New Delhi: हिंदू धर्म में पूजा-पाठ को केवल मंत्र पढ़ने या सामग्री अर्पित करने तक सीमित नहीं माना गया है। शास्त्रों में पूजा करने के कई नियम और पद्धतियां बताई गई हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है। इन नियमों का पालन न करने पर पूजा अधूरी मानी जाती है या उसका फल प्राप्त नहीं होता। विशेष रूप से आसन, दिशा और शुद्धता के नियम को महत्वपूर्ण माना गया है।
पूजा के दौरान पालन किए जाने वाले नियम
शास्त्रों के अनुसार, पूजा करते समय सिर ढकना चाहिए और साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिए। पूजा का स्थान और दिशा भी महत्वपूर्ण हैं। भक्त का मुख हमेशा पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। पूजा करते समय उचित आसन पर बैठना शास्त्रीय दृष्टि से जरूरी है। कई लोग सुविधा या जगह की कमी के कारण खड़े होकर या गलत तरीके से पूजा कर लेते हैं, जिससे पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, साधक जहां बैठकर पूजा कर रहा हो, उस स्थान का मंदिर या भगवान का स्थान उससे ऊँचा होना चाहिए। कई बार मंदिर की ऊंचाई कम होने या दीवार पर स्थापित होने के कारण भक्त को खड़े होकर पूजा करनी पड़ती है, जो शास्त्रों के अनुसार अशुभ माना जाता है।
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पूजा करते समय आसन और सामग्री का महत्व
पूजा में आसन का उपयोग केवल बैठने की सुविधा के लिए नहीं, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्थिरता बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। आसन का कपड़ा हमेशा शुद्ध और साफ होना चाहिए। आसन के दाहिने ओर घंटी, धूप, अगरबत्ती और दीप रखना चाहिए, जबकि बाईं ओर फल, फूल, जल का पात्र और शंख होना चाहिए। इस व्यवस्था से पूजा का माहौल शुद्ध और सकारात्मक बना रहता है।
धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि पूजा करते समय भक्त और भगवान के बीच संवाद का महत्वपूर्ण क्षण होता है। अगर साधक अस्थिर बैठे या अनियमित तरीके से पूजा करे, तो मानसिक एकाग्रता और शारीरिक स्थिरता प्रभावित होती है। इसी वजह से शास्त्रों में विशेष आसनों का प्रयोग करने की सलाह दी गई है।
प्राचीन समय में ऋषि-मुनि ध्यान और साधना के दौरान विशेष आसनों का ही प्रयोग करते थे। इन आसनों के माध्यम से मानसिक स्थिरता बनी रहती थी और साधक ध्यान और पूजा में गहन रूप से लीन हो पाता था। आधुनिक विज्ञान भी इस बात को मानता है कि स्थिर और सही आसन में बैठने से रक्त संचार सही रहता है और ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।

