कोरोना लॉकडाउन: निराशा से आशा की ओर बढ़ते कदम
करीब तीन महीने पहले एक ओर जहां विश्व नव वर्ष 2020 का स्वागत करने को आतुर था वही दूसरी ओर चीन चुपचाप कोरोना वायरस से संघर्ष कर था। चीन के वुहान में जन्म लेने वाले इस नवजात वायरस के समाचार तत्काल संसार के राष्ट्रों को नहीं मिलें, यह कहना अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की नीयत पर संदेह और उसकी तत्परता एवं सजगता पर प्रश्नचिन्ह लगाना होगा। उस समय विश्व के छोटे-बड़े, विकसित-विकासशील एवं चीन से मित्रता और शत्रुता रखने वाले तमाम राष्ट्रों के लिए यह खबर ‘एक कान से सुनकर दूसरे से निकालने’ जैसी थी। इसका एक कारण यह भी था कि चीन ने कोरोना वायरस से फैली बीमारी की गंभीरता पर पर्दा डाला।
नई दिल्ली: मनुष्य की प्रकृति विचित्र है, “जाके पाँव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई” अन्य राष्ट्रों की भांति भारतीयों ने भी जनवरी में कोरोना संकट के खतरे के आहट को सुना, फरवरी में उसके बारे में सोचा और मार्च में जब उसे अपने द्वार पर खड़े पाया तब सरकार ने हाथ-पैर (सामाजिक दूरी, जनता कर्फ़्यू और फिर 21 दिन का सम्पूर्ण लॉकडाउन) मारने शुरू किए। केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा 13 मार्च से लेकर अब तक निरंतर आवश्यक कदम युद्ध स्तर पर इस विभीषिका से लड़ने एवं महामारी से बचने के लिए उठाए जा रहे हैं।
लॉकडाउन में आप कैसा महसूस कर रही हैं? शारीरिक अस्वस्थता में भी आप घर पर नहीं रुकी, आपके लिए यह लॉकडाउन किसी सजा से कम नहीं होगा? लॉकडाउन– हमें कोरोना वायरस से तो बचा लेगा, लेकिन कामकाजी लोग यदि इतने लंबे समय तक घरों में बंद रहेंगे तो मानसिक अवसाद की स्थिति में अवश्य पहुँच जायेंगे। मित्रों से मिले बिना, घर पर बंद रहना ‘जल बिन मछली’ जैसा है। इस प्रकार के प्रश्न, वक्तव्य और सोच वर्तमान परिस्थितियों में अधिकांश लोगों के मन-मस्तिष्क में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उत्तर और सुझाव की प्रतीक्षा में खड़े हैं।
गाँव-कस्बों, शहरों एवं महानगरों में तरुण-युवा-प्रौढ़ पीढ़ी फेसबुक, व्हाट्सप, इंस्टाग्राम, वाइबर, स्नेपचैट, ट्विटर और ऐसी ही अनेकों तकनीकी सोशल-साइट्स पर मित्र बनाने, वीडियो बनाने, चैटिंग करने, फोटो और स्टेट्स पोस्ट करने को आधुनिकता समझती है। ऐसे तरुण-युवा-प्रौढ़ लोगों के लिए घर-परिवार के साथ बैठकर हँसी-मज़ाक, गपशप, विचार-विमर्श और पारिवारिक विषयों पर चर्चा करना, कौशल आधारित रुचिकर चटपटे व्यंजनों को बनाना और परिवार के साथ खाना, सिलाई-कढ़ाई-बुनाई, घर की साफ-सफाई और गृहसज्जा को बेमानी और अप्रासंगिक माना जाने लगा है। शहरी तरुण-युवा-प्रौढ़ पीढ़ी के अनुसार गाँव-कस्बों में रहने वाली अशिक्षित (शैक्षिक उपाधि विहीन) लड़कियों और महिलाओं के पास करने के लिए कुछ और नहीं होता, इसलिए उनके द्वारा ऐसे घरेलू कार्यों में समय बिताया जाता है, यह सब समय की बर्बादी है। यही हमारे ‘शहरी साक्षर शिक्षित कामकाजी युवाओं’ की सोच है। आज हम पाश्चात्य संस्कृति के प्रति इस हद तक सम्मोहित और उन्मुख हो गए है कि, भारतीय संस्कार, सभ्यता और संस्कृति को हेयदृष्टि से देखने लगे हैं। आर्थिक लोलुपता के कारण चारित्रिक एवं सामाजिक सनातन मूल्यों की पूर्णरूपेण अनदेखी कर दी गई है।
यह भी पढ़ें |
दुनियाभर में बढ़ा कोरोना वायरस का संकट, अनगिनत मामलों की हुई पुष्टि
