हैदराबाद के गांव में 1,000 वर्ष पुरानी जैन प्रतिमाएं और शिलालेख मिले, जानिये इनका इतिहास और ये खास बातें
हैदराबाद के बाहरी क्षेत्र में हाल में एक गांव में जैन तीर्थंकर की मूर्तियों तथा शिलालेख वाले दो वर्गाकार स्तंभ मिले हैं, जो बताते हैं कि क्षेत्र के आस पास नौवीं-10वीं ईसा पूर्व में यहां एक जैन मठ का अस्तित्व था।
हैदराबाद: हैदराबाद के बाहरी क्षेत्र में हाल में एक गांव में जैन तीर्थंकर की मूर्तियों तथा शिलालेख वाले दो वर्गाकार स्तंभ मिले हैं, जो बताते हैं कि क्षेत्र के आस पास नौवीं-10वीं ईसा पूर्व में यहां एक जैन मठ का अस्तित्व था।
जाने माने पुरातत्वविद् एवं पूर्व सरकारी अधिकारी ई. शिवनागी रेड्डी ने बताया कि युवा पुरातत्वविद् और धरोहर कार्यकर्ता पी. श्रीनाथ रेड्डी द्वारा दो स्तंभों की मौजूदगी के बारे में जानकारी प्रदान करने के बाद उन्होंने पास के रंगा रेड्डी जिले के मोइनाबाद मंडल के एनिकेपल्ली गांव में घटनास्थल का निरीक्षण किया।
शिवनागी रेड्डी ने कहा कि दो वर्गाकार स्तंभ मिले हैं जिनमें से एक ग्रेनाइट का और दूसरा काले बेसाल्ट का है। इन स्तंभों में चार जैन तीर्थंकरों अर्थात् आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमान महावीर ध्यान की मुद्रा में बैठे हुए दिख रहे हैं और शीर्ष भाग ‘कीर्तिमुख’ से सजा है।
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उन्होंने कहा कि दोनों स्तंभ पर तेलुगु-कन्नड़ लिपि में शिलालेख खुदे हैं, जिन्हें पढ़ा नहीं जा सकता। ये स्तंभ गांव के तालाब की दीवारों में लगे हुए हैं।
एक शिलालेख मंडल के चिलुकुरु गांव के करीब स्थित ‘जेनिना बसदी’ (मठ) को दर्शाता है, जो राष्ट्रकूट और वेमुलावाड़ा चालुक्य काल (नौवीं-10वीं ईसापूर्व) के दौरान का एक प्रमुख जैन केंद्र था।
शिवनागी रेड्डी ने कहा कि तालाब की दीवार से स्तंभ निकाले जाने के बाद ही विवरण का पता लगाया जा सकता है।
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शिवनागी रेड्डी ने कहा, ‘‘हां, हम कह सकते हैं कि चिलकुरु के निकट 1,000 साल पहले जैन मठ का अस्तित्व था।’’
चिलकुरु गांव में वर्तमान में भगवान बालाजी का प्रसिद्ध मंदिर है।