दिल्ली हाई कोर्ट ने रेप के आरोपी खिलाफ FIR दर्ज करने के आदेश पर लगायी रोक, जानें पूरा मामला

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए एक व्यक्ति के विरूद्ध बलात्कार को लेकर प्राथमिकी दर्ज करने के निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी कि पीड़िता ने अपनी शिकायत में खुद ही कहा है कि दोनों ने एक बौद्ध समारोह में शादी की थी। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

दिल्ली हाई कोर्ट (फाइल फोटो)
दिल्ली हाई कोर्ट (फाइल फोटो)


नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए एक व्यक्ति के विरूद्ध बलात्कार को लेकर प्राथमिकी दर्ज करने के निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी कि पीड़िता ने अपनी शिकायत में खुद ही कहा है कि दोनों ने एक बौद्ध समारोह में शादी की थी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इस बात को लेकर बुनियादी संदेह है कि क्या इस अपराध के मूल तत्वों को उजागर किया गया है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह शिकायतकर्ता महिला का ही रुख है कि उसने ताइवान में बौद्ध पद्धति से विवाह कर लिया और उसने इस बुनियाद पर इस व्यक्ति के विरुद्ध कई कार्यवाहियां दायर कर रखी हैं कि वह याचिकाकर्ता की विधिसम्मत पत्नी है।

न्यायमूर्ति अनूप जे भम्भानी ने 29 मार्च को अपने आदेश में कहा, ‘‘ यदि यह प्रतिवादी नंबर 2 (महिला) का रुख है, तो भादंसं की धारा 375 के तहत मुख्य अपराध बनेगा ही नहीं, क्योंकि शादी के वादे को झूठा नहीं कहा जा सकता है।’’

न्यायमूर्ति भम्भानी ने कहा कि इस चरण में इस मामले में अदालत आगे कुछ नहीं करना/कहना चाहती है और वह बस इतना ही कह सकती है कि प्राथमिकी दर्ज करने से इस व्यक्ति पर निश्चित ही असर पड़ेगा, क्योंकि अदालत की राय में उसके विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करने से उसे कानूनी परिणाम को झेलने के अलावा उसपर बहुत बड़ा कलंक लग जाएगा।

महिला ने अपनी पुलिस शिकायत में दावा किया है कि तलाकशुदा इस व्यक्ति ने शादी का झूठा वादा कर उसे शारीरिक संबंध बनाया, जिसके बाद वह गर्भवती भी हो गयी।

उसने आरोप लगाया कि दिसंबर, 2018 में वे दोनों एक बौद्ध विवाह पद्धति से शादी के बंधन में बंध गये और इस कार्यक्रम में करीबी दोस्त पहुंचे थे। उसने कहा कि बाद में यह व्यक्ति इस बात से पीछे हट गया कि उसने उसके साथ कभी शादी की।

उसके बाद महिला ने इस व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार, धोखाधड़ी, पीछा करने , गलत तरीके से बंधक बनाने आदि कथित अपराधों को लेकर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करते हुए शिकायत की।

शुरू में मजिस्ट्रेट अदालत ने प्राथमिकी दर्ज करने की महिला का अनुरोध खारिज कर दिया। उसने उसे सत्र अदालत में चुनौती दी, जिसने व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। तब यह व्यक्ति उच्च न्यायालय चला गया।

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश पर रोक लगा दी और पुलिस से निचली अदालत के 27 मार्च के आदेश को रद्द करने के आरोपी के अनुरोध पर पुलिस एवं महिला से जवाब मांगा।

उच्च न्यायालय ने कहा कि गुजारा भत्ता, बच्चे से मिलने, उसे संरक्षण में लेने जैसे कई मुद्दों पर दोनों के बीच कानूनी लड़ाई चल रही है।










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