स्वाभाविक है एक मां होने के नाते अपने बच्चों को लेकर चिंतत होना, पढ़िए दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपने बच्चों की भलाई के लिए एक मां की चिंता को अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता तथा बच्चों को होने वाले “मनोवैज्ञानिक आघात” को लेकर मां की आशंका को उनकी (बच्चों की) शिक्षा के राह में बाधा नहीं बनने देना चाहिए। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अपने बच्चों की भलाई के लिए एक मां की चिंता को अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता तथा बच्चों को होने वाले “मनोवैज्ञानिक आघात” को लेकर मां की आशंका को उनकी (बच्चों की) शिक्षा के राह में बाधा नहीं बनने देना चाहिए।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी एक महिला द्वारा अपने बच्चों को ब्रिटेन के स्कूल में भेजने के लिए उसके और उससे अलग रह रहे पति द्वारा लिये गए ‘संयुक्त निर्णय’ में हस्तक्षेप करने से इनकार करने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते समय आई।

मां ने दलील दी कि अलग होने के कारण दोनों बच्चों को मनोवैज्ञानिक आघात हो सकता है और इसलिए उन्हें यहीं ब्रिटिश स्कूल में दाखिला दिया जाना चाहिए या ब्रिटेन में उसी स्कूल में भेजा जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह बच्चों के हित में है कि उसे “टूटे हुए घर के बोझिल माहौल” से निकालकर उचित शिक्षा और स्वस्थ विकास के अच्छे अवसर के लिए एक जगह पर रखा जाए।

बच्चों के साथ अपनी बातचीत के आधार पर, अदालत ने पाया कि वे विदेश में पढ़ने के इच्छुक थे तथा कड़ी मेहनत के माध्यम से अपने संबंधित स्कूलों में प्रवेश पाने में सक्षम थे, तथा शुरुआत में मां ने खुद पिता के साथ संयुक्त रूप से उन्हें अध्ययन के लिए विदेश जाने की अनुमति देने का निर्णय लिया था।

पीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा, “तो मामला यह है कि, अपीलकर्ता मां की यह आशंका कि वे (बच्चे) मनोवैज्ञानिक आघात से पीड़ित हो सकते हैं, उसके (मां के) अपने डर और चिंता से पैदा हुई प्रतीत होती है, जिसे बच्चों तक प्रसारित करने या उनके भविष्य के शैक्षिक मार्ग में बाधा बनाने की आवश्यकता नहीं है।”

पीठ में न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा भी शामिल हैं।

पीठ ने कहा, “बच्चों की भलाई के लिए एक मां की चिंता को कभी भी जरूरत से अधिक महत्व नहीं दिया जा सकता.. इसे भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि बच्चों को माता-पिता से दूर विदेश भेजने से उनके कल्याण से किसी भी तरह का समझौता नहीं होगा, खासकर जब बच्चों ने इतनी मेहनत की हो।”

अदालत ने कहा कि मां की बिना किसी ठोस आधार वाली चिंताओं के कारण बच्चों की रुचि और कड़ी मेहनत को बर्बाद नहीं किया जा सकता।

अदालत ने आदेश में यह भी कहा कि जब पति-पत्नी के बीच कड़वे झगड़ों के परिणामस्वरूप घर का माहौल तनाव से भर जाता है, तो बच्चे का स्वस्थ विकास गंभीर रूप से प्रभावित होता है।










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