लॉकडाउन के समय में लोकतांत्रिक राष्ट्र के साक्षर शिक्षित नागरिकों, सर्वधर्म समभाव के अनुचरों, पाश्चात्य संस्कृति के उपासकों, आधुनिकता के अनुयायियों, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता सेनानियों तथा तकनीकी के पुजारियों के सामने चुनौती है, कि इस गृहबंदी के समय में क्या करें? उनके लिए अशिक्षित (निरक्षर) कहे जाने वाली हमारी दादी-नानी, माताएँ-बहनें, शिक्षित (साक्षर) गृह प्रबंधिकाएं तथा खेत-खलिहानों में अपने परिश्रम एवं पसीने से धरती की कोख से अन्न पैदा करने वाले किसान-श्रमिक, हस्त-उद्योग तथा नृत्य-संगीत से जुड़े लोग प्रेरणा स्रोत हैं। आवश्यकता इस बात है कि हम सब वैश्विक आपदा की इस घड़ी में, कोरोना वाइरस से जंग को जीतने के लिए लागू लॉकडाउन के समय में स्वयं को पहचानें। अपनी रुचियों के विषय में सोचें और रचनात्मक अभिवृतियों को सृजनात्मकता में बदलने का प्रयास करते हुये कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) में भागीदारी निभाएँ।
शत्रु अदृश्य है, मुझे यहाँ भागवत गीता के अध्याय 2 के श्लोक 23 का स्मरण हो आया है, जिसमें आत्मा के विषय में कहा गया है – “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः”॥ अर्थात शस्त्र से जिसे काट नहीं सकते, आग जिसे जला नहीं सकती, जल जिसे गला नहीं सकता और वायु जिसे सूखा नहीं सकती, आत्मा ऐसी है। आज की परिस्थितियों में विश्व समुदाय के पास भी ‘कोरोना वाइरस नामक दैत्य आत्मा’ को खत्म करने के लिए कोई औषधि एवं हथियार नहीं है इसलिए यदि कोरोना को हराना है, तो प्रत्येक भारतीय को ‘सकारात्मक सोच एवं सामाजिक दूरी के साथ-साथ आत्म-विश्वास, आत्म-अनुशासन, आत्म-संयम और आत्म-चिंतन रूपी हथियारों के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है’।
परिवार सामाजिक ढाँचे की आधारशिला है। लॉकडाउन में हमें इच्छा-अनिच्छावश लंबे समय तक परिवार के साथ रहने, एक-दूसरे की पसंद-नापसंद का ध्यान रखने और परस्पर स्वैच्छिक सहयोग करने का अवसर मिला है। अपनों के साथ अनमोल पलों को स्मरणीय बनाकर रिश्तों की आत्मीयता महसूस कीजिये। संभव है माता-पिता, सास-ससुर, भाई-बहन, पति-पत्नी, देवर-भाभी, ननद-बहू और पुत्र-पुत्री के रिश्ते में छिपा अभिन्न मित्र आपको घर में ही मिल जाए।
यह भी पढ़ें |
Coronavirus से निपटने के लिए चीन ने मांगी अमेरिका से मदद
नौकरीपेशा होने का मतलब यह कदापि नहीं कि घरेलू कार्यों की अनदेखी की जाए। समयाभाव के कारण घर में उपेक्षित कर दिये गए कोनों से दोस्ती कीजिये, आत्मीयता और देखभाल से निर्जीव भौतिक वस्तुओं में भी चमक आ जाएगी। आत्मसंतोष और सुखानुभूति हेतु अपने और परिवार के लिए कुछ मनपसंद व्यंजन बनाइये, जिन्हें लॉकडाउन में बाहर से नहीं मंगवा सकते। तरुण-युवा-प्रौढ़ पीढ़ी इस गलत फहमी को मन से निकाल दे कि उन्हें खाना बनाना नहीं आता। जहां चाह है वहां राह है।
दूर-संचार के साधनों की आवश्यकता को नकारा नहीं जा सकता और मीडिया की भूमिका को नजर अंदाज किया जाना भी संभव नहीं है। इनके माध्यम से ही घर बैठे देश-विदेश में रहने वाले अपनों से प्रत्यक्ष-परोक्ष संपर्क एवं वार्तालाप के साथ-साथ वैश्विक घटनाओं और गतिविधियों की सूचनाओं को प्राप्त कर इन सबका आनंद लीजिये। लॉकडाउन में भी तकनीकी एवं मीडिया हमारे ज्ञानार्जन तथा मनोरंजन का सुलभ साधन हैं। घर बैठे इंटरनेट संसार से संतुलित सीमा तक जुड़े, वहाँ तक उचित है लेकिन इसे और इससे जुड़ी सोशल साइटस को ही अपनी दुनिया मत बनने दीजिये। अंत में यही कहना है ‘अनजाने मित्र से जाना-पहचाना दुश्मन अच्छा है”। लॉकडाउन बंधन का नहीं – आत्म-मंथन, आत्म-चिंतन और आत्म-अवलोकन का समय है, इसका भरपूर आनंद लीजिये!!
(लेखिका प्रो. सरोज व्यास वरिष्ठ स्तंभकार हैं। ये फेयरफील्ड प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थान, कापसहेड़ा, नई दिल्ली में डायरेक्टर हैं। ये शिक्षिका, कवियत्री और लेखिका होने के साथ-साथ समाज सेविका के रूप में भी अपनी पहचान रखती है तथा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के अध्ययन केंद्र की इंचार्ज भी हैं)