New Delhi: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने रविवार को एक अहम कदम उठाते हुए पार्टी के विदेश मामलों के विभाग (DFA) के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने यह फैसला पार्टी के आंतरिक पुनर्गठन और युवा नेतृत्व को आगे लाने की मंशा से लिया है। करीब एक दशक तक इस विभाग की कमान संभालने वाले शर्मा का यह फैसला कांग्रेस संगठन में नई पीढ़ी को जिम्मेदारी सौंपने की दिशा में अहम माना जा रहा है।
इस्तीफे के पीछे का उद्देश्य: युवाओं के लिए जगह बनाना
आनंद शर्मा ने अपने त्यागपत्र में लिखा, “जैसा कि मैंने पहले पार्टी नेतृत्व को अवगत कराया था, मेरा मानना है कि समिति का पुनर्गठन होना चाहिए ताकि इसमें क्षमता और संभावनाओं से भरपूर युवा नेताओं को शामिल किया जा सके। इससे इसके कार्यों में निरंतरता और ऊर्जा बनी रहेगी।”
उन्होंने पार्टी नेतृत्व का आभार जताते हुए कहा कि वह DFA के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे रहे हैं ताकि संगठन में नई सोच और नेतृत्व का समावेश हो सके। शर्मा ने यह भी स्पष्ट किया कि वह कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहेंगे और आगे भी पार्टी की विचारधारा और लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहेंगे।
DFA के तहत दशकों का अनुभव और योगदान
शर्मा के नेतृत्व में कांग्रेस का विदेश विभाग एशिया, यूरोप, अफ्रीका, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका के राजनीतिक दलों से संबंधों को मजबूत करने में बेहद सक्रिय रहा। DFA ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों, भाईचारे वाले दलों और संगठनों के साथ संवाद के लिए संस्थागत तंत्र विकसित किया।
आनंद शर्मा ने अपने पत्र में याद किया कि उन्हें 1980 के दशक से कांग्रेस की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय पहलों का हिस्सा बनने का अवसर मिला। इनमें 1985 का गुटनिरपेक्ष युवा सम्मेलन और 1987 का एंटी-अपार्थाइड सम्मेलन जैसी ऐतिहासिक घटनाएं शामिल हैं, जिन्हें वैश्विक मंचों पर सराहना मिली थी।
चार दशकों का विदेश नीति अनुभव
कांग्रेस कार्य समिति (CWC) के सदस्य रहे आनंद शर्मा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पार्टी का प्रमुख चेहरा रहे हैं। उन्होंने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) में भारत को छूट दिलाने, और भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन जैसे कई अहम कूटनीतिक अभियानों में नेतृत्व भूमिका निभाई। वाणिज्य मंत्री रहते हुए उन्होंने WTO समझौते और व्यापार साझेदारियों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

