यूरोपीय संघ के वन कटाई नियम से भारत का 1.3 अरब डॉलर का निर्यात होगा प्रभावित

डीएन ब्यूरो

यूरोपीय संघ (ईयू) के इस सप्ताह वनों की कटाई को लेकर लाये गये नियम से भारत से ईयू को होने वाले 1.3 अरब डॉलर मूल्य के कॉफी, चमड़े की खाल और पेपरबोर्ड जैसे उत्पादों का निर्यात प्रभावित होगा। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: यूरोपीय संघ (ईयू) के इस सप्ताह वनों की कटाई को लेकर लाये गये नियम से भारत से ईयू को होने वाले 1.3 अरब डॉलर मूल्य के कॉफी, चमड़े की खाल और पेपरबोर्ड जैसे उत्पादों का निर्यात प्रभावित होगा। आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने एक रिपोर्ट में यह कहा है।

कार्बन कर पेश किये जाने के तीन सप्ताह के भीतर यूरोपीय संघ परिषद ने 16 मई को यूरोपीय संघ वन कटाई-मुक्त उत्पाद नियमन (ईयू-डीआर) पेश किए हैं।

जीटीआरआई के अनुसार, यूरोपीय संघ के इस नियमन से ऐसा लगता है कि वे अपने स्वयं के कृषि क्षेत्र के संरक्षण को प्राथमिकता देने के साथ निर्यात को बढ़ावा देना चाह रहे हैं। हरित उपायों के तहत छुपी इस व्यापार बाधा से आयात करना मुश्किल होगा।

इस कानून के दायरे में मवेशी, भैंस, पशु मांस, ऑयल मील, सोयाबीन, पॉम ऑयल, चॉकलेट, कॉफी, चमड़े की खाल, कागज, पेपरबोर्ड, लकड़ी, लकड़ी के सामान, लकड़ी की लुगदी और लकड़ी के फर्नीचर आदि आते हैं।

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निर्यातकों को अब यह सुनिश्चित करना होगा कि ये उत्पाद उस जमीन से जुड़े हों, जहां 31 दिसंबर, 2020 के बाद वनों की कटाई नहीं हुई हो। नये नियम 18 महीने के बाद बड़ी कंपनियों और 24 महीने बाद छोटी कंपनियों पर लागू होंगे। यानी बड़ी कंपनियों के लिये समयसीमा दिसंबर, 2024 है और छोटी कंपनियों के लिये जून, 2025 है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘ईयू वन कटाई-मुक्त उत्पाद नियमन से देश के यूरोपीय संघ को होने वाले 1.3 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात (2022 का आंकड़ा) पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इससे महत्वपूर्ण उत्पाद प्रभावित होंगे जिसमें कॉफी (43.54 करोड़ डॉलर), चमड़े की खाल आदि (8.35 करोड़ डॉलर), ऑयल केक (17.45 करोड़ डॉलर), कागज, पेपरबोर्ड (25.02 करोड़ डॉलर) और लकड़ी का फर्नीचर (33.46 करोड़ डॉलर) शामिल हैं।

कार्बन कर और ईयू-डीआर के तहत आने वाले उत्पादों के मामले में भारत के वैश्विक निर्यात में यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी 23.6 प्रतिशत है। इन नियमों से छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के लिये चुनौतियां पैदा होंगी। इसका कारण अनुपालन लागत और जांच-परख जैसी जरूरतें छोटी कंपनियों को वैश्विक कृषि व्यापार से बाहर कर सकती हैं।

जीटीआरआई के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘कार्बन कर औद्योगिक उत्पादों के व्यापार और ईयू-डीआर कृषि उत्पादों के व्यापार को प्रभावित करेगा। दोनों नियमों का मकसद निकट भविष्य में सभी उत्पादों को अपने दायरे में लाने का है। यह कुल मिलाकर एक तरह से व्यापार पर यूरोपीय संघ का हमला है।’’

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रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय संघ का दावा है कि वह ‘वनों की कटाई से मुक्त’ उत्पादों को बढ़ावा देकर वनीकरण में योगदान देना चाहता है, लेकिन यह सब कुछ और नहीं बल्कि भ्रमजाल है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘यूरोपीय संघ ने स्वयं वनों की कटाई कर बड़े पैमाने पर कृषि भूमि का विस्तार किया है... कई अन्य देश जिनके पास प्राथमिक वनों का बहुत बड़ा हिस्सा है, उन्हें बढ़ती आबादी को भोजन उपलब्ध कराने के लिये प्राथमिक वनों को खेती करने लायक भूमि में बदलने की आवश्यकता हैं।’’

जीटीआरआई के अनुसार, हालांकि यूरोपीय संघ ने पूर्व में जो स्वयं काम किया है, अब उससे दूसरे को रोकना चाहता है।










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