरु समझ कर उनकी पूजा की जाती है।

दीक्षा प्राप्ति ही जीवन की आधारशिला है, जो हमें गुरु से प्राप्त होती है। इससे मनुष्य को दिव्यता तथा चैतन्यता प्राप्त होती है तथा वह अपने जीवन के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच सकता है। दीक्षा आत्मसंस्कार कराती है। दीक्षा प्राप्ति से शिष्य सर्वदोषों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।  
भारतीय संस्कृति में जननी ही व्यक्ति की पहली गुरू है। गुरु शब्द का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। सरल शब्दों में गुरु को ज्ञान का पुंज कहा जाता है।
धर्मिक मान्यताएं

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। वेदव्यास जी ने 18 पुराणों एवं 108 उपनिषद की रचना की थी। महाभारत एवं श्रीमद्भागवत इनके प्रमुख रचित शास्त्र हैं। इसलिए इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में मनाई जाती है। इस दिन से प्रारम्भ कर, अगले चार महीने तक परिव्राजक और साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर, गुरू से ज्ञान प्राप्त करते हैं। क्योंकि बारिश के चार महीनों में मौसम बदलता रहता है, इसलिए साधु-संत एक ही स्थान पर गुरुचरण में उपस्थित रहकर ज्ञान, और भक्ति प्राप्त करते हैं।

गुरु पूर्णिमा के दिन सभी लोग वेदव्यास की भक्तिभाव से आराधना करते हैं। अपने मंगलमय जीवन की कामना करते है। इस दिन हलवा प्रसाद के रुप में वितरित किया जाता है। बंगाल के साधु इस दिन सिर मुंडाकर परिक्रमा मुंडाकर परिक्रमा पर जाते हैं। ब्रज क्षेत्र में इस पर्व को मुड़िया पूनो के नाम से मनाते है और गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। कोई इस दिन ब्रह्मा की पूजा करता है तो कोई अपने दीक्षा गुरु की। इस दिन लोग गुरु को साक्षात् भगवान मानकर पूजन करते है।










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