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चीन में बेरोजगारी ने पैदा किया नया ट्रेंड: नौकरी का दिखावा करने के लिए भी चुकाने पड़ रहे हैं पैसे, जानें क्यों

चीन में बढ़ती बेरोजगारी ने एक अजीब और चिंताजनक ट्रेंड को जन्म दिया है- युवाओं को अब नौकरी करने का केवल दिखावा करने के लिए कंपनियों को पैसे देने पड़ रहे हैं। इस नए ट्रेंड को "प्रिटेंड टू वर्क" नाम दिया गया है। आइए विस्तार से समझते हैं कि चीन में यह ट्रेंड क्यों बढ़ रहा है और इसके पीछे की सामाजिक और आर्थिक वजहें क्या हैं।
Post Published By: Asmita Patel
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चीन में बेरोजगारी ने पैदा किया नया ट्रेंड: नौकरी का दिखावा करने के लिए भी चुकाने पड़ रहे हैं पैसे, जानें क्यों

New Delhi: बेरोजगारी से जूझ रहे चीन में कई कंपनियां अब युवाओं को “नौकरी जैसा माहौल” देने की सेवाएं प्रदान कर रही हैं। इन कंपनियों में युवाओं को एक डेस्क, कंप्यूटर, वाई-फाई, मीटिंग रूम, नाश्ता और कुछ जगहों पर खाना भी उपलब्ध कराया जाता है। बदले में युवाओं को प्रति दिन 30 से 50 युआन (करीब 350-600 रुपये) तक चुकाने पड़ते हैं। इस सेवा को “प्रिटेंड टू वर्क” कहा जाता है, जो वर्तमान में शेनझेन, शंघाई, नानजिंग, वुहान, चेंगदू और कुनमिंग जैसे बड़े शहरों में तेज़ी से फैल रही है। अब यह छोटे शहरों तक भी पहुंच रही है।

युवाओं का इस ‘नकली नौकरी’ में दिन कैसे गुजरता है?

इन कंपनियों में आने वाले लोग खुद की भूमिका तय करते हैं। कोई सामान्य कर्मचारी बनता है, तो कोई खुद को मैनेजर घोषित करता है। कुछ युवा फ्रीलांस काम करते हैं, कुछ नई स्किल्स सीखते हैं, तो कुछ स्टार्टअप आइडिया पर काम करते हैं। साथ ही, यह सेवा मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से भी सहारा बन रही है। यहां आकर लोग खुद को अकेला महसूस नहीं करते और दूसरों के साथ टीम बनाकर काम करने की भावना को बनाए रखते हैं।

इस ट्रेंड के पीछे की वजहें क्या हैं?

चीन की अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती, अमेरिका के साथ चल रहे व्यापार युद्ध और हर साल बढ़ती ग्रैजुएट्स की संख्या के चलते युवाओं के लिए नौकरी पाना मुश्किल होता जा रहा है। कई युवा कॉलेज के बाद भी अपनी योग्यता के अनुसार नौकरी नहीं पा रहे। ऐसे में वे घर पर खाली बैठने के बजाय प्रिटेंड टू वर्क जैसी जगहों पर जाना बेहतर समझते हैं, ताकि परिवार और समाज के सामने खुद को व्यस्त और जिम्मेदार दिखा सकें। कुछ युवाओं को परिवार का दबाव भी इस दिशा में ले जाता है, जबकि कुछ अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखने के लिए ऐसा करते हैं।

इस सेवा की शुरुआत कैसे हुई?

एक युवक फेयू (बदला हुआ नाम) ने इस सेवा की शुरुआत तब की जब कोरोना महामारी के दौरान उसकी खुद की नौकरी चली गई। फेयू का कहना है कि वह दूसरों को यह अहसास कराना चाहता है कि वे समाज में सम्मान के हकदार हैं, भले ही उनके पास नौकरी न हो। उनकी कंपनी में आने वाले 40% युवा हालिया ग्रैजुएट हैं, जबकि 60% फ्रीलांसर होते हैं जो विभिन्न डिजिटल प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे होते हैं।

बेरोजगारी के आंकड़े कितने गंभीर हैं?

• जून 2023 में: 21.3%
• जून 2024 में: 17.1%
• अब (2025): 14.5%
हालांकि इसमें सुधार दिख रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगस्त-सितंबर 2025 में यह आंकड़ा फिर से बढ़ सकता है, क्योंकि इस दौरान करीब 1.22 करोड़ ग्रैजुएट्स कॉलेज से निकलेंगे और नौकरी की तलाश करेंगे।

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