एनओएस मामले में न्यायालय का फैसला हर मामले में लागू नहीं होता है : सीबीआईसी
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों से कहा है कि कर्मचारियों के अस्थायी रूप से अन्य विभाग या दूसरे जगह काम करने (सेकेंडमेंट ऑफ एम्प्लॉयज) को लेकर उच्चतम न्यायालय के नार्दर्न ऑपरेटिंग सिस्टम (एनओएस) मामले में दिये गये निर्णय को मामला-दर-मामला आधार पर सोच-विचार कर लागू करे। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नयी दिल्ली: केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों से कहा है कि कर्मचारियों के अस्थायी रूप से अन्य विभाग या दूसरे जगह काम करने (सेकेंडमेंट ऑफ एम्प्लॉयज) को लेकर उच्चतम न्यायालय के नार्दर्न ऑपरेटिंग सिस्टम (एनओएस) मामले में दिये गये निर्णय को मामला-दर-मामला आधार पर सोच-विचार कर लागू करे। उसे यांत्रिक रूप से लागू करने की जरूरत नहीं है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक सीबीआईसी ने कहा है कि गतिविधियों के रूप में ‘सेकेंडमेंट’ सेवा कर तक ही सीमित नहीं है और इस पर कर का मुद्दा जीएसटी में भी उठेगा।
‘सेकेंडमेंट ऑफ एम्प्लॉयज’ से आशय नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच समझौते से है, जिसके तहत कर्मचारी को अन्य जगह या विभाग में निर्धारित अवधि के लिये काम करना होता है।
जीएसटी अधिकारियों ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नोटिस जारी किया है। फैसले में कहा गया था कि विदेशी समूह की कंपनी द्वारा एनओएस में कर्मचारियों की नियुक्ति 'श्रमबल आपूर्ति' की कर योग्य सेवा थी और उस पर सेवा कर लागू होता है।
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सीबीआईसी ने कहा कि गतिविधियों के रूप में ‘सेकेंडमेंट’ सेवा कर तक ही सीमित नहीं है। ‘सेकेंडमेंट’ पर कर योग्यता का मुद्दा जीएसटी में भी उठेगा।
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड ने कहा कि एनओएस मामले में निर्णय को ध्यान से पढ़ने से पता चलता है कि उच्चतम न्यायालय का जोर प्रत्येक निर्धारित व्यवस्था की अनूठी विशेषताओं के आधार पर एक सूक्ष्म परीक्षण पर है। उसका मकसद समान रूप से इसे संबद्ध मामलों पर लागू करना नहीं है।
सीबीआईसी ने कहा कि विदेशी समूह की कंपनी के कर्मचारियों को भारतीय इकाई में नियुक्त करने के संबंध में कई तरह की व्यवस्थाएं हो सकती हैं। प्रत्येक व्यवस्था में, कर निहितार्थ भिन्न हो सकते हैं, जो अनुबंध की विशिष्ट प्रकृति और उससे जुड़े अन्य नियमों और शर्तों पर निर्भर करता है।
बोर्ड ने कहा, ‘‘इसीलिए, एनओएस मामले में न्यायालय के निर्णय को सभी मामलों में यांत्रिक रूप से लागू नहीं किया जाना चाहिए। प्रत्येक मामले में जांच को लेकर जीएसटी के तहत कर योग्यता या इसकी सीमा तथा शीर्ष अदालत के फैसले के जरिये निर्धारित सिद्धांतों की उपयोगिता निर्धारित करने के लिए विदेशी कंपनी और भारतीय इकाई के बीच अनुबंध की शर्तों सहित इसके विशिष्ट तथ्यों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की जरूरत है।’’
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ईवाई के कर भागीदार सौरभ अग्रवाल ने कहा कि इस परिपत्र से करदाताओं को बहुप्रतीक्षित राहत मिली है। क्योंकि यह उस परिस्थिति में संभावित रूप से भुगतान किए गए कर पर पूरा ‘इनपुट कर क्रेडिट’ की अनुमति देता है जब धारा 74 के तहत कार्यवाही शुरू नहीं हुई है।
उन्होंने कहा, ‘‘जो भी हो, विभाग विभिन्न प्रकार की ‘सेकेंडमेंट’ व्यवस्था को समझता है। यह विशिष्ट मामले के आधार पर विभिन्न कर निहितार्थों की संभावना को सामने लाता है। यह विभाग को मामले के आधार पर दृष्टिकोण अपनाने सुझाव देता है। इसमें साफ है कि न्यायालय का फैसला हर जगह लागू नहीं होगा।’